जिस पेंटागन में नहीं जा सकते कई अमेरिकी अधिकारी, वहां भारत को बेरोकटोक एंट्री

13,000 श्रमिकों ने बनाई बिल्डिंग

जिस पेंटागन में नहीं जा सकते कई अमेरिकी अधिकारी, वहां भारत को बेरोकटोक एंट्री

अमेरिका ने इसे द्वित्तीय विश्वयुद्ध के दौरान बनाया था। 1941-43 के बीच पेंटागन का निर्माण हुआ था। ये सबसे बड़ी बिल्डिंग्स में से एक है।

वॉशिंगटन। अमेरिका और भारत के संबंधों के बीच एक बड़ा डेवलपमेंट देखने को मिला है। अमेरिका के रक्षा मंत्रालय ने भारतीय रक्षा अताशे को अब बिना किसी रोक-टोक (अनएस्कॉर्ट) पेंटागन में जाने की इजाजत दी है। रक्षा अताशे आमतौर पर राजनयिक मिशन से संबद्ध एक सैन्य विशेषज्ञ होता है। अमेरिकी वायु सेना के सेक्रेटरी फ्रैंक केन्डाल ने बताया कि ये एक बहुत बड़ा फैसला है। उन्होंने कहा, अगर किसी को लगता है कि पेंटागन में बिना बाधा पहुंचना आम बात है तो मैं बता दूं कि मैं भी वहां बिना एस्कॉर्ट के नहीं जा सकता।  पेंटागन अमेरिका की रक्षा की रीढ़ है। दो मंजिला अंडरग्राउंड फ्लोर समेत पांच मंजिला और पांच कोणों वाली ये बिल्डिंग वॉशिंगटन डीसी के पास वर्जीनिया में स्थित है। इसी में अमेरिकी सेना, नौसेना, एयरफोर्स का ऑफिस भी है। अमेरिका ने इसे द्वित्तीय विश्वयुद्ध के दौरान बनाया था। 1941-43 के बीच पेंटागन का निर्माण हुआ था। ये सबसे बड़ी बिल्डिंग्स में से एक है। इसके निर्माण के समय तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूसवेल्ट ने इसे बिना खिड़कियों के बनाने को कहा था। लेकिन बाद में बिल्डिंग के इंजीनियर्स ने उन्हें समझाया कि इस तरह के निर्माण के लिए ये आइडिया प्रैक्टिकल नहीं है।

13,000 श्रमिकों ने बनाई बिल्डिंग
विश्वयुद्ध के दौरान सैन्य दफ्तर को एक केंद्र से जोड़ना अमेरिका की जरूरत बन गई थी। 13,000 से ज्यादा श्रमिकों ने दिन और रात की मेहनत की। सिर्फ आठ महीनों में ही पेंटागन इतना बन गया था कि तत्कालीन सेक्रेटरी आॅफ वॉर हेनरी स्टिमसन ने अपने दफ्तर को शिफ्ट कर दिया था। ब्रिटानिका की रिपोर्ट के मुताबिक ये 83 मिलियन डॉलर की लागत से 1943 में बन कर तैयार हो गया। ये इतना विशालकाय था कि ये उस समय की सबसे बड़ी आॅफिस बिल्डिंग था। इस दफ्तर को 29 एकड़ में बनाया गया, जिसमें 25,000 लोग काम कर सकते हैं। इसके बीच में पांच एकड़ का पार्क है।

क्यों हैं पांच कोण?
पेंटागन को बनाने के लिए सबसे पहले अरलिंगटन फार्म को चुना गया, जो पेंटागन के आकार का था। लेकिन बाद में इसके निमार्ताओं ने पाया कि इससे अर्लिंगटन नेशनल कब्रिस्तान और वाशिंगटन का व्यू ब्लॉक होगा। इस समय तक पांच कोणों वाला आकार निश्चित हो चुका था और राष्ट्रपति ने भी इसके लिए मंजूरी दे दी थी। बाद में एक नई साइट हूवर फील्ड्स को चुना गया। क्योंकि पहले से आकार तय था, इसीलिए इसको नहीं बदला गया। रूसवेल्ट ने भी कहा था कि उन्हें ये डिजाइन बहुत पसंद है, क्योंकि आज से पहले ऐसा कुछ भी नहीं बना था। नेशनल कब्रिस्तान का व्यू ब्लॉक न हो इसी कारण इसकी ऊंचाई भी 77 फीट पर रोक दी गई।

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