वर्ल्ड डायबिटीज डे : डायबिटीज के मरीजों के लिए बड़ी राहत, इंजेक्शन के दर्द से मिलेगी निजात, अब नेजल स्प्रे से हो सकेगी इंसुलिन मैनेज

इंसुलिन लेवल, सी पैप्टाइड और होमा आईआर टेस्ट से जान सकते हैं डायबिटीज का खतरा

वर्ल्ड डायबिटीज डे : डायबिटीज के मरीजों के लिए बड़ी राहत, इंजेक्शन के दर्द से मिलेगी निजात, अब नेजल स्प्रे से हो सकेगी इंसुलिन मैनेज

जयपुर में डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार देश में 42% लोगों को अपनी बीमारी का पता नहीं होता। इंसुलिन लेवल और सी-पेप्टाइड होमा-IR टेस्ट से प्री-डायबिटीज की पहचान संभव है। इंजेक्शन के दर्द से राहत देने वाली नेजल स्प्रे इंसुलिन तकनीक नया विकल्प बनेगी। एसएमएस अस्पताल में गंभीर जटिलताओं वाले मरीज बढ़ रहे हैं।

जयपुर। देश में हर 100 में से 42 लोगों को नहीं पता कि उन्हे डायबिटीज है। राजस्थान में भी डायबिटीज के केस काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। डायबिटीज की स्क्रीनिंग पहले से बढ़ गई है और मरीजों में डायग्नोज हो रही है। लेकिन ऐसे मरीज जो डायबिटीज होने के मुहाने पर हैं, सिर्फ दो टेस्ट से इस बीमारी से बच सकते हैं। इंसुलिन लेवल और सी पैप्टाइड होमा आईआर टेस्ट से व्यक्ति डायबिटीज के खतरे को पहचानकर इससे बच सकता है। वहीं डायबिटीज के मरीजों को जल्द ही बड़ी राहत मिलने वाली है। अब इंसुलिन इंजेक्शन की सुई के होने वाले दर्द से डायबिटीज के मरीजों को निजात मिल सकेगी।

एसएमएस में पहुंच रहे गंभीर लक्षणों के मरीज :

एसएमएस मेडिकल कॉलेज के सीनियर प्रोफेसर मेडिसिन और डायबिटीज रोग विशेषज्ञ डॉ. पुनीत सक्सैना ने बताया कि एसएमएस में डायबिटीज के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यहां बड़ी संख्या में डायबिटीज के ऐसे मरीज आ रहे हैं जिन्हें इंफेक्शन, किडनी फेलियर, हार्ट अटैक, गैंगरीन, पैरालाइटिक अटैक, दृष्टि दोष जैसी समस्या भी डायबिटीज की वजह से हो रही है। उन्होंने बताया कि डायबिटीज एक गंभीर और जानलेवा बीमारी है। इसे हल्के में ना लेकर समय रहते समुचित इलाज जरूरी है।

नेजल स्प्रे इंसुलिन तकनीक बनेगी वरदान :

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सीनियर एंडोक्राइनोलॉजिट डॉ. शैलेश लोढ़ा ने बताया कि डायबिटीज में इंसुलिन को मैनेज करने के लिए नेजल स्प्रे इंसुलिन तकनीक आ गई है। इस नई पद्धति में इंसुलिन को नाक के माध्यम से शरीर में पहुंचाया जाता है, जहां से वह ब्लडस्ट्रीम में तेजी से अवशोषित हो जाती है। यह तकनीक खास तौर पर उन मरीजों के लिए उपयोगी साबित हो सकती है जिन्हें बार-बार इंजेक्शन लगाने में असुविधा होती है। नाक के रास्ते दी गई इंसुलिन ब्रेन-लिवर पाथवे को भी सक्रिय करती है। जिससे ब्लड-शुगर का नियंत्रण अधिक संतुलित रहता है।

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डायबिटीज के हैं दो प्रकार :

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टाइप-1 डायबिटीज आमतौर पर बच्चों या किशोरों में देखी जाती है। इसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली गलती से अग्न्याशय की उन बीटा कोशिकाओं पर हमला कर देती है, जो इंसुलिन बनाती हैं।

टाइप-2 डायबिटीज मुख्य रूप से वयस्कों में होती है लेकिन बदलती जीवनशैली और मोटापे के कारण अब यह युवाओं और किशोरों में भी बढ़ रही है। इस स्थिति में शरीर इंसुलिन तो बनाता है लेकिन उसका प्रभाव कम हो जाता है।

इंसुलिन रिजर्व खत्म होने पर बढ़ता है खतरा :

सीनियर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. पीपी पाटीदार ने बताया कि हमारे शरीर में शुगर को पचाने के लिए पैनक्रियाज के बीटा सेल्स इंसुलिन का निर्माण करते हैं। इसमें सिर्फ 10 से 20 प्रतिशत इंसुलिन ही काम आता है बाकि 89 से 90 प्रतिशत रिजर्व में रहता है। जिन मरीजों में यह रिजर्व खत्म हो जाता है उन्हें डायबिटीज का खतरा सबसे ज्यादा है। इस स्थिति को ही प्री-डायबिटीज कहते हैं।

गर्दन पर काली पट्टी मैल नहीं डायबिटीज का सूचक :

डॉ. पाटीदार ने बताया कि मोटापे से ग्रस्त कई बच्चों या व्यस्कों की गर्दन के पीछे काली पट्टी होती है जिसे लोग मैल समझते हैं। जबकि यह शरीर में शुगर को पचाने के लिए पैनक्रियाज द्वारा बनाई गई अधिक इंसुलिन के जमाव के कारण बनती है। ऐसे में अगर आप अपनी गर्दन पर मैल जैसी काली पट्टी देखते हैं तो यह डायबिटीज का सूचक है। व्यायाम, संयमित दिनचर्या से यह पट्टी खत्म होगी तो आपकी डायबिटीज भी खत्म हो जाएगी।

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