जाने राजकाज में क्या है खास
हार्ड कोर वर्कर्स की मन की बात समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।
चर्चा में रीति-नीति
सूबे में पिछले एक सप्ताह से रीति और नीति दोनों की चर्चा जोरों पर है। इससे सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने के साथ ही इंदिरा गांधी भवन में स्थित पीसीसी का ठिकाना भी अछूता नहीं है। उप चुनावों में कैंडिडेटस के सेलेक्शन को लेकर दोनों दलों के हार्ड कोर वर्कर अपने-अपने ठिकानों पर चटकारे लिए बिना नहीं रहते। राज का काज करने वाले भी लंच केबिनों में बतियाते हैं कि पिछले कुछ सालों से कैंडिडेटस के सेलेक्शन में रीति और नीति कोसों दूर है, तो हार्डकोर वर्कर्स भी रामभरोसे हैं। टॉप लीडर्स को लाल आंखें दिखाने का फॉर्मूला अपनाने वाले भाई लोगों की बीस अंगुलियां घी में रहती हैं। हार्ड कोर वर्कर्स की मन की बात समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।
मायने मुंह से निकली बात के
किसी भी बड़े आदमी के मुंह से निकली बात का कोई न कोई मायने जरूर होता है। वो तो उसका अर्थ निकालने वाले पर निर्भर करता है कि वह क्या सोचता है। अब देखो न, भगवा वालों के ठिकाने पर गत दिनों एक खांटी भाई साहब के मुंह से राज की कुर्सी को लेकर जो बात निकली, उसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। शेखावाटी की धरा पर पले-पढेÞ और प्योर किसान पुत्र का दावा करने वाले भाई साहब ने भी मौके की नजाकत को भांप कर अपनी जादूगरी दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आखिरकार भाई साहब ने भी अपना मुंह खोल ही दिया कि मेरी जुबान से निकली बात सही भी हो सकती है। अब ठिकाने में ठाले बैठे भाई लोग अपने-अपने हिसाब से मायने निकाल रहे हैं।
राज वालों पर नहीं विश्वास
राज का काज करने वालों का कोई सानी नहीं है। हर बात को घुमाने में माहिर इन भाई लोगों की एक बानगी ने राज करने वालों को भी जता दिया है कि ऐसा-वैसा चलने वाला नहीं है। दरबार के एक रत्न ने विदेश की हवा खाने का सपना देखा और पासपोर्ट के लिए अपने विभाग का काज करने वाले सचिव को सत्यापन प्रमाण पत्र बनाने का हुक्म दे डाला। आदिवासी इलाके से ताल्लुक रखने वाले रत्न को जवाब मिला कि ये काम जीएडी का है। वहां पहुंचे रत्न को यह कहकर टरका दिया कि यहां तो सिर्फ एनओसी मिलती हैं। राज करने वालों की लंच केबिन में चर्चा है कि बैठे ठाले कौन मुसीबत मोल ले, पता नहीं दफा 129 का ही मामला पेण्डिंग हो।
पर्ची का कमाल
दिल्ली दरबार की जंग में पांच सीटों पर बल्ले-बल्ले होने के बाद कांग्रेसी भाइयों की हौसलों की उड़ान थम नहीं रही है। किसी नेता की महत्वाकांक्षा कम होने का नाम ही नहीं ले रही। लक्ष्मणगढ वाले गोविन्द जी के उत्तराधिकारी के लिए भी जोड़ तोड़ करने वाले भाई लोग दिल्ली में मैडम के दरबार तक में मत्था टेक आए। कुछ भाई लोगों ने मैडम के सामने जातिगत नेतागीरी करने वाले भाई साहबों के नाम भी परोस दिए। मैडम कुछ फैसला करतीं, इससे पहले एक और पर्ची थमा दी गई। पर्ची का असर भी जोरदार रहा। पर्ची में केवल यह लिखा था कि यह कैसी कांग्रेस है कि राजस्थान में 70 साल के बाद भी दलित और अल्पसंख्यक तबके के लोग संगठन की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए।
एक जुमला यह भी
इन दिनों राजधानी के इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ठिकाने पर एक चर्चा जोरों पर है। ठिकाने पर रोजाना आने वाले कार्यकर्ता आपसी संवाद में कबूल करते हैं कि बिना स्ट्रांग लीडरशिप के मतदाता वोट नहीं डालता है। दिल्ली की सरकार की जंग में भी मतदाता की मंशा तो पक्ष में थी, लेकिन लीडरशिप का मैसेज नहीं दिया जा सका। पार्टी भी विपक्ष की हैसियत से वोट नहीं लेना चाहती। सूबे की सरकार और दिल्ली सरकारों के चुनावों की हार का प्रमुख कारण भी लीडरशिप ही है।
एल एल शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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