इलेक्ट्रिक वाहन ना के बराबर देते है वायु प्रदूषण

20 फीसदी कार्बन उत्सर्जन कम कर पाएंगे

इलेक्ट्रिक वाहन ना के बराबर देते है वायु प्रदूषण

देश और दुनिया में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बीच इलेक्ट्रिक वाहनों के टेक्नोलॉजी की आवश्यकता की जाती रही है।

देश और दुनिया में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बीच इलेक्ट्रिक वाहनों के टेक्नोलॉजी की आवश्यकता की जाती रही है। यह माना जाता रहा है कि इलेक्ट्रिक वाहन ना के बराबर वायु प्रदूषण में योगदान देते है, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि एक अध्ययन में पता चला है कि इलेक्ट्रिक वाहनों को दौड़ाकर भी हम अपने देश में सिर्फ 20 फीसदी कार्बन उत्सर्जन कम कर पाएंगे, क्योंकि देश में 70 फीसदी बिजली कोयले से उत्पादित की जा रही है। शोध बताता है कि इलेक्ट्रिक कारों को हम जितना ईको-फ्रेंडली समझते है। दरअसल ये उतनी है नहीं। सोसायटी ऑफ रेयर अर्थ के मुताबिक एक इलेक्ट्रिक कार बनाने में इस्तेमाल होने वाला 57 किलो कच्चा माल (8 किलो लीथियम, 35 किलो निकिल, 14 किलो कोबाल्ट) भूमि से निकालने में 4,275 किलो एसिड कचरा व 57 किलो रेडियो एक्टिव अवशेष उत्पन्न होता है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया में हुआ शोध कहता है कि 3300 टन लीथियम कचरे में से 2 फीसदी ही रिसाइकिल हो पाता है, 98 फीसदी प्रदूषण फैलाता है।

लीथियम दुनिया का सबसे हल्का मेटल है। यह बहुत आसानी से इलेक्ट्रॉन छोड़ता है। इसी कारण ईवी की बैटरी में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। ग्रीन फ्यूल कहकर लीथियम का महिमामंडन हो रहा है, पर इसे जमीन से निकालने से पर्यावरण तीन गुना ज्यादा जहरीला होता है। ईवी बनाने में 9 टन कार्बन निकलता है, जबकि पेट्रोल में यह 5.6 टन है। ईवी में 13,500 लीटर पानी लगता है, जबकि पेट्रोल कार में यह करीब 4 हजार लीटर है। यदि ईवी को कोयले से बनी बिजली से चार्ज करे, तो डेढ़ लाख कि.मी. चलने पर पेट्रोल कार के मुकाबले 20 फीसदी ही कम कार्बन निकलेगा। भारत में 70 फीसदी बिजली कोयले से ही बन रही है। ऐसे में भारत के सामने परिस्थितियां बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है। आज दुनिया का कोई-सा भी देश कोयले से अपनी बिजली उत्पादित करके इलेक्ट्रिक वाहन चलाकर कार्बन उत्सर्जन कम करने का ख्वाब देख रहा है तो स्वाभाविक तौर पर यह ख्वाब अधूरा रहने वाला है। इलेक्ट्रिक वाहनों को उसी देश में चलाया जाना ज्यादा सही है, जहां बिजली कोयले के मुकाबले अक्षय ऊर्जा से ज्यादा उत्पादित की जाती हो, लेकिन मौजूदा समय में हमारे देश में अधिकांश बिजली कोयले से उत्पादित होती है।

ऐसे में हमारे देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को चलाना ज्यादा फायदेमंद रहने वाला नहीं है। उल्लेखनीय है कि पेट्रोल कार प्रति कि.मी. 125 ग्राम और कोयले से तैयार बिजली से चार्ज होने वाली इलेक्ट्रिक कार प्रति किमी 91 ग्राम कार्बन पैदा करती है। इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्टेशन के मुताबिक, यूरोप में ईवी 69 फीसदी कम कार्बन करती है, क्योंकि यहां 60 फीसदी तक बिजली अक्षय ऊर्जा से बनती है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि दुनियाभर की सभी दो सौ करोड़ कारें ईवी में बदल दें तो असीमित एसिड कचरा निकलेगा, जिसे निपटाने के साधन ही नहीं हैं। इस बीच सबसे बड़ा सवाल कि क्या सभी पेट्रोल-डीजल कारों को ईवी में बदलने से प्रदूषण का हल हो जाएगा। एमआईटी एनर्जी इनीशिएटिव के शोधकर्ताओं के मुताबिक, दुनिया में करीब दो सौ करोड़ वाहन हैं। इनमें एक करोड़ ही इलेक्ट्रिक हैं। अगर सभी को ईवी में बदला जाए, तो उन्हें बनाने में जो एसिड कचरा निकलेगा, उसके निस्तारण के पर्याप्त साधन ही नहीं हैं। ऐसे में पब्लिक ट्रांसपोर्ट बढ़ाकर और निजी कारें घटाकर ही ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम कर सकते हैं। सवाल यह भी कि आखिर दुनिया में पेट्रोल कारों से ईवी सही क्यों मानी जा रही है। किसी देश में बिजली अक्षय ऊर्जा से पनपती है। उस देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को चलाया जाना ज्यादा सही है।

यदि हम भारत में रजिस्टर्ड इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या की बात करें तो यहां आंकड़ा 10 लाख 76 हजार 420 है। और वर्ष 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की यह इंडस्ट्री 150 बिलियन डॉलर यानी साढ़े ग्यारह लाख करोड़ रुपए की हो जाएगी यानी आज की तुलना में यह इंडस्ट्री 90 गुना बड़ी हो जाएगी। आज इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल के पीछे कई सारे फायदे प्रत्यक्ष रूप से देख रहे हैं। इसके साथ-साथ हमें अप्रत्यक्ष नुकसान के प्रति चेतने की आवश्यकता है। यह सही है कि पॉल्यूशन से आजादी दिलाने में इन ई-वाहनों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। इसके साथ-साथ बड़ी चुनौती हमारे देश के सामने अक्षय ऊर्जा को लेकर है। भारत सरकार ने भी अक्षय ऊर्जा और ईवी को लेकर लक्ष्य तय किए हैं। केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक 70 फीसदी कॉमर्शियल कारें, 30 फीसदी निजी कारें, 40 फीसदी टू-व्हीलर व 80 फीसदी थ्री-व्हीलर वाहनों को इलेक्ट्रिक करना है।        

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- अली खान
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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