बेकाबू खाद्य तेल

बेकाबू खाद्य तेल

खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ते उछाल के मद्देनजर सरकार ने जो ताजा कदम उठाया है

खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ते उछाल के मद्देनजर सरकार ने जो ताजा कदम उठाया है, जो पहले ही उठा लिया जाना चाहिए था। लेकिन यह कदम भी कोई ज्यादा राहत देने वाला शायद नहीं होगा। क्योंकि सरकार ने कोई दो महीने पहले तेलों के भण्डारण पर सीमा बांधने का फैसला ले चुकी है, लेकिन इसके बावजूद खाद्य तेल बेकाबू ही बने रहे। खाद्य तेलों में लगातार तेजी का लगातार सिलसिला बताता है कि देश में जमाखोरी और मुनाफाखोरी करने वालों की हरकतें लगातार जारी हैं। ऐसा तब है जब इस बार भारत में तिलहन का उत्पादन कम नहीं हुआ है। कोरोना महामारी के दौर में भी देश में कृषि पैदावार में बढ़ोतरी दर्ज हुई है। अन्तरराष्ट्रीय बाजार में जरूर खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि हुई है। विशेष कर पॉम ऑयल के दाम पिछले साल के मुकाबले 30 फीसदी अधिक हो चुके हैं, मगर भारत में तो खाद्य तेलों के दामों में पिछले साल के मुकाबले में सौ प्रतिशत तक की वृद्धि हो चुकी है, जो सामान्य नागरिक की खरीद क्षमता के बाहर है। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के बाद खाद्य तेलों के दामों ने आम गरीब आदमी से लेकर मध्यम वर्ग के परिवारों की हालत काफी बदतर कर दी है। घरों की रसोई का बजट बुरी तरह से बिगड़ गया है। खाद्य तेलों के अलावा बाजार हर जरूरत का सामान महंगा हो चला है। आम आदमी की आय का बड़ा हिस्सा तो रसोई में ही खर्च हो जाता है। हालांकि अब सरकार ने अगले साल के मार्च तक खाद्य तेलों की भण्डारण सीमा तय करने के साथ ही सरसों और तिलहन के वायदा कारोबार पर रोक लगा दी है। दरअसल, तेल एक जरूरी खाद्य पदार्थ है, जो हर परिवार के लिए जरूरी है। हालांकि खाद्य तेलों की महंगाई पर सरकार पहले से ही जता रही है, लेकिन कोई ऐसा कदम नहीं उठाया था जिससे लोगों को राहत मिल सकें। थोक और खुदरा बाजार में महंगाई के पीछे का बड़ा कारण खाद्य तेल ही हैं। अब सरकार के ताजा फैसले से जमाखोरों पर अंकुश लगेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है, लेकिन इसका असर दिखने में वक्त भी लगा सकता है। अभी त्योहारी सीजन का दौर चल रहा है। ऐसे में खाद्य तेलों का उपयोग भी बढ़ जाता है। अब लोगों के सामने मुश्किलें बढ़ेंगी। सरकार चाहती तो काफी पहले तेलों के दामों पर अंकुश लगा सकती थी।

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