शरद पूर्णिमा पर बही काव्य धारा, आनंदित हुए लोग
प्रोग्रेसिव राइटर क्लब की ओर से आयोजन हुआ
गीत चांदनी और तारा प्रकाश जोशी सम्मान समारोह में देश के कवि गणों ने अपने काव्य पाठ से लोगों को आनंदित किया।
जयपुर। शरद पूर्णिमा की रात बादलों की ओट से चांद की शीतल फुहार काव्य धारा से मिली तो सृजन की अविरल धारा बह निकली। प्रोग्रेसिव राइटर क्लब की ओर से आयोजित गीत चांदनी और तारा प्रकाश जोशी सम्मान समारोह में देश के कवि गणों ने अपने काव्य पाठ से लोगों को आनंदित किया।
गीत चांदनी कार्यक्रम में गाजियाबाद से पधारे कवि बृजेश भट्ट ने छिल-छिल काधे गए पांव का निकला जैसे श्री राम चलते-चलते मिली जिंदगी कावर लिए हुए शंखनी गागर लिए हुए कविता के पाठ कर सभी को रस की धारा में डुबो दिया । इसके बाद लक्ष्मीपुर खीरी से कवि ज्ञान प्रकाश अकाल ने हम किसी बहरे समय में बांसुरी की तान जैसे, हम किसी बंजर धरा पर उग रहे थे धान जैसे कविता सुनकर गीत चांदनी कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।
दाैसा की सपना सोनी ने मेरे मन की धारा पर मधुर भाव से चित्र अपने सलोना बना दीजिए जितनी गजलें कहीं है मेरे दोस्तों उनके कुछ शेर तो गुनगुना दीजिए और औरैया से पधारी औरैया से आई इति शिवहरे ने कुंडली तो मिल गई है मन नहीं मिलता पुरोहित क्या सफल परिणय रहेगा कविता सुनाई तो श्रोता अपनी तालिया को नहीं रोक सके ।
चूरू के कवि बनवारी लाल खामोश ने जोशीले अंदाज में अपनी कविता अपने आंगन कब आया कोई त्यौहार ही दिन सौदे बाजी करने आते हैं व्यापारी दिन और नागौर के धनराज दाधीच ने अपनी कविता बंटवारे को कर लिया कुछ ऐसे आसन हमने आंसू रख लिए उनको मुस्कान दी।
चित्तौड़ से पधारे और गीत चांदनी का संचालन कर रहे कवि रमेश शर्मा ने पत्ते झड़ने लगे बूढ़ा बरकत हुआ बस गई उम्र का आकलन रह गया मेरे गीतों पर जो तुम बाधी कभी जिल्द वह फट गई संकलन रह गया सुनाकर गीत चांदनी कार्यक्रम को ऊंचाइयां दी।
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