चीन की कथनी और करनी में बड़ा अंतर
तनाव अभी कम हुआ भी नहीं
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की ईस्टर्न थियेटर कमान ने पिछले एक सप्ताह से जारी ताइवान के समुद्री और वायु क्षेत्र के करीब युद्धाभ्यास को फिर आगे बढ़ाते हुए उसमें तेजी कर दी है।
अमेरिका की नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद उत्पन्न हुआ तनाव अभी कम हुआ भी नहीं था कि अचानक अमेरिकी सांसदों के दौरे ने चीन को और भड़का दिया है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की ईस्टर्न थियेटर कमान ने पिछले एक सप्ताह से जारी ताइवान के समुद्री और वायु क्षेत्र के करीब युद्धाभ्यास को फिर आगे बढ़ाते हुए उसमें तेजी कर दी है। ताइवान जलडमरू मध्य क्षेत्र एक बार फिर अस्थिरता, तनाव के माहौल से घिर गया है। आशंका है कि कहीं युद्ध छिड़ गया तो उसकी आंच, प्रशांत-हिंद महासागर क्षेत्र को तो प्रभावित नहीं कर देगी। चीनी रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पेलोसी के बाद अमेरिकी सांसदों का यह दौरा, चीन की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन है। वह इसकी रक्षा के लिए तैयार है।
चीन वन चाइना नीति के प्रति संवेदनशील रहा है। भले ही वह अपने दूसरे छोटे-बड़े पड़ोसी देशों की सीमाओं पर अपनी विस्तारवादी और आक्रामक नीति अपनाता रहा हो। भारत से ‘एक चीन’ नीति का समर्थन दोहराने का आह्वान किया था। इसे संबंधों का आधार बताने पर जोर दिया। आश्चर्य, भारत से उसकी नीति का तो समर्थन करेगा, लेकिन सीमाओं पर घुसपैठ करने से बाज भी नहीं आता। अभी तक पूर्वी लद्दाख सीमा पर एलएसी के निकट कई संवेदनशील इलाकों से उसने अपनी सेना को पीछे नहीं हटाया है, जबकि अब तक सैन्य अधिकारियों की 15 वार्ताओं के दौर हो चुके हैं। इस बीच उसने पेंगांग झील के एक हिस्से पर सैन्य पुल का निर्माण तक कर लिया। हिंद महासागर में अपने जासूसी पोत युवान वांग-5 को श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर भेज दिया है। जिसका कई दिनों तक वहां पड़ाव रहेगा।
यहां बता दें कि भारत की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए श्रीलंका ने अपने बंदरगाह पर चीनी पोत को आने की इजाजत दी है। जबकि भारत ने संकट में फंसे श्रीलंका को हरसंभव मदद पहुंचाई जिसकी संयुक्त राष्ट्र तक ने प्रशंसा की है। यह तो भारत के पास ऐसी क्षमता है कि वह हर परिस्थिति से निपटने में सक्षम है। वह बाकायदा इस पर बारीकी से अपनी नजर बनाए रखेगा। चीन की कथनी करनी में कितना अंतर है। अपने विस्तारवादी और आक्रामक तरीकों के जरिए पड़ोसी देशों को घेरने और उकसाने का कोई अवसर नहीं चूकता। वह सिर्फ वार्ताओं के जरिए उन्हें उलझाए रखना है। उनकी आपत्तियों के निदान से उसका कोई लेना-देना नहीं है। एक दिन पहले अपनी मीडिया ब्रीफिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची कह चुके थे कि भारत की स्थिति स्पष्ट और सुसंगत है और उसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है। कोरोना दौरान फंसे भारतीय छात्रों की अब तक चीन वापसी नहीं हो पा रही है। इस मुद्दे पर चीनी राजदूत से सिर्फ आश्वासन मिला है।
बातचीत दौरान वीडांग ने 1998 में इंडियन एयरलाइंस के विमान के अपहर्ताओं में से एक अब्दुल रऊफ को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने के भारत के प्रस्ताव पर चीनी विरोध से जुड़े सवाल पर उन्होंने सफाई दी कि उनके देश को इस प्रस्ताव का मूल्यांकन करने के लिए समय चाहिए था।इससे पूर्व अजहर मसूद जैसे अन्य आतंकियों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में लाए गए प्रस्तावों का विरोध अपने वीटो पावर से करता रहा। वह सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता का भी विरोध करता आया है। ऐसे में विदेश मंत्री का कहना बिल्कुल सत्य है कि चीन ने तीन वर्ष से भारत के सीमावर्ती इलाकों में शांति भंग की है, इसका असर द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ेगा। यदि सीमा पर स्थिति सामान्य नहीं है, तो यह संबंध तो प्रभावित होंगे ही।चीन और अमेरिका के बीच यूक्रेन के बाद ताइवान के ताजा तनाव के पीछे यह आशंकाएं भी व्यक्त जा रही हैं कि कहीं इन दोनों देशों के नेताओं का ध्यान अपनी घरेलू राजनीति के इर्दगिर्द तो नहीं। चीन में नेशनल पार्टी कांग्रेस होने जा रही है।
(यह लेखक के अपने विचार है)
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