लापरवाही से बारिश में जलमग्न होते शहर

जनजीवन ठप हो जाता है और जाम के हालात बन जाते हैं

लापरवाही से बारिश में जलमग्न होते शहर

शहरी नागरिक बारिश के दौरान प्रशासन की लापरवाही का दंश दशकों से भुगत रहे हैं। आधुनिक दौर में जब तकनीक विकसित है तब भी इस दिशा में ठोस काम नहीं होना प्रशासन की अर्कमण्यता को ही दर्शा रहा है।

देश में प्रशासन की लापरवाही के चलते ही मानसून की बारिश लोगों के लिए मुसीबत का सबब भी बन जाती है। देश की राजधानी में मानसून की पहली बारिश ने ही प्रशासनिक व्यवस्थाओं की पोल खोल कर रख दी। इसी तरह के हालात कमोबेश देश के तमाम बड़े शहरों और कस्बों के इन दिनों हो रहे हैं। राज्य की राजधानी जयपुर में भी थोड़ी सी बारिश ने आधे शहर को जलमग्न की हालात में ला दिया है। इन सबके के पीछे हमारी व्यवस्था ही दोषी है। हर जगह सड़कों का क्षतिग्रस्त होना और जलभराव की स्थिति आम नागरिक को परेशान किये रहती है।  इन व्यवस्थाओं को देखने वाले तंत्र को मालूम है कि बारिश होगी और जलभराव के हालात बनेंगे। हर वर्ष यही हालात देखने को मिलते हैं और हर बार दावे किये जाते हैं कि मानसून से पहले ही नालों की सफाई कर दी गई है पर दावें खोखले साबित होते हैं और जनता को परेशानी उठानी पड़ती है। मानसून मौसम का एक स्वाभाविक चक्र है। तेज बारिश तो अब हर महानगर, शहर और कस्बे में तकलीफ के दौर पर पहचाना जाने लगा है। 

बारिश के दौर में जो हालात शहरों के बनने लगे हैं उससे साफ लगता है कि इसमें समूची व्यवस्था का कुप्रबंधन और लापरवाही ही है। कुछ घंटों की बारिश ही कस्बों के साथ ज्यादातर शहरों के हाल बेहाल कर देती है। हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि जनजीवन ठप हो जाता है और जाम के हालात बन जाते हैं। इसमें सुधार के लिए सरकारों के स्तर पर हमेशा काम होता है पर जब बारिश होती है तो कहीं भी प्रशासन के प्रयास कारगर नहीं हो पाते हैं। प्रशासन के साथ ही कई स्वयं सेवी संगठन भी इस दिशा में काम कर रहे हैं कि जलभराव के हालात नहीं बनें और नागरिकों को असुविधा का सामना नहीं करना पड़े। 

शहरों का पानी निकासी का पूरा तंत्र ही गड़बड़ा हुआ दिखाई देता है। हर वर्ष यही हालात बनते है पर इससे कभी सबक लिया ही नहीं जाता है। सड़कों और मौहल्लों में जलजमाव हो ही नहीं, इस दिशा में काम करने की जरूरत है। इसके लिए आम नागरिकों से सुझाव लेकर प्रशासन को ठोस कदम उठाने चाहिए, तभी इस स्थायी समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। नगरीय संस्थाओं को इस तरफ मानसून पूर्व ही ध्यान देना होगा और अपने तंत्र को मजबूत कर लोगों को राहत देने की पहल करनी होगी। इसमें सुधार के लिए नगरीय संस्थाओं को बहुत बड़ा बजट की सरकारों की तरफ से मुहैया कराया जाता है लेकिन हालात सुधरने का नाम ही नहीं लेते हैं। जलभराव वाले इलाकों की पहचान कर वहां से पानी निकासी की व्यवस्था करने से समस्या को काफी हद तक काबू किया जा सकता है। देश में बारिश का दौर तो अभी शुरू ही हुआ है। शुरूआती दौर में ही जो हालात सामने आ रहे हैं उससे लगता है कि शहरों के हाल बेहाल ही होंगे। मौसम विभाग ने भी इस बार अच्छी बारिश की भविष्यवाणी की है। उसे देखते हुए तो प्रशासन और सरकारी तंत्र के पास अभी भी समय है कि वो चिन्हित जगहों की सुध लेकर ठोस उपाय अमल में लाये। शहरों की उन सडकों पर जहां रोजमर्रा के कामकाज के लिए हजारों लोगों की आवाजाही रहती है उन पर पहले ध्यान देने की आवश्यकता है। इन सड़कों पर ही शहरी संस्थाएं ठीक से काम कर ले तो जनता की परेशानी ही आधी हो जाएगी। इसके साथ ही भविष्य में नये बसने वाले इलाकों में पानी निकासी का इंतजाम शुरूआत से ही सुधार ले तो भी लोगों को राहत मिल सकेगी। बरसात के दिनों में तो सड़कों पर जो हालात गड्डों और सीवरेज लाइन के खुले मेनहोलों से होते है उसको तो कोई देखने वाला ही नहीं होता है। पानी से लबालब सड़कों के बीच खुले मैनहोल और नालों में दुर्घटना की कई घटनाएं सामने आती रही हैं। इन्हें सुधारने के लिए हर बार प्रशासन दावे करता है पर हमेशा इनमें दुर्घटना होने की खबरें सामने आती रहती हैं।

शहरी नागरिक बारिश के दौरान प्रशासन की लापरवाही का दंश दशकों से भुगत रहे हैं। आधुनिक दौर में जब तकनीक विकसित है तब भी इस दिशा में ठोस काम नहीं होना प्रशासन की अर्कमण्यता को ही दर्शा रहा है। शहरों में नगर निकायों में जिस दिशा में काम होना चाहिए उसका नितांत अभाव साफ दिखाई देता है। जलजमाव वाले इलाकों में लंबे समय तक पानी भरा रहता है। निकायों की लापरवाही के चलते ही जलभराव इलाके में रिहायशी बस्तियां बस जाती हैं। मानसून के दौरान इन इलाकों में पानी भरना आम बात है। इसकी निकासी नहीं हो पाती है और एक जगह इकट्ठा हुए पानी से बीमारियां भी पनप जाती हैं। इसके चलते ही मानसून के दौरान मलेरिया, डेंगू, बुखार जैसी बीमारियां लंबे समय तक लोगों को परेशान किये रहती हैं। इससे स्वास्थ्य विभाग का काम भी बढ़ जाता है। ऐसे हालातों के चलते लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ता है। इस दौरान आम नागरिकों की जान जोखिम में नहीं पड़े इसके लिए सरकार को भी अपने प्रशासन को सख्त हिदायत देकर जनसमस्या का निदान करना चाहिए।     

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-राजीव जैन
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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