एग्जोम सीक्वेंस से डीएनए की सक्रिय भागों की जांच कर पता लगा सकते हैं जेनेटिक बीमारी का पता
यूके के विख्यात जेनेटिक मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. धावेंद्र कुमार ने दी जानकारी
डीएनए में आए बदलाव को अलग-अलग करके देख पाना काफी मुश्किल था
जयपुर। डीएनए में आए बदलाव को अलग-अलग करके देख पाना काफी मुश्किल था। इसके लिए अब नई तकनीक एग्जोम सीक्वेंस का इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे डीएनए टेस्ट कहीं बेहतर हो गया है और उसमें बदलाव से होने वाली बीमारी का भी पता लगाया जा सकता है। महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी और द जीनोमिक मेडिसिन फाउंडेशन यूके की ओर से यूनिवर्सिटी परिसर में आयोजित तीन दिवसीय इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस आईसीबीडी-2024 का शनिवार को समापन हुआ। कॉन्फ्रेंस के ऑर्गनाइजिंग चेयरपर्सन डॉ. अशोक गुप्ता ने बताया कि आखिरी दिन पीजीआई चंडीगढ़ से आई डॉ. रीना दास ने द ग्रेगर ओरेशन दिया। इसके अलावा नीदरलैंड्स के प्रो. बर्ट डी व्रइस ने दुर्लभ बीमारियों को स्क्रीनिंग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और फेशियल इमेजिंग, यूके के डॉ. मोहनीश सूरी ने जेनेटिक ब्रेन डिजीज की पहचान के लिए न्यूरोइमेजिंग तकनीक, डॉ. एसके शर्मा ने एंडोक्राइनोलॉजी में दुर्लभ केस, डॉ. अश्विनी दलाल ने एपीजेनेटिक डिसऑर्डर के लेबोरेटरी डायग्नोसिस, डॉ. वैभव उपाध्याय ने इनबॉर्न एरर ऑफ मेटाबॉलिज्म के विषय में अपनी रिसर्च प्रस्तुत की। वहीं बेस्ट पोस्टर बनाने वाले स्टूडेंट्स को पुरस्कृत भी किया गया। इस सम्मेलन को इंग्लैंड के रॉयल कॉलेज ऑफ डॉक्टर्स से मान्यता भी मिली है जिसके स्वरूप 18 घंटे का क्रेडिट दिया गया।
नई तकनीक से डीएनए में से अलग करके देख सकते हैं सक्रिय हिस्सा
प्रो. बर्ट डी व्रइस ने बताया कि हमारे डीएनए का सिर्फ दो प्रतिशत हिस्सा ही सक्रिय रहता है और इसी में बदलाव होने या कुछ अनुपस्थित होने पर जेनेटिक बीमारी होती है। इस हिस्से की सटीक जांच के लिए अब एग्जोम सीक्वेंस तकनीक आ गई है जिसकी मदद से जीन के सक्रिय हिस्से को अलग करके देखा जा सकता है। अगर उसमें कोई बदलाव आता है तो उससे किस तरह की जेनेटिक बीमारी हो सकती है यह भी पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा पूरे जीन या डीएनए को देखने के लिए भी होल जीनोम सीक्वेंसी तकनीक इजाद की गई है। यह एडवांस टेस्ट है जो पूरे जीनोम की जांच हो सकती है। अभी यह टेस्ट यूरोपीय देशों में ज्यादा प्रचलन में है।
एचपीएलसी टेस्ट भी है जरूरी
पीजीआई चंडीगढ़ की डॉ. रीना दास ने बताया कि थैलेसीमिया और सिकल सेल बीमारी की रोकथाम के लिए एचपीएलसी टेस्ट कराया जाना चाहिए। इससे मां के शरीर में इन दोनों बीमारियों के वाहक जीन पता लगाए जा सकते हैं। अगर टेस्ट पॉजिटिव होता है तो पिता का टेस्ट भी किया जाता है। टेस्ट नेगेटिव होने पर बच्चे को कोई खतरा नहीं। होता लेकिन पिता भी पॉजिटिव होते हैं तो बच्चे में सिकल सेल या थैलेसीमिया होने की संभावना 25 प्रतिशत तक होती है। इसके अलावा उन्होंने ब्राका वन जीन टेस्ट के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अगर किसी महिला के परिवार में ब्रेस्ट कैंसर का इतिहास है तो उन्हें यह जीन टेस्ट जरूर करवाना चाहिए। इससे उन्हें कैंसर होने की संभावना पता लग सकती है।
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