बेटियों को सरकारी तो बेटों को प्राइवेट में पढ़ा रहे मां-बाप

हर साल बोर्ड परीक्षा परिणाम में बेटों को पछाड़ रहीं बेटियां, फिर भी उपेक्षित

बेटियों को सरकारी तो बेटों को प्राइवेट में पढ़ा रहे मां-बाप

आधुनिक दौर में भी समाज दोहरी मानसिकता के बंधनों से आजाद नहीं हुआ।

कोटा। बेटियों को लेकर भले ही बराबरी के लाख दावे किए जाते हों, लेकिन समाज आज भी दोहरी मानसिकता से गुजर रहा है। एक तरफ बेटियों को बेटों के बराबर हक देने की आवाज बुलंद की जाती है, वहीं दूसरी तरफ बेटा-बेटी के बीच शिक्षा में अंतर  किया जा रहा है। नवज्योति ने कोटा जिले के सरकारी स्कूलों में पिछले सात सालों के नामांकन के रिकॉर्ड खंगाले तो चौंकने वाली तस्वीर सामने आई। दरअसल, जिले में प्राथमिक व माध्यमिक को मिलाकर 1 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूल हैं, जिनमें आधे से ज्यादा नामांकन बेटियों का है। कक्षा 1 से 12वीं तक की प्रत्येक कक्षा में लड़कियों की संख्या लड़कों के मुकाबले 10 प्रतिशत अधिक है। अभिभावक बेटों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं जबकि, गत वर्षों के बोर्ड परिणामों में बेटियां का रिजल्ट आर्ट्स, साइंस, कॉमर्स व संस्कृत में बेटों से कई गुना अधिक रहे हैं।

10.66 लाख में से 5.66 लाख बेटियां
शिक्षा विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार कोटा जिले में कुल 1 हजार 56 सरकारी स्कूल हैं। जिनमें सत्र 2017 से 2023-24 तक कुल विद्यार्थियों का नामांकन 10 लाख 66 हजार 25 रहा, इनमें लड़कों की संख्या 4 लाख 99 हजार 715 है जबकि, लड़कियों का नामांकन 5 लाख 66 हजार 265 है। यानी, बेटियों का नामांकन बेटों के मुकाबले 66 हजार 550 अधिक है। यह आंकड़ा जन्म देने वाले मां-बाप की दोहरी मानसिकता के कड़वे सच को प्रदर्शित करता है।

प्रतिवर्ष 9 से 10 हजार का अंतर
सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 12वीं तक अध्ययनरत बालिकाओं की संख्या बालकों के मुकाबले प्रतिवर्ष 9 से 10 हजार अधिक है। यह अंतर समाज की दोहरी मानसिकता को दर्शाती है।  वर्तमान सत्र 2023-24 में जिले में सभी सरकारी स्कूलों में 81 हजार 740 लड़कियां अध्ययनरत हैं। वहीं, लड़कों का नामांकन 71 हजार 84 है। लड़कियों की संख्या ग्रामीण इलाकों में ही नहीं बल्कि शहरी इलाकों में भी ज्यादा है। जबकि, प्राइवेट स्कूल शहर में अधिक है। जिले के इटावा ब्लॉक में सबसे ज्यादा 195 स्कूल हैं, यहां भी नामांकन में लाड़ों ही आगे हैं। अधिकांश परिवार बेटों की शिक्षा को प्राथमिता देते हैं।

मुफ्त शिक्षा व सुविधाएं बड़ी वजह
शिक्षाविदों का कहना है, आधुनिक दौर में भी समाज दोहरी मानसिकता के बंधनों से आजाद नहीं हुआ। बेटा-बेटी के बीच समानता का भाव दिखाते हैं लेकिन जब जरूरत होती है तो पीछे हट जाते हैं। आज भी बेटों को कर्म प्रधान व बुढ़ापे की लाठी माना जाता है। जिसके चलते बेटियों को तो सरकारी स्कूल और बेटों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने पर अधिक जोर देते हैं। जबकि, सरकारी में पढ़ने वाली बेटियों का रिजल्ट प्राइवेट में पढ़ रहे बेटों से अधिक रहता है। वहीं, राजकीय विद्यालयों में बेटियों की अधिक संख्या के पीछे सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं भी बड़ी वजह है। बरहाल, कारण जो भी हो, यह तस्वीर आत्मचिंतन करने को मजूबर करती है।

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एक्सपर्ट व्यू - नजरिया बदलने की जरूरत  
समाज शुरू से ही लैंगिक विभेद के मामलों में दोहरी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता रहा है। जीवन का कोई भी पहलु इससे अछूता नहीं है। चाहे वो शिक्षा, कॅरियर, निर्णय लेने का अधिकार ही क्यों न हो। हालांकि बदलाव हुआ लेकिन बहुत कम। अधिकतर परिवार लड़कों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने को प्राथमिकता देते हैं। लड़कियों को हमेशा से ही पराया धन माना जाता रहा है इसलिए उन पर अधिक खर्च करना फिजूल खर्च समझा जाता है। मध्यवर्गीय परिवारों में सीमित आर्थिक संसाधनों के कारण पहले लड़कों के कॅरियर को प्राथमिकता दी जाती है फिर गुंजाइश हो तो बेटियों के बारे में सोचते है। सरकारी स्कूल में गत वर्षों के नामांकन आंकड़े समाज का दोहरा चेहरा बेनकाब करने को काफी है। सरकारी स्कूलों में क्वालिटी एजुकेशन है, ऐसे में लड़कों को भी यहीं पढ़ाना चाहिए। समाज को नजरिया बदलने की जरूरत है।            
 - डॉ. ज्योति सिड़ाना, समाजशास्त्री, जेडीबी आर्ट्स कॉलेज

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क्या कहते हैं अभिभावक
वो समय अलग था जब परिवारों में बेटा-बेटी के बीच फर्क किया जाता था लेकिन आज ऐसी स्थिति नहीं है। सरकारी स्कूलों में बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए कई सरकार द्वारा चलाई जा रही है। मुफ्त शिक्षा के साथ पाठ्य सामग्री, छात्रवृति सहित कई सुविधाएं मिलने की वजह से राजकीय विद्यालयों में बालिकाओं का नामांकन अधिक है। लेकिन, कई परिवारों में बेटो-बेटियों की शिक्षा में फर्क किया जाता है। लड़कियों को 10वीं या 12वीं तक ही पढ़ाते हैं जबकि, बेटों को उसकी इच्छा तक पढ़ाया जाता है। 
- शशिकांत मेहरा, गांधीगृह 3 सेक्टर विज्ञान नगर

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प्राइवेट स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से कोई स्कूल नहीं होने से बालिकाओं को कोएड सिस्टम के तहत ही पढ़ना पड़ता है। ऐसे में वे असहज महसूस करतीं हैं। वहीं, पढ़ाई पर भी खास ध्यान नहीं दिया जाता। जबकि, सरकारी सिस्टम में अलग से बालिकाओं के लिए कई स्कूल हैं, जिनमें शिक्षा के साथ अनुशासन पर ध्यान देते है। इसलिए सरकारी स्कूल में बेटियों को पढ़ाने को तवज्जो देते हैं। हालांकि, बेटा-बेटी में अभी भी भेद किया जाता है। कुछ लोग इसी मानसिकता के चलते बेटियों को सरकारी में और बेटों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं। 
- प्रभुलाल केवट, रामचंद्रपुरा 

क्या कहती हैं बेटियां
परिवार में एक भाई और दो बहनें हैं। हम दोनों बहनें राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय में पढ़ते हैं। जबकि, भाई घर के नजदीक निजी स्कूल में पढ़ता है। हालांकि, घर में सभी एक समान है। 
- सुशीला बैरवा, छात्रा, उड़िया बस्ती संजय नगर

हम एक भाई और एक बहन हैं। भाई छोटा है, जो अभी प्राइवेट स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है। जबकि मैं कक्षा 7वीं में विज्ञान नगर स्थित सरकारी स्कूल में पढ़ रही हूं। 
- प्रियांक्षी, छात्रा, डकनिया स्टेशन 

सरकार ने बालिका शिक्षा की राह की आसान 
बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा राजकीय विद्यालयों में कई योजनाएं संचालित की जा रहीं हैं। जिसकी वजह से छात्राओं का नामांकन तेजी से बढ़ा है। नि:शुल्क शिक्षा, पाठ्य पुस्तक, गार्गी पुरस्कार, ट्रांसपोर्ट वाउचर योजना, स्कूटी, लेपटॉप, साइकिल वितरण, छात्रवृति, स्कॉलरशिप, उड़ान सहित कई योजनाएं सिर्फ बालिकाओं के लिए ही है, जिसका लाभ उन्हें मिल रहा है। इससे बालिका शिक्षा की राह आसान हुई। वहीं, सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता कई गुना बढ़ी है। जिसका नतीजा, गत वर्षों के बोर्ड परिणामों में देखने को मिला है। हर परीक्षा में लाड़ो ही आगे रहीं हैं।
- राजेश कुमार मीणा, अतिरिक्त जिला शिक्षाधिकारी कोटा

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