पीएम मोदी और नीतीश के छूट रहे पसीने, ट्रेंड बता रहा बिहार में लालू का बेस वोट बैंक सेफ
महागठबंधन एक नये तरीके से संगठित हो गया है
कई नेताओं ने पाला बदल दिया है। नीतीश कुमार उनमें से सबसे प्रमुख हैं, क्योंकि विपक्षी एकता की पहल उनकी ओर से शुरू की गई थी।
पटना। बिहार में पीएम मोदी का मुकाबला करने के लिए जोर-शोर से बना महागठबंधन समाप्त हो चुका है। नीतीश कुमार उससे अलग हो चुके हैं। उसके बाद महागठबंधन एक नये तरीके से संगठित हो गया है। कई नेताओं ने पाला बदल दिया है। नीतीश कुमार उनमें से सबसे प्रमुख हैं, क्योंकि विपक्षी एकता की पहल उनकी ओर से शुरू की गई थी। जानकारों की मानें, तो इस लोकसभा चुनाव में कई राज्यों में बीजेपी की ओर एकतरफा कोई प्रवाह वाला पैटर्न नहीं दिख रहा है। बिहार में लालू राज को सत्ता से उखाड़ने वाले नीतीश कुमार के प्रति भी लोगों की आशा में कमी आई है। बिहार ने सामाजिक न्याय का केंद्रित नारा और सड़क-बिजली-पानी की बातों में प्रगति दिख रही थी। नीतीश कुमार ने विकास किया भी था। लेकिन नीतीश कुमार का ये प्रयास बीच में ही शराबबंदी अभियान की वजह से अटक सा गया।
2010 विधानसभा चुनाव: 2010 के विधानसभा चुनाव को याद करते हुए बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद कहते हैं कि इसमें कानून और व्यवस्था में सुधार इसके केंद्र में था। क्योंकि, इसमें सत्तारूढ़ दल को वादे करने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए वापस लाया गया था। उन्होंने बताया कि उसके बाद, खासकर 2013-14 के बाद, भारी गिरावट आई है। वह नीतीश के बीजेपी के साथ गठबंधन से बाहर होने और लालू यादव की पार्टी राजद के साथ गठबंधन के फैसले को निर्णायक मोड़ बताते हैं। नि:संदेह, नीतीश ने बाद में कई और गलतियां कीं और अब वापस मोदी-भाजपा के साथ हैं। जानकार कहते हैं कि इस बार के चुनाव में अब वोटर बिहार के लोग नीतीश कुमार के कमजोर व्यक्तित्व और आधी-अधूरी विरासत की जगह नरेंद्र मोदी को देखना पसंद करने लगे हैं। टीम तेजस्वी और टीम मोदी के बाद सीमित एक-जातीय अपील वाली पार्टियां सहयोगी के रूप में हैं। जैसे महागठबंधन के साथ वीआईपी। एनडीए के साथ, जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा।
तेजस्वी का दावा
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अजय आलोक कहते हैं कि बिहार में चुनाव मोदी बनाम तेजस्वी नहीं है। मोदी बनाम मोदी के विरोधियों का चुनाव है। इस बार एक ही चर्चा है, मोदी बनाम उनका विरोध करने वाले। राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा कहते हैं कि ये चुनाव नौकरी मतलब तेजस्वी यादव का है। तेजस्वी का कहना है कि जब वह जेडीयू समर्थित सरकार में मंत्री थे। उन्होंने पांच लाख नौकरी दी। हालांकि, इस दावे को लेकर विवाद है। 17 महीने बनाम 17 साल के मुद्दे पर तेजस्वी चारों तरफ गरज रहे हैं। कुल मिलाकर उन्होंने नौकरी थीम को अपना मुद्दा बना दिया है। जानकारों की मानें, तो पिछले लोकसभा चुनावों में यादव वोट को विभाजित होते देखा गया था। यादवों का एक वर्ग केंद्र के लिए, एक वर्ग मोदी की ओर मुड़ गया था।
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