मुनि संघ को इक्षु रस का आहार देकर मनाया गया अक्षय तृतीया पारण

आचार्य शशांक सागरजी संघ के पिच्छिका परिवर्तन समारोह में गुरु भक्त झूमे भक्ति में

मुनि संघ को इक्षु रस का आहार देकर मनाया गया अक्षय तृतीया पारण

जनकपूरी-ज्योतिनगर जैन मंदिर अक्षय तृतीया के पावन दिन जयपुर का एक मात्र स्थान रहा जहाँ मुनि संघ का भक्तों को पावन सानिध्य मिला ।

जयपुर जनकपूरी-ज्योतिनगर जैन मंदिर अक्षय तृतीया के पावन दिन जयपुर का एक मात्र स्थान रहा जहाँ मुनि संघ का भक्तों को पावन सानिध्य मिला । प्रबंध समिति अध्यक्ष पदम जैन बिलाला अनुसार अक्षय तृतीया को पारण व दान पर्व के साथ आचार्य श्री १०८ शशांक सागर जी का अवतरण दिवस व संघ का पिच्छिका परिवर्तन समारोह भक्ति भाव के साथ मनाया गया ।सुबह अभिषेक शांति धारा से समारोह शुरू हुआ जो मंगल आरती व  उपस्थित जनों को इक्षु रस वितरण के साथ समाप्त हुआ । इस बीच भक्ति व संगीत के साथ पूजन  पाद प्रक्षालन  शास्त्र भेंट आशीर्वचन  पिच्छिका परिवर्तन व अतिथि सम्मान आदि हुआ । इधर भक्त जनों ने संघ का पड़गाहन कर को इक्षु रस का आहार दिया ।

भक्ति मय गुरु पूजन

अक्षय तृतीया व गुरु पूजन भक्ति के साथ झूमते हुए साज बाज के साथ ब्र० डा० चंद्र प्रभा जैन, प० रोहित शास्त्री सांगानेर संस्थान व युवा गायक जितु गंगवाल प्रताप नगर द्वारा संपन्न करायी गई तथा पूर्व व वर्तमान आचार्यों के अर्घ समर्पित किए गए ।

 आचार्य ने अक्षय तृतीया को बताया दान पर्व

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आचार्य  ने अक्षय तृतीया के बारे में समझाते हुए कहा की भगवान आदिनाथ ने सबसे पहले समाज में दान के महत्व को समझाया था और दान की शुरुआत की थी। भगवान आदिनाथ राज-पाठ का त्याग करके वन में तपस्या करने निकल गए थे उन्होंने वहां 6 महीने तक लगातार ध्यान किया था 6 महीने बाद जब उन्होंने सोचा कि इस समाज को दान के बारे में समझाना चाहिए तो वे ध्यान से उठकर आहार मुद्रा धारण करके नगर की ओर निकल पड़े थे।जैन धर्म में अक्षय तृतीया के दिन लोग आहार दान ज्ञान दान औषाधि दान या फिर मंदिरों में दान करते हैं जैन धर्म की मान्यता है कि भगवान आदिनाथ ने इस दुनिया को असि-मसि-कृषि वाणिज्य व शिल्प के बारे में बताया था इसे आसान भाषा में समझें तो असि यानि तलवार चलाना मसि यानि स्याही से लिखना कृषि यानी खेती करना होता है भगवान आदिनाथ ने ही लोगों को इन विद्याओं के बारे में समझाया और लोगों को जीवन यापन के लिए इन्हें सीखने का उपदेश दिया था आचार्य श्री ने अंत में कहा कि वास्तव में तो मेरा अवतरण दिगंबर मुद्रा धारण करने के दिन हुआ है । इसके साथ ही आचार्य श्री ने सभी को आशीर्वाद प्रदान किया ।

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