अग्निपथ योजना एवं रोजगार सृजन

प्रजातंत्र में विरोध किया जा सकता है

अग्निपथ योजना एवं रोजगार सृजन

अग्निपथ योजना का घोर विरोध हो रहा है, यह विरोध विपक्षी दलों के स्तर के साथ-साथ स्वयं युवाओं के द्वारा किया जा रहा है, जो कि बेकार बैठे हुए हैं तथा कोई काम नहीं करते हैं। प्रजातंत्र में विरोध किया जा सकता है, कोई भी योजना एक बार में ही श्रेष्ठ नहीं बनती है।

अग्निपथ योजना का घोर विरोध हो रहा है, यह विरोध विपक्षी दलों के स्तर के साथ-साथ स्वयं युवाओं के द्वारा किया जा रहा है, जो कि बेकार बैठे हुए हैं तथा कोई काम नहीं करते हैं। प्रजातंत्र में विरोध किया जा सकता है, कोई भी योजना एक बार में ही श्रेष्ठ नहीं बनती है। उसमें सुधार की गुंजाइश रहती है। सवाल विरोध के तरीके को लेकर है, जिसमें हिंसा, सुरक्षा, कानून व्यवस्था को हथियार बनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगामी डेढ़ वर्ष में लगभग 10 लाख नौकरियां केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में पड़े रिक्त पदों पर देने की घोषणा की है, केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों रेलवे, डाक एवं तार, रक्षा, चिकित्सा, शिक्षा, सार्वजनिक निर्माण, ढांचा गत क्षेत्र आदि में लाखों पद रिक्त पड़े हैं। सेवानिवृत्ति की तुलना में नई नियुक्तियां कम हुई हैं तथा कोरोना काल के 2 वर्षों में तो नई नियुक्तियां प्रतिबंधित रही हैं। वर्ष 1994 केंद्र सरकार के पदों की संख्या लगभग 41.76 लाख से घटकर वर्ष 2021 में मात्र 34. 5 लाख रह गई। देश में महंगाई एवं बेरोजगारी सबसे ज्वलंत चुनौतियां हैं, जिससे संपूर्ण देश लगभग 140 करोड़ जनसंख्या जूझ रही है। महंगाई चरम पर है, जो कि 15 प्रतिशत तक पहुंच गई है तथा बेरोजगारी भी। एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष 1.2 करोड़ युवा बेरोजगारी की कतार में जुड़ रहे हैं। यदि रोजगार सृजन होता है तो युवाओं की ऊर्जा एवं क्षमता का देश हित में उपयोग होगा तथा दूसरी तरफ युवाओं को आय मिलेगी तो परिवारों को महंगाई से राहत मिलेगी। महंगाई को राहत मूल्यों के कमी के साथ-साथ अतिरिक्त आय से भी मिल सकती है।

यद्यपि यह भी सही है की सरकार रोजगार सृजन में सहायक भूमिका अदा कर सकती है। इसी क्रम में युवाओं को रोजगार प्रदान करने, रक्षा क्षेत्र में उनकी क्षमताओं एवं ऊर्जा का इस्तेमाल करने तथा उनमें देश की सुरक्षा एवं राष्ट्रभक्ति की भावना पैदा करने के लिए केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय द्वारा अग्निपथ योजना प्रारंभ की जा रही है। सीएमआईई के अप्रैल 2022 के आंकड़े दर्शाते हैं कि 15 से 19 आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर लगभग 50 प्रतिशत वह 20 से 24 आयु वर्ग में 38. 7 प्रतिशत  है जो चिंता का विषय है। अग्निपथ योजना के अंतर्गत 17. 5 वर्ष से 23 वर्ष तक के युवाओं को सेना में भर्ती करने के लिए एक योजना बनाई है, जिसकी न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 10वीं रखी गई है तथा कड़े प्रशिक्षण के पश्चात उन्हें अग्नि वीर का दर्जा दिया जाएगा लेकिन उनकी सेवानिवृत्ति 4 वर्ष में हो जाएगी। उनकी संख्या के 25 प्रतिशत तो सेना में स्थाई नौकरी दी जाएगी तथा 75 प्रतिशत को अग्निवीर का प्रमाण पत्र सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा।

इसके पश्चात सिविल नौकरी कर सकेंगे चाहे तो अपना कोई व्यवसाय कर सकेंगे, उन्हें नौकरी के दौरान लगभग 11 लाख रुपए वेतन दिया जाएगा तथा सेवानिवृत्ति होने पर सेवा निधि पैकेट के रूप में लगभग 11 लाख रुपए मिलेंगे तथा बैंक एवं बीमा कंपनियों की ऋण योजनाओं में प्राथमिकता दी जाएगी। इसके अतिरिक्त 50 लाख रुपए का अतिरिक्त बीमा भी किया जाएगा। यह सेवा अल्पकालिक है लेकिन उपयोगी है। प्रारंभ में लगभग 46000 नौकरियां दी जाएंगी ज्यो कि क्रमश: बढ़ती जाएगी। वर्तमान में सेना में प्रतिवर्ष लगभग 50 हजार सैनिकों की आवश्यकता होती है लेकिन बीच के 2 वर्ष में भर्तियां नहीं हो सकी, यद्यपि लगभग 20000 भर्तियां वायु एवं जल सेना में हुई हैं तथा लगभग 80 हजार भर्तियां थल सेना में खाली है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अग्निपथ योजना का घोर विरोध हो रहा है, यह विरोध विपक्षी दलों के स्तर के साथ-साथ स्वयं युवाओं के द्वारा किया जा रहा है जो कि बेकार बैठे हुए हैं तथा कोई काम नहीं करते हैं। प्रजातंत्र में विरोध किया जा सकता है, कोई भी योजना एक बार में ही श्रेष्ठ नहीं बनती है। उसमें सुधार की गुंजाइश रहती है। सवाल विरोध के तरीके को लेकर है जिसमें हिंसा, सुरक्षा, कानून व्यवस्था को हथियार बनाया जा रहा है।

केंद्र सरकार ने 10 प्रतिशत  आरक्षण विभिन्न संबंधित सेवाओं में दिए जाने की घोषणा की है। देश में रक्षा बजट लगातार बढ़ रहा है तथा वेतन व पेंशन का भार भी। यह ठीक है कि रक्षात्मक व्यवस्था से समझौता नहीं किया जा सकता है। वर्ष 2013-14 से 2021-22 के मध्य रक्षात्मक बजट दुगना हो गया है जो 2.5 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 5.3 लाख करोड़ रुपए हो गया है लेकिन दूसरी तरफ रक्षा क्षेत्र में वेतन पर वर्ष 2021-22 में 25.6 प्रतिशत  है तथा पेंशन पर 22.8 प्रतिशत  व्यय किया जा रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि रक्षात्मक बजट का लगभग 50 प्रतिशत  वेतन एवं पेंशन चुकाने में ही चला गया तो सुरक्षात्मक क्षेत्र में आधुनिकीकरण व मेंटेनेंस के लिए तो केवल 50 प्रतिशत  ही रहा ह। जो कि बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था, सीमा संबंधित चुनौतियां, विश्व में बिगड़ते हुए रक्षात्मक वातावरण को देखते हुए क्या पर्याप्त है? भारत का नक्शा रक्षात्मक बजट जीडीपी का 2.7 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका का 3.5 प्रतिशत तथा रूस का 4.1 प्रतिशत है। अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए भारत के रक्षात्मक बजट को बढ़ाने की आवश्यकता है जो कम से कम जीडीपी का 3 प्रतिशत होना चाहिए। पेंशन का भार चिंता का विषय है। प्रतिवर्ष लगभग 55000 पेंशनर्स की संख्या बढ़ रही है तथा वन रैंक वन पेंशन योजना लागू है, जिसने इस बजट को बढ़ाया है। समूचे विश्व में सेना में अल्पकालिक भर्तियों को महत्व दिया जा रहा है तथा सेवानिवृत्ति आयु को घटाया जा रहा है। केंद्रीय सरकार के रक्षा मंत्रालय ने अनेक अध्ययनों के आधार पर योजना का निर्माण किया है तथा समय बद्ध तरीके से इसे लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकारी भर्तियों में पुराने ढर्रे के स्थान पर नयापन लाने की आवश्यकता है। कोई भी सरकार अधिक समय तक वेतन, भत्तों एवं पेंशन का भार वहनीय क्षमता तक ही उठा सकती है। अच्छी योजना का स्वागत सभी वर्गों द्वारा किया जाना चाहिए तथा अग्निपथ योजना का उन बेरोजगारों द्वारा जो कि सेना में राष्ट्र सेवा करना चाहते हैं। भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है, राष्ट्रहित में युवाओं को स्वीकार करना चाहिए।

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- डॉ. सुभाष गंगवाल
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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