मरुधरा में क्रिकेट की शुरुआत के सौ साल बाद जीती राजस्थान ने रणजी ट्रॉफी
रियासतों की टीमों ने 1931 में राजपूताना क्रिकेट संघ का गठन किया और वीएएस ब्रैडशॉ इसके पहले अध्यक्ष बने। वे 1942 तक इस पद पर रहे और फिर एमए मैकडनलिस ने यह पद संभाला।
खेप्र/नवज्योति, जयपुर। राजस्थान ने 2010-11 और 2011-12 में लगातार दो बार रणजी ट्रॉफी क्रिकेट का खिताब जीता, जबकि मरुधरा में क्रिकेट की शुरुआत इससे सौ साल पहले ही हो चुकी थी। तब रियासतों का दौर था। जयपुर क्रिकेट क्लब (जेसीसी), मेयो कॉलेज अजमेर, अलवर, टोंक, झालावाड़ और बीकानेर की टीमों के मध्य कॉल्विन शील्ड के मैच खेले जाते। इसी दौर में विदेशी टीमों का भी आगमन शुरू हुआ, जब लॉर्ड गिलीमन के नेतृत्व में एमसीसी की टीम ने अजमेर के मेयो कॉलेज मैदान पर राजपूताना और अजमेर रेलवे के खिलाफ मैच खेले। डूंगरपुर के महारावल लक्ष्मण सिंह की कप्तानी में राजपूताना टीम में तब एल रामानी, मुराद, अजीम खान, हंसराज, ठाकुर हिम्मत सिंह, रामसहाय और सीके नायडू भी खेले थे।
आजादी से पहले 1931 में बना राजपूताना क्रिकेट संघ
रियासतों की टीमों ने 1931 में राजपूताना क्रिकेट संघ का गठन किया और वीएएस ब्रैडशॉ इसके पहले अध्यक्ष बने। वे 1942 तक इस पद पर रहे और फिर एमए मैकडनलिस ने यह पद संभाला। देश को आजादी मिलने के बाद अजमेर के महाराजा सुमेर सिंह राजपूताना क्रिकेट संघ के पहले राजस्थानी अध्यक्ष बने, जो सात साल इस पद पर रहे। इस दौरान ब्रैडशॉ, महावीर दयाल और जीआर नायडू ने सचिव का पद संभाला।
1935 में खेला था पहला रणजी ट्रॉफी मुकाबला
राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट बोर्ड के गठन के बाद 1934 में रणजी ट्रॉफी की शुरुआत हुई। राजपूताना ने अपना पहला मैच 1935 में इन्दौर में सेंट्रल इंडिया के खिलाफ खेला। अजमेर के ब्रैडशॉ की कप्तानी में खेली इस टीम में जयपुर के उस्ताद अजीम खान, एसके जिब्बू, हंसराज और आरएस अजयराजपुरा शामिल थे। इनके अलावा अजमेर के जीआर नायडू, बसन्त सिंह, उदयपुर की बीआर चौहान, अर्जुन सिंह, अर्जुन नायडू, बीकानेर के एनपी केसरी और टोंक के अतीक हसन भी खेले।
पहली जीत के हीरो बने थे हंसराज और अजीम खान
लगातार चार साल तक पहले ही मैच में सीके नायडू, मुश्ताक अली, जगदाले और विजय हजारे जैसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों से सजी सेंट्रल इंडिया से हार बाहर होती रही राजपूताना को पहली जीत 1939 में दिल्ली के खिलाफ मिली। दिल्ली में हुए इस मैच में हंजराज ने जहां 96 रन बनाए, वहीं उस्ताद अजीम खान ने दोनों पारियों में छह-छह विकेट चटका राजपूताना को पहली जीत दिलाई। इसके बाद 1942-43 के सत्र में राजपूताना ने बसन्त सिंह (नाबाद 110) के पहले शतक की बदौलत दिल्ली को हरा अजमेर के घरेलू मैदान पर पहली जीत हासिल की।
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