पेड़ों को भाई मानती हैं इस गांव की बेटियां
बंजर गांव को बना डाला हरा-भरा
ग्राम पंचायत पिपलांत्री में बेटियां पेड़-पौधों को राखी बांधती है और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हैं।
राजसमंद। जिले में सोमवार को रक्षाबंधन के 3 दिन पहले इको फ्रेंडली राखी मनाई गई। बेटियों ने पेड़, जंगल, पानी और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश दिया। इस समारोह में दुनिया भर के कई देश के अधिकारी और पर्यावरणविद शामिल हुए और इस समारोह को ऐतिहासिक बना दिया। जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर स्थित निर्मल ग्राम पंचायत पिपलांत्री में बेटियां पेड़-पौधों को राखी बांधती है और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हैं। पिपलांत्री पंचायत में बच्चा पैदा होने पर 111 पौधे लगाए जाते हैं जिनकी देखभाल उसका परिवार करता है। पिपलांत्री पंचायत की ओर से पंचायत में बेटी का जन्म होने पर उसके नाम से एफडीपी की जाती है, जो 18 साल बाद उसे दे दी जाती है।
पिपलांत्री के मॉडल की जमकर हुई तारीफ
इस कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए यूनाइटेड नेशंस के कंट्री कोऑर्डिनेटर शोंबी शार्प भी पहुंचे। उन्होंने अपनी टीम के साथ इको फ्रेंडली रक्षाबंधन में भागीदारी निभाई। उन्होंने कहा कि पिपलांत्री का यह मॉडल अगर दुनिया आत्मसात कर ले तो दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण संकट की समस्या खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि दुनिया का 20 फीसदी आबादी का हिस्सा भारत है। ऐसे में एक छोटे से गांव की पहल पूरी दुनिया को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही है। पिपलांत्री मॉडल को दुनिया के कई देशों के स्कूल कोर्स में भी शामिल किया गया है। जिसे बच्चे पढ़कर इस मॉडल को अपनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
बेटियां पेड़ों को भाई मानती हैं, कभी बंजर हुआ करता था गांव
पिपलांत्री पंचायत में जन्म लेने वाली बेटियां पेड़ों को भाई मानती हैं। रक्षाबंधन के पहले पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधकर उनके संरक्षण का संकल्प लेती है। करीब 17 साल पहले चारों तरफ मार्बल खदानों से गिरा पिपलांत्री गांव बंजर हुआ करता था। लेकिन तत्कालीन सरपंच श्याम सुंदर का पर्यावरण के प्रति लगाव पिपलांत्री गांव को बंजर से हरा भरा कर दिया। गांव में बेटी हो या बेटा उनके पैदा होने पर 111 पौधे लगाए जाते हैं। जब तक वह पौधा बड़ा नहीं हो जाता उसकी देख-रेख वह परिवार करता है और फिर रक्षाबंधन पर्व से एक दिन पहले यहां की बेटियां उन्हीं पेड़ पौधों को राखी बांध कर रक्षा का संकल्प लेती है। इस दिन सुबह से ही गांव की बेटियां सज धज कर तैयार होती हैं, एक थाली में कुमकुम, चावल, रक्षा सूत्र के साथ एक नारियल लेकर वहां पहुंचती है। जहां पेड को रक्षा सूत्र बांधती हैं। सालों से चली आ रही इस परंपरा ने अब बड़ा रूप ले लिया है। दूर-दूर से बेटियां पेड़-पौधों को राखी बांधने के लिए यहां पहुंचती है। गांव की बेटियों ने बताया कि जिस तरह से दुनिया पर प्राकृतिक आपदा का खतरा मंडरा रहा है। कहीं ना कहीं यह मॉडल पर्यावरण को बचाने को लेकर सार्थक कदम है।
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