कुपोषण की भयावह समस्या से जूझती पूरी दुनिया

कुपोषण की भयावह समस्या से जूझती पूरी दुनिया

विश्व में ‘भूख’ कुपोषण व अल्पपोषण की बढ़ती ज्वाला पर चिन्ता अभिव्यक्त करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने यह तथ्य उजागर किया है कि विश्व के लगभग 80 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं, जो कि समस्त विश्व के लिए शर्मनाक है।

भूख की आग मानव विकास के नाम पर कलंक है, मानव अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह है। विश्व में ‘भूख’ कुपोषण व अल्पपोषण की बढ़ती ज्वाला पर चिन्ता अभिव्यक्त करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने यह तथ्य उजागर किया है कि विश्व के लगभग 80 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं, जो कि समस्त विश्व के लिए शर्मनाक है। कुपोषण से जुझते इन अबोध बालकों पर सदैव मौत की तलवार लटकती रहती है, कुपोषण की वजह से कितने ही बच्चे अकाल मौत का शिकार हो जाते हैं, कितने ही बच्चे असाध्य रोगों के शिकंजे में जकड़ जाते हैं। विडम्बना है कि हमारे बच्चों पर कुपोषण व अल्पपोषण को काली छाया का संकट मंडरा रहा है। देश के एक तिहाई बच्चों पर कुपोषण का मंडराता संकट देश में संचालित सभी योजनाओं, गरीबी निवारण व रोजगार कार्यक्रमों की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में भी यह तथ्य  बताया गया है कि देश की 15 से 49 आयु की आधी प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से जूझ रही है तथा पांच वर्ष से कम आयु के 38.4 प्रतिशत बच्चों की लंम्बाई उनकी आयु के मुताबिक कम पाई गई है जिसके लिए कुपोषण व अल्पपोषण ही जिम्मेदार है। संयुक्त राष्टÑ खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट  में भारत में कुपोषित लोगों की संख्या 19 करोड़ दर्ज की गई है जो कि देश के लिए चिन्ता जनक व विचारणीय तथ्य है।

निसंदेह रूप से, बच्चों के शारीरिक, मानसिक व बौद्विक विकास के लिए पर्याप्त पोषकाहार आवश्यक है। ‘खाद्य सुरक्षा’ सुनिश्चित करने तथा  अल्पपोषण व कुपोषण के बढ़ते तूफान को रोकने के लिए सरकार के द्वारा अनेक नीतियों, कार्यक्रमों व योजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा है। किन्तु इन सबके बावजूद भी हकीकत यही है कि देश में कुपोषण का आंकड़ा चिन्ताजनक है।

‘गरीबी’ ही वह मूलभूत कारण है जिसकी वजह से बच्चों को भरपेट भोजन उपलब्ध नहीं होता है, पर्याप्त पोषक आहार की कल्पना तो निरर्थक प्रतीत होती हैं। क्रय शक्ति की अपर्याप्तता के कारण गरीब वर्ग ही खाद्य सुरक्षा के सर्वाधिक शिकार है। हमें इस तथ्य पर विचार करना होगा कि केवल योजनाओं का श्रीगणेश करके गरीबी व बेरोजगारी जैसे दानवों का अंत करना संभव नहीं है। असली तथ्य यह है कि इन योजनाओं को प्रभावशील एवं परिणामोंन्मुखी बनाने के लिए कठोर कदम यथाशीघ्र उठाए जाए ताकि देश को चंगुल कुपोषण से मुक्त किया जा सके तथा ‘खाद्य सुरक्षा’ जैसे उद्देश्य को यर्थाथ रूप से प्राप्त किया जा सके। इस संदर्भ में यह भी तथ्य उल्लेखनीय है कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों की संख्या का अनुमान सही पद्धति से एवं सही रूप से आकलित किया जाए अन्यथा अनेक गरीब लोग ‘खाद्य सुरक्षा’ की परिधि में समावेशित होने से वंचित रह जाएंगे।

कुपोषण को कम करने जैसे महत्वपूर्ण व ज्वलन्त उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि करनी होगी। कृषि भारत की आत्मा है इस मूलमंत्र को दृष्टिगत रखते हुए कृषि पर मंडराते संकट के बादलों को हटाने की भरसक कोशिश करनी होगी। इस के लिए कृषि के विकास, कृषिगत उत्पादकता में वृद्धि तथा कृषकों में खेती के प्रति आकर्षण को बढ़ाने के लिए प्रभावी व्यूह रचना का सफल क्रियान्वयन सुनिश्चित करना आवश्यक है। कितनी विड़म्बना है कि एक तरफ कुपोषण व अल्पपोषण की मंडराती छाया विशालकाय होती जा रही है, भूखों की सूची में देश निचले पायदान पर खिसकता जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ  ऐसा अनुमान प्रस्तुत किया गया है कि देश में होने वाले कुल खाद्यान्न उत्पादन का दसवा हिस्सा प्रति वर्ष पर्याप्त व यथेष्ट संरक्षण व्यवस्था का प्रावधान नहीं होने से बर्बाद हो जाता है। देश में खाद्यान्न भंडारण व रखरखाव की समुचित व पर्याप्त व्यवस्था करके ही खाद्य सुरक्षा, समावेशी विकास तथा कुपोषण व अल्पपोषण में कमी जैसे लक्ष्यों की प्राप्ति संभव है। अत: सरकार को नए गोदामों के निर्माण के लिए सार्वजनिक निजी साझेदारी पद्धति को प्रोत्साहित करना चाहिए। प्रत्येक पंचायत में खाद्यान्न बैंको की स्थापना करके किसानों को वैज्ञानिक भंडारण के लिए ऋणों की आपूर्ति तथा परम्परागत खाद्यान्न भंडारण व्यवस्था को अपनाकर देश को कुछ सीमा तक खाद्य संकट से मुक्त कराना संभव है एवं कुपोषण से जुझते लोगों को जीवनदान दिया जा सकेगा। कुपोषण की इस भयावह समस्या के लिए विश्व खाद्य कार्यक्रम की रिपोर्ट में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली, अपूर्ण सूचना, पारिवारिक विशेषताओं के अनुचित मापन, भ्रष्टाचार व अदक्षता को जिम्मेदार ठहराया गया है। इस संदर्भ में यह  आवश्यक है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्वभौम, मजबूत एवं पारदर्षी बनाया जाए तथा इसका क्रियान्वयन ईमानदारी पूर्वक किया जाए।

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सरकार ने कुपोषण की इस भयावह समस्या का समाधान करने के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन को गठित किया है ताकि विभिन्न मंत्रालायों द्वारा संचालित योजनाओं व कार्यक्रमों में समन्वय स्थापित किया जा सके। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य पोषण को जन आंदोलन का स्वरूप प्रदान करना है तथा पोषण केन्द्रों की स्थापना करके कुपोषण के स्तर को कम करना है।    

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(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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