एक बार फिर सुर्खियों में बेशकीमती हीरा कोहिनूर
कोहिनूर ब्रिटेन में फिर चर्चाओं में है
कोहिनूर उनके ताज में सुशोभित है और क्रिस्टल पैलेस में प्रदर्शनी के लिए रखा हुआ है। इसकी कीमत सुनकर भी सिवाय आश्चर्य के कुछ नहीं होता।
एक बार फिर दुनिया का बेशकीमती हीरा कोहिनूर जिसे सामंतक मणी भी कहते है, सुर्खियों में है। यह अकेला ऐसा हीरा है, जिसकी अब तक सबसे ज्यादा सुर्खियां दिखी। अभी कोहिनूर ब्रिटेन में फिर चर्चाओं में है। कोहिनूर उनके ताज में सुशोभित है और क्रिस्टल पैलेस में प्रदर्शनी के लिए रखा हुआ है। इसकी कीमत सुनकर भी सिवाय आश्चर्य के कुछ नहीं होता। अभी अनुमानत: कोहिनूर की कीमत 1.5 लाख करोड़ रुपये है। हकीकत यह है कि ना तो कभी बेचा गया सो खरीदे जाने का सवाल ही नहीं उठता। हमेशा तोहफे या जीतकर ही तमाम हुक्मरानों के पास आता और जाता रहा। उपलब्ध और ज्ञात तथ्यों से पता चलता है कि कोहिनूर का इतिहास लगभग 5 हजार वर्ष पुराना है, संभव है कि और भी ज्यादा हो। मूल रूप से कोहिनूर आंध्र प्रदेश के गोलकोंडा से निकलने के बाद 793 कैरेट का था और दुनिया का सबसे बड़ा हीरा था। ब्रिटेन पहुंचने के बाद और चमक की खातिर तराशा गया, जिससे 105.6 कैरेट का रहकर 21.6 ग्राम वजन का है। सबसे पहले 12वीं शताब्दी में काकतीय साम्राज्य के पास था, जहां वारंगल के एक मंदिर में हिंदू देवता की आंख के तौर पर मंदिर की शोभा बढ़ाता रहा। हीरे का सबसे पहला उल्लेख 1304 के आसपास मिलता है। पहली बार कोहिनूर लूटने में खिलजी के सेनापति मलिक काफूर का नाम आता है, जिसने 1310 में लूटकर खिलजी को भेंट किया। उसके बाद कभी लूटकर तो कभी उपहारों के जरिए हुक्मरानों की शोभा बढ़ाता रहा। इस खूबसूरत और बेशकीमती कोहिनूर को जो भी देखता उसका दिल इसी पर आ जाता। इसी कोहिनूर की वजह से कई शासकों की सल्तनत तहस-नहस हो गई और हत्याएं भी हुईं। इसलिए इसे श्रापित भी कहा गया, यह चर्चा 13वीं सदी से चली आ रही है।
मुगल शासक बाबर ने बाबरनामा में हीरे को स्वयं का बताते हुए सुल्तान इब्राहिम लोधी की भेंट बताया। बाबर के वंशज, हुमायूं तथा औरंगजेब ने इस अमूल्य हीरे की सौगात सुल्तान महमद औरंगजेब को दी, जो बेहद निडर एवं कुशल शासक था, उसने अपनी बहादुरी से कई प्रदेश हथियाये। 1739 में फारसी शासक नादिर भारत आया और महमद की सल्तनत पर कब्जा कर उसके राज्य की धरोहरों को अपने अधीन किया, जिसमें कोहिनूर भी था। कोहिनूर नाम उसी का दिया है। उसके कब्जे में कोहिनूर कई साल रहा। 1747 में उसकी हत्या के बाद हीरा जनरल अहमद शाह दुर्रानी के पास पहुंचा। 1813 में वापस भारत आ गया। ब्रिटिश सरकार ने लाहौर की संधि लागू करते हुए कोहिनूर को ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया को देने सौंपने की बात कही। इस तरह कोहिनूर लंबी यात्रा करते हुए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने खजाने में रख लिया और अंतत: 1850 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को दे दिया गया, तभी से राजपरिवार के अधीन है। अभी हाल ही में लंदन टावर में सुरक्षित रखा है।आजादी के बाद 1947 से भारत की कोहिनूर वापसी की तमाम कोशिशें हुई। 1953 में महारानी एलीजाबेथ द्वितीय के राजतिलक के समय भी कोहिनूर वापसी की मांग को ब्रिटेन की सरकार ने नकार दिया। इधर 1976 में पाकिस्तान ने भी इस पर दावा किया। इतिहास की दुहाई दे अफगानिस्तान ने भी दावा किया कि कोहिनूर वहीं से भारत गया फिर ब्रिटेन। इसलिए पहला हक अफगानिस्तान का है। ईरान ने भी कोहिनूर पर दावा किया, लेकिन ब्रिटेन ने अस्वीकार कर दिया। भारत ने तो यहां तक कहा कि ब्रिटेन ने अनैतिक रूप से प्राप्त किया है। 2013 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कैमरून के भारतीय दौरे पर उन्होंने कोहिनूर को लौटाने से इंकार कर दिया। 2016 में स्टेनली जॉन लुईस जो स्टेशन रोड पर ढ़ाबा चलाते है। उनका दावा भी खूब चर्चाओं में रहा।
- ऋतुपर्ण दवे
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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