सतरंगी सियासत

क्या लालू-राबड़ी 2017 का नीतीश का वह धोखा भूल पाएंगे?

सतरंगी सियासत

कांग्रेस के दिन ठीक नहीं चल रहे। बीते आठ सालों में कई बड़े नेता कांग्रेस को अलविदा कह गए। सबसे ताजा मामला गुलाम नबी आजाद का। उनके इस्तीफे से कांग्रेस मानो हिल सी गई।

उलटबांसी!
ऐसा लग रहा। मानो जम्मू-कश्मीर भारत की राजनीति में संवेदनशील मसला बना रहेगा। वहां जल्द चुनाव होने के कयास। और चुनावी बिसात बिछने से पहले राज्य में नित नए समीकरण बन-बिगड़ रहे। गुपकार गठबंधन अतीत का विषय होने जा रहा। नेशनल कांफ्रेंस ने ऐलान कर दिया। वह सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। मतलब गुपकार गठबंधन चुनाव से पहले ही तिरोहित। अब अपनी पार्टी और सज्जाद लोन के भी सुर बदल रहे। इसी बीच, गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे ने अचानक जम्मू-कश्मीर के समीकरण और गड़बड़ा दिए। गुलाम नबी आजाद और पूर्व सीएम मुफ्ती मोहम्मद सईद क्रमश: महाराष्ट्र और यूपी से सांसद रहे चुके। लेकिन जब खुद पर आई। तो बिफर रहे। देश के अन्य भागों से आए मतदाताओं को जोड़ने का नियम पहले से। केन्द्र सरकार कश्मीर का भी एकीकरण कर रही। विधानसभा चुनाव से पहले अब करीब 25 लाख नए वोटर जुड़ेंगे। लेकिन महबूबा और अब्दुल्ला आपत्ति कर रहे। पेट में दर्द जो हो रहा। क्या यह उलटबांसी नहीं? लग रहा जमीन खिसक चुकी।

लंबी लाइन
कांग्रेस के दिन ठीक नहीं चल रहे। बीते आठ सालों में कई बड़े नेता कांग्रेस को अलविदा कह गए। सबसे ताजा मामला गुलाम नबी आजाद का। उनके इस्तीफे से कांग्रेस मानो हिल सी गई। उन्होंने पार्टी की इस हालत के लिए सीधे राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया। अब कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की सूची लंबी होती जा रही। इसमें कपिल सिब्बल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, हार्दिक पटेल, अश्विनी कुमार, सुनील जाखड़, अमरिन्दर सिंह, जयवीर शेरगिल, जयंति नटराजन जैसे दिग्गज नेता शामिल रहे। अब अगला नंबर आनंद शर्मा, अशोक चव्हाण, मनीष तिवारी एवं पृथ्वीराज चव्हाण का। ऐसी राजनीतिक गलियारे में चर्चा। यहां तक कि राजधानी दिल्ली में सचिन पायलट को लेकर जब तब कयास लगते रहते। जबकि वह खुद हमेशा भाजपा पर हमलावर रहने का कोई मौका नहीं चूकते। हां, कांग्रेस के लिए यह जरुर संतोषजनक रहा कि महाराष्ट्र में सरकार गई। तो बिहार में वह भागीदार हो गई। लेकिन अब झारखंड की सरकार डोल रही। वहीं, गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश के चुनाव सिर पर।

अब क्या होगा?
गुलाम नबी आजाद तो कांग्रेस छोड़ गए। लेकिन जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस फंस गई। इससे मानो भाजपा की बल्ले-बल्ले। हां, पीडीपी और एनसी की संभावनाएं आजाद के मैदान में कूदने से प्रभावित होने की संभावना। आजाद घाटी और जम्मू रीजन में बराबर से स्वीकार्य। ऐसा अनुमान। अपनी पार्टी और सज्जाद लोन चुनाव बाद में भाजपा के साथ आएंगे। वहीं, आजाद को लेकर ह्यशिंदेह्ण फामूर्ला फिट होगा। फिर कांग्रेस क्या करेगी? असल में, वह घाटी में कई बार क्षेत्रीय दल की तरह व्यवहार करती रही। बाकी देश में वह राष्ट्रीय दल तो है ही। लेकिन घाटी को लेकर पार्टी नेतृत्व कई बार ऐसे फैसले लेते रहा। जो बाकी देश में व्यवहार्य और स्वीकार्य नहीं। लेकिन यही रवैया उसे आज यहां तक ले आया। उसके बावजूद कांग्रेस बदलने को तैयार नहीं। कश्मीर में चुनाव बाद अभी से ही भाजपा के सबसे बड़ा दल बनने की संभावना जताई जा रही। पीडीपी और एनसी का ग्राफ नीचे जाएगा। और आजाद की भूमिका किंग मेकर की जताई जा रही।

इतनी चर्चा क्यों?
अशोक गहलोत को लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में इतनी चर्चा क्यों हो रही? क्या वह गांधी परिवार के विश्वासपात्र या बात कुछ और? इस बीच, जितनी चर्चा गहलोत की। उतना ही सचिन पायलट मौन। वह जालौर में मटकाकांड वाले घटनास्थल का दौरा करके बोले जरुर। लेकिन अब शांत लग रहे। पिछले दिनों वह जयपुर में भी नहीं दिखे। सो, क्या माना जाए? पूर्व में ही कांग्रेस आलाकमान ने संकेत कर दिया था। अगस्त, सितंबर राजस्थान के लिए महत्वपूर्ण। भविष्य की रणनीति के लिहाज से। हालांकि उस ओर कदम बढ़ाए जा रहे। लेकिन वह योजना जमीन पर उतरेगी। इसमें संदेह। तो फिर क्या होगा? गांधी परिवार को साल 2018 में किया गया वायदा याद दिलााया जा रहा। इधर, सीएम गहलोत को पार्टी अध्यक्ष पद का आफर! लेकिन गहलोत भी पायलट को सीएम पद पर नहीं देखना चाहते, ऐसी चर्चा। फिर समाधान का फामूर्ला क्या होगा? इस बीच, सोनिया गांधी अपने हैल्थ चैक अप के लिए राहुल गांधी के साथ विदेश दौरे पर।

दक्षिण का अभियान
भाजपा अपने दक्षिण के अभियान आगे बढ़ा रही। अगले साल तेलंगाना में भी चुनाव। भाजपा इस दक्षिणी राज्य में अपनी संभावनाएं देख रही। इसीलिए जोर भी लगा रही। यहां का प्रभारी भी सुनील बंसल के रूप में नियुक्त कर दिया गया। जो अमित शाह की योजना का हिस्सा। सीएम केसीआर ऐसी बयानबाजी कर रहे। जो बता रहा कि भाजपा अब उन्हें चुनौती देने की स्थिति में। इसी बीच, शाह पिछले दिनों जूनियर एनटीआर से हैदराबाद में अचानक मिल लिए। बाद में उन्होंने इस मुलाकात को लेकर सोशल मीडिया पर जो लिखा। उससे भाजपा खासी उत्साहित। फिर शनिवार को ही जेपी नड्डा की महिला क्रिकेटर मिताली राज से गर्मजोशी से मिलते हुए तस्वीरें आईं। मतलब भाजपा स्टारडम छवि वाले विविध क्षेत्रों की हस्तियों के सहारे भी अपने अभियान को धार दे रही। इसी प्रकार कर्नाटक में छह महिने बाद चुनाव। जबकि तमिलनाडु में एआईएडीएमके के आंतरिक संघर्ष पर भाजपा की नजरें। वहीं, केरल में अभी भी भाजपा अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही।

खेला बाकी!
क्या बिहार में असली खेला बाकी? नीतीश कुमार भाजपा को छोड़ राजद के साथ आ तो गए। लेकिन क्या लालू-राबड़ी 2017 का नीतीश का वह धोखा भूल पाएंगे? विधानसभा में विधायकों का संख्या गणित ऐसा कि पांच-सात विधायकों का भी इस्तीफा हो जाए। और कांग्रेस साथ आ जाए। तो नीतीश का खेला खत्म! क्योंकि भाजपा एवं राजद के लिए अब नीतीश पर विश्वास करना इतना आसान नहीं। ऐसे में आम चुनाव से पहले यदि राजद ने खेल कर दिया तो! वैसे, इसे नितिश भी इसे समझ रहे। इसीलिए नीतीश ने सबसे पहले सोनिया गांधी से बात की। अब यदि कांग्रेस को आम चुनाव के लिहाज से नीतीश से ज्यादा तेजस्वी उपयोगी लगे। तो कांग्रेस, नीतीश का साथ छोड़ने में देर नहीं करेगी। क्योंकि बिहार में नीतीश की गैर मौजूदगी में कांग्रेस की संभावनाएं राजद के साथ ज्यादा। भाजपा वैसे भी नीतीश से जल भुनकर बैठी। फिर दो दुश्मनों में से एक को खत्म करने के लिए दूसरे की मदद करना कोई खराब रणनीति भी नहीं!

Tags: Politics

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