कांग्रेस का कमजोर आत्मविश्वास, जातिगत समीकरण भी जीत में बन रहा रोड़ा
ब्राह्मण-वैश्य वर्ग के प्रत्याशियों का कब्जा ही अधिक रहा है
कांग्रेस ने 2024 के चुनाव में पहले ब्राह्मण प्रत्याशी सुनील शर्मा का टिकट दिया। जयपुर डायलॉग्स के उपजे विवाद के चलते शर्मा का टिकट बदलकर प्रताप सिंह खाचरियावास को दिया गया।
जयपुर। शहर लोकसभा सीट पिछले कई चुनावों के रिकॉर्ड आधार पर भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती है। यहां अधिकांश चुनाव में ब्राह्मण उम्मीदवार का वर्चस्व रहा है। कांग्रेस प्रत्याशी प्रताप सिंह खाचरियावास भले ही मंझे हुए नेता हैं, लेकिन जातिगत समीकरण के हिसाब से यह सीट चुनौती भरी है। खाचरियावास सड़कों पर संघर्ष करने वाले और लोगों के बीच पहचान रखने वाले नेता हैं, लेकिन कांग्रेस के यहां पहले ब्राह्मण प्रत्याशी तय करने और बाद में बदलकर राजपूत प्रत्याशी उतारने से जीत के लिए टक्कर नजर आ रही है। इस सीट पर अधिकांश बार भाजपा या अन्य प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। वर्ष 1952 में कांग्रेस के दौलतमल भंडारी, 1957 में निर्दलीय हरीशचन्द्र शर्मा, 1967 में स्वतंत्र पार्टी की गायत्री देवी, 1977 और 1980 में जनता पार्टी के सतीशचन्द्र अग्रवाल, 1984 में कांग्रेस के नवलकिशोर शर्मा, 1989 से 2004 तक लगातार छह बार भाजपा के गिरधारीवाल भार्गव, 2009 में कांग्रेस के महेश जोशी इसके बाद भाजपा ने चुनाव जीता। आंकडों के हिसाब से सीट पर ब्राह्मण-वैश्य वर्ग के प्रत्याशियों का कब्जा ही अधिक रहा है।
जमीनी नेता पर भीतरघात का खतरा
कांग्रेस ने 2024 के चुनाव में पहले ब्राह्मण प्रत्याशी सुनील शर्मा का टिकट दिया। जयपुर डायलॉग्स के उपजे विवाद के चलते शर्मा का टिकट बदलकर प्रताप सिंह खाचरियावास को दिया गया। खाचरियावास जमीनी नेता हैं, लेकिन कुछ समीकरण उनके पक्ष में नजर नहीं आ रहे। एक तो वे राजपूत नेता हैं। वहीं चुनाव लड़ने के दौरान उनकी भाषा बता रही है कि वे चुनाव लड़ने से खुश नहीं हैं। उन्होंने मीडिया में भी कहा कि चुनाव नहीं लड़ना चाहता था, लेकिन पार्टी के आदेश पर लड़ रहा हूं। खाचरियावास के कमजोर आत्मविश्वास से कार्यकर्ताओं में भी ऊर्जा का संचार नहीं हो पा रहा है। जयपुर शहर कांग्रेस के नेताओं में भी गुट के चलते कांग्रेस में भीतरघात का खतरा बना हुआ है।
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