बिलकिस बानो मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे दो दोषियों की अंतरिम जमानत याचिका खारिज

बिलकिस बानो मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे दो दोषियों की अंतरिम जमानत याचिका खारिज

उच्चतम न्यायालय ने गुजरात में वर्ष 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसके परिवार के कई सदस्यों की निर्मम हत्या के दोषी दो लोगों की अंतरिम जमानत याचिकाएं शुक्रवार को खारिज कर दी।

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने गुजरात में वर्ष 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसके परिवार के कई सदस्यों की निर्मम हत्या के दोषी दो लोगों की अंतरिम जमानत याचिकाएं शुक्रवार को खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पी वी संजय कुमार की पीठ ने दोषी राधेश्याम भगवानदास उर्फ लाला वकील और राजूभाई बाबूलाल सोनी की याचिकाओं पर की वैधता पर सवाल उठाते हुए उन पर विचार करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया।

पीठ ने याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि यह याचिका क्या है? यह कैसे स्वीकार्य है? बिल्कुल गलत है। हम अपील पर कैसे सुनवाई कर सकते हैं? नहीं, अदालत यहां अपील पर सुनवाई नहीं कर सकती।

दोनों दोषियों ने गुजरात सरकार द्वारा उन्हें सजा में छूट देने के आदेश को खारिज करने के महीनों बाद अंतरिम जमानत के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने ने अपनी याचिकाओं में दलील दी थी कि जब तक इस अदालत द्वारा उनकी छूट से संबंधित याचिकाओं पर नया फैसला नहीं लिया जाता, जब तक उन्हें अंतरिम जमानत दी जाए।

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दोनों दोषियों की ओर से पेश अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने याचिका वापस लेने की मांग की।

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शीर्ष अदालत ने आठ जनवरी 2024 को गुजरात सरकार के अगस्त 2022 के उस फैसले को रद्द कर दिया था, जिसमें 2002 के गुजरात सांप्रदायिक दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसके परिवार के कई अन्य सदस्यों की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए 11 दोषियों को छूट देने का फैसला किया गया था। शीर्ष अदालत ने तब इन सभी 11 दोषियों को दो सप्ताह के भीतर जेल प्रशासन के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था।

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गुजरात सरकार ने मई 2022 के फैसले के बाद छूट दी थी, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि छूट के आवेदन पर उस राज्य की नीति के अनुरूप विचार किया जाना चाहिए, जहां अपराध किया गया था, न कि जहां मुकदमा चला था।

दोनों दोषियों ने आठ जनवरी, 2024 के फैसले के बाद अदालत के दो सदस्यीय पीठ के फैसले की वैधता पर सवाल उठाते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने उनकी समयपूर्व रिहाई को रद्द करने के लिए पिछली संबंधित पीठ के फैसले को खारिज कर दिया था।

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