जब लोकतांत्रिक संविधान की रचना में राजस्थान के रजवाड़ों ने भी बंटाया था हाथ
प्रतिनिधियों में प्रजा मंडल के जननेता और राजघरानों के नुमाइंदे दोनों शामिल थे।
भारतीय संविधान के निर्माण में आमजन नेताओं के अलावा राजस्थान के रजवाड़ों के नुमाइंदों का भी हाथ रहा है। प्रजा मंडल के नेता तो संविधान के शिल्पकार रहे ही, कई रियासती प्रतिभाएं भी संविधान निर्माण में सक्रिय रहीं।
जयपुर। भारतीय संविधान के निर्माण में आमजन नेताओं के अलावा राजस्थान के रजवाड़ों के नुमाइंदों का भी हाथ रहा है। प्रजा मंडल के नेता तो संविधान के शिल्पकार रहे ही, कई रियासती प्रतिभाएं भी संविधान निर्माण में सक्रिय रहीं। इन प्रतिनिधियों में प्रजा मंडल के जननेता और राजघरानों के नुमाइंदे दोनों शामिल थे। जयपुर ने 3, जोधपुर और उदयपुर ने 2-2 प्रतिनिधि भेजे।
अजमेर: मुकुट बिहारी लाल भार्गव
उन्होने 1927 में ब्यावर में वकालत शुरू की। वे 1930 में कॉंग्रेस के सदस्य बने। 1941 के व्यत्किगत सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वे जेल गए। आजादी के बाद वे पहली, दूसरी और तीसरी लोक सभा के सदस्य रहे। उनका 18 दिसंबर 1980 को देहांत हो गया। भारत सरकार ने उनकी स्मृति में 2003 में डाक टिकट जारी किया था।
जयपुर: वी. टी. कृष्णमाचारी
वे निर्विरोध संविधान सभा के उपाध्यक्ष चुने गए। वे मूलत: मद्रास से थे और जयपुर रियासत के दीवान थे। इससे पहले वे बड़ौदा के दीवान भी रह चुके थे।
सरदार: सिंहजी खेतड़ी
खेतड़ी के ठाकुर। अस्थायी संसद के 52 तक सदस्य। राज्य सभा भेजे गए। 1958 से 1961 तक लाओस में भारत के राजदूत। उनका निधन 28 जनवरी, 1987 को हुआ। 30 अक्टूबर, 1985 को उन्होंने अपनी पूरी सम्पत्ति का ट्रस्ट बना दिया।
हीरा लाल शास्त्री
उन्होंने जयपुर स्टेट सर्विस से इस्तीफा देकर स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। वे वनस्थली विद्यापीठ के संस्थापक थे। आजादी से पहले वे जयपुर के दीवान रहे और बाद में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने।
उदयपुर: माणिक्यलाल वर्मा
वे बिजोलिया किसान आंदोलन के एक मुख्य नेता थे। आजादी के बाद वे भी राजस्थान के मुख्यमंत्री बने।
बलवंत सिंह मेहता
इनका जन्म उदयपुर के मशहूर मेहता परिवार में हुआ था। मेहता उदयपुर प्रजा मंडल के संस्थापक थे। भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से वे जेल गए और वहां यातना झेली।
जोधपुर: जयनारायण व्यास
वे मारवाड़ हितकारिणी सभा और जोधपुर प्रजा मंडल के संस्थापक थे। बाद में वे राजस्थान के मुख्यमंत्री बने।
बीकानेर: कुंवर जसवंत सिंह
वे बीकानेर स्टेट के दीवान थे। इनका पूरा नाम जसवंत सिंह तंवर था। ये पहली अस्थाई संसद के सदस्य भी रहे। राजस्थान के पहले मंत्रिमंडल में वे वित्तमंत्री और 52 से 56 तक पहले नेता प्रतिपक्ष रहे। इसके बाद राज्य सभी चले गए।
अलवर: रामचंद्र उपाध्याय
वे असहयोग आंदोलन के दौरान जेल गए। वे अलवर प्रजा मंडल के अध्यक्ष थे।
कोटा: आप्जी दलेल सिंह
पलाईथा के ठाकुर ओंकार सिंहजी के पुत्र थे। जयपुर की स्टेट सर्विस में रह चुके थे। वे सवाई मानसिंह द्वितीय के रिश्ते में भाई थे। संविधान सभा में सरदार पटेल के बहुत करीब आए और कई बार पं. नेहरू से भिड़े।
शाहपुरा: गोकुल लाल असावा
कोटा के हरबर्ट कॉलेज में दर्शन के प्रोफेसर पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बने। वे असहयोग आंदोलन में जेल गए।
भरतपुर: बाबू राजबहादुर
वे भरतपुर प्रजा मंडल के सदस्य थे। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। जनवरी 1947 में उन्होंने बेगार विरोधी आंदोलन शुरू किया। इसी आंदोलन के सिलसिले में वे एक जुलूस का हिस्सा थे, जिस पर पुलिस ने गोलियां चलाईं और आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया। वे आजादी के बाद ही जेल से रिहा हुए।
सिरोही: पटेल से भिड़े दो राजस्थानी सपूत
सिरोही के बंटवारे के पर पटेल से बलवंत सिंह मेहता और राजबहादुर भिड़े। इससे पटेल का माउंट आबू को बॉम्बे प्रदेश में शामिल करने का इरादा पूरा नहीं हो सका। लेकिन इस बहस से राजबहादुर नेहरु के चहेते हो गए और उन्हें मंत्री बनाया गया।
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