जानिए राजकाज में क्या है खास

जानिए राजकाज में क्या है खास

पिंकसिटी के पड़ोसी जिले देवों की नगरी दौसा में चुनावी माहौल के बीच रिश्तेदारी भी काफी चर्चा में है।

चर्चा में बुआ-फूफा और मामा
पिंकसिटी के पड़ोसी जिले देवों की नगरी दौसा में चुनावी माहौल के बीच रिश्तेदारी भी काफी चर्चा में है। यहां पहले भी देवर-भाभी के रिश्तों की आड़ में खूब प्रचार हुआ था, लेकिन इस बार कन्हैया और मुरारी के साथ ही बुआ-फूफा और मामा के रिश्ते मंचों पर खूब चल रहे हैं। रिश्ते निकालने में माहिर मिनेश वंशज डॉक्टर साहब ने मुरारी को एक मंच पर अपना मामा बताया, तो उन्होंने भी जवाब देने में कोई कसर नहीं छोड़ी और मंच से कहा कि मैं डॉक्टर साहब का मामा नहीं बल्कि फूफा हंू। गेंद जब डॉक्टर के पाले में आई, तो बुआ के दर्द की आड़ लेकर बोल रहे हैं कि रिश्ता सिर्फ पगड़ी का चलता है, घाघरी का नहीं। इसके बाद दौसा से लवाण तक हर ढाणी और गांव में बुआ-फूफा और मामा की चर्चा हुए बिना सभा का श्रीगणेश ही नहीं होता।

कन्फ्यूजन में वर्कर
सालों से पार्टियों के लिए काम करने वाले वर्कर इन दिनों काफी कन्फ्यूज हैं। बेचारे वो समझ नहीं पा रहे हैं कि रात-दिन एक ही नारा लगाने की आदत को एकदम कैसे बदलें। अब देखो ना, भगवा वाले वर्कर्स सालों से वोट फॉर बीजेपी का ही नारा लगाते आ रहे हैं। बीच-बीच में कंडीडेट्स का नाम लेकर भी ठुमके लगाए बिना नहीं रहते थे। लेकिन इस बार सबकुछ उल्टा है। बेचारों को पार्टी के बजाय वोट फॉर ओनली मोदी के नारे रटाए जा रहे हैं। बगल में खड़े कंडीडेट्स का नाम लेने से पहले दस बार सोचना पड़ता हैं। अब वर्कर्स को कौन समझाए कि अब लोकतंत्र का नहीं, बल्कि एकतंत्र का जमाना है और उसी के हिसाब से चलने में भलाई है, वरना हेकड़ी निकालने में ज्यादा नहीं सोचना पड़ता।

सर्जरी का इंतजार
राज अभी दिल्ली की सियासत के चुनावों में व्यस्त है, लेकिन उसके कारिन्दे दिनभर कुछ न कुछ नई गणित बिठाते रहते हैं। कुछ कारिन्दे आने वाले को समझाने लग जाते हैं कि अब एक बार फिर हाथ वाले भाई लोगों का खेल बिगड़ता नजर आ रहा है। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर एक कमरा ऐसा है, जहां केवल चुनावों के बाद की जाने वाली सर्जरी पर चर्चा होती है। साहब चाय की चुस्कियों के साथ समझाते हैं कि दिल्ली दरबार के चुनावों के बाद मंत्रियों के साथ ही अफसरों की भी सर्जरी की जरूरत है। तीन महीने पहले किए गए ऑपरेशन के दौरान कुछ वायरस आ गए थे। अब उनकी सर्जरी नहीं की गई, तो मर्ज बढ़ता ही जाएगा।

वेंटिलेटर पर हाथ
दिल्ली दरबार के लगातार दो चुनाव हार चुकी हाथ वाली पार्टी के भाई लोग इस बार भी एक-दूसरे से कटे हुए हैं। कभी एक मंच पर एक-दूजे के लिए जान भी देने का ऐलान करने वाले अब एक-दूसरे की शक्ल तक नहीं देखते। अब पार्टी भी पीसीसी से एक फलांग दूर बने वॉर रूम तक सिमट कर रह गई। चुनावी अभियान भी केवल चुनिन्दा लोगों तक रह गया है। वहां चर्चा है कि डायरी और अखबारी आंकड़ों में काफी अंतर है। कई सालों से ऐड़ियां रगड़ने वाले कारिन्दों ने पार्टी को वेंटिलेटर तक पहुंचाने वाले भाइयों की काफी लंबी सूची भी तैयार की है। अब उनको सिर्फ मौके की तलाश है।

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एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि दल-बदलुओं को लेकर है। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा के ठिकाने के साथ ही इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के दफ्तर में भी जुमले को लेकर हाडकोर वर्कर्स में काफी खुसरफुसर है। जुमला है कि दल बदलने वाले नेताओं की सूंघने की क्षमता का कोई जवाब नहीं है। इस मामले में उनके सामने जंगली हिरण भी शरमा रहे हैं। उनको जिस दल का जहाज डगमगाकर डूबने वाला दिखाई दिया, तो वे उगते सूरज वाले दल की तरफ दौड़ने लग गए। पीसीसी में सालों से आ रहे बुजुर्गवार की मानें तो कुछेक भाई लोगों को जो दल पहले कौरव सेना की तरह दिखता था, वह अचानक पांडवों की तरह दिखने लग गया। उसके सेनापति जिसमें रावण की छवि दिखती थी, उसमें सत्यनिष्ठ युधिष्ठिर के दर्शन होने लगे हैं।

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