बहनें, जिन्होंने भाइयों की रक्षा की और धर्म-इतिहास में नाम लिखवाया
जीण माता आज भी हर भाई की रक्षा के लिए तत्पर हैं
यह पंद्रहवीं सदी का सच्चा किस्सा है। करणी माता उन दिनों जीवित थीं और उनका बहुत सम्मान था। मुलतान का शासक हुसैन खां लंगा पूगल के राव शेखा को युद्ध में पराजित कर गिरफ्तार कर ले गया। राव शेखा के परिजन करणी माता से मिलकर मदद मांगने आए।
रक्षाबंधन वैसे तो बहन की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहने वाले भाई के कर्तव्य की याद दिलाने वाला त्योहार है, लेकिन राजस्थान के जर्रे-जर्रे में ऐसी कहानियां भी बिखरी हुई हैं, जिनमें कुछ बहनों ने भाइयों की आगे बढ़कर रक्षा की। आइए, हम आज आपको ऐसी बहनों से मिलवाते हैं, जिन बहनों ने भाइयों की ऐसी रक्षा की कि उनके किस्से जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
करणी माता ने भाई पीरों की मदद से राव शेखा को रिहा करवाया, रिश्ता ऐसा कि 1947 तक मुस्लिम पीर मामा की सिलाड़ के रूप में प्रसाद भेजते थे
यह पंद्रहवीं सदी का सच्चा किस्सा है। करणी माता उन दिनों जीवित थीं और उनका बहुत सम्मान था। मुलतान का शासक हुसैन खां लंगा पूगल के राव शेखा को युद्ध में पराजित कर गिरफ्तार कर ले गया। राव शेखा के परिजन करणी माता से मिलकर मदद मांगने आए। वजह थी करणी माता को मुलतान के पीर बहन मानते थे। वे गईं। भाइयों के घर जाकर बैठ गईं। पीरों ने हुसैन खां लंगा को आदेश दिया कि शेखा को सम्मान रिहा करें। हुसैन खां ने न केवल राव शेखा को रिहा किया, उनके साथ अपने दो सैनिक भी भेजे। राव शेखा को पूगल सुरक्षित छोड़कर जाने लगे तो राव ने दोनों के हाथ पकड़कर कहा, आप नहीं जाएंगे। यहीं रहेंगे। वे वहीं रहे। उन्हें बेहद सम्मान मिला। उनकी मृत्यु हुई तो राव शेखा ने उनके सम्मान में खानकाहें बनवाईं, जहां आज भी उनके सम्मान में पूजापाठ और कव्वालियां होती हैं। करणीमाता और पीरों का यह रिश्ता इतना मजबूत रहा कि 1947 तक यानी सरहद बनने तक मुलतान से मुस्लिम पीर मामा की सिलाड़ के रूप में करणी माता के भक्तों के लिए प्रसाद भेजते थे। करणी माता के हिन्दू भक्त उनके पुत्र के समान हुए तो मां के भाई यानी मुस्लिम पीर उनके मामा! ये रिश्ता नाखून और चमड़ी जैसा रहा है।
जीण ने सिर्फ भाई हर्ष की ही नहीं, सभी समाजों के भाइयों की रक्षा की
ऐसा ही एक और नाम है जीण माता का, जिनकी याद में आज भी सीकर में प्रसिद्ध मंदिर है। जीण बहन का भाई हर्ष की पत्नी से विवाद हुआ तो वह तपस्या करने लगी। यह तपस्या सिर्फ अपने भाई के लिए नहीं, सबके लिए हुई और जीण एक जाति विशेष के बजाय सभी धर्म और जातियों के लिए पूजनीय हो गई। जीण माता आज भी हर भाई की रक्षा के लिए तत्पर हैं।
रोक्षन्ना ने राजा पुरु को राखी बांधकर सिकंदर को न मारने का वचन लिया
यह बात ईसा से तीन सदी पहले की है, जिसमें सिकंदर भारत पर आक्रमण के लिए आया तो उसने भारतीय संस्कृति के उन पहलुओं का भी फायदा उठाया, जिसमें शत्रु के प्रति भी सदाशयता दिखाना कर्तव्य माना जाता था। सिकंदर की पत्नी रोक्षन्ना ने बड़ी ही चतुराई से पति के शत्रु पुरु को राखी बांधकर वचन ले लिया था कि युद्ध में अगर सिकंदर पराजित भी हो जाएं तो पुरु अपनी बहन को वैधव्य का कलंक नहीं देगा। पुरु ने इस बात को माना और एक मौके पर सिकंदर बचा भी। कहते हैं, बाद में सिकंदर ने भी पुरु के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार किया और उन्हें शाासक ही रहने दिया।
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