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चर्चा में नेताजी का नया अंदाज : मुलाकात के मायने : रत्नों की बढ़ती चिंता : मोय मन नहीं लागै : एक जुमला यह भी

चर्चा में नेताजी का नया अंदाज
सूबे में इन दिनों हाथ वाले कुछ भाइयों के नेतागिरी चमकाने के नए अंदाज को लेकर कइयों की नींद उड़ी हुई है। उड़े भी क्यों नहीं, मामला लाइन में लगे हार्डकोर वर्कर्स के फ्यूचर से ताल्लुकात जो रखता है। पिंकसिटी वाले भाई साहब ने भी अपने इस नए अंदाज से कइयों का दिल जला रखा है। सूबे की सबसे बड़ी पंचायत से जुड़े भाई साहब ने पहले तो पोस्टर और बैनरों में अपने साथ सैकण्ड जेनेरेशन की फोटो लगाकर मैसेज दे दिया कि भविष्य के लीडर और कोई नहीं बल्कि हमारी दूसरी पीढ़ी है। और अब खुद की जगह मुख्य अतिथि के रूप में पुत्र के भेज कर जले पर नमक छिड़कने का काम शुरू कर दिया। अब बेचारे आयोजकों को आनन-फानन में व्यवस्था बदलने में पसीने भी बहाने पड़ते हैं, लेकिन नेताजी को इसकी चिन्ता नहीं है, चूंकि मामला नेतागिरी चमकाने से जुड़ा है।


मुलाकात के मायने
गुजरे जमाने में पिंकसिटी की फर्स्ट लेडी रह चुकी मैडम ने अपनी पार्टी की आलाकमान सोनिया से मुलाकात क्या कर ली, उन्हीं के खास लोग उसके अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं। मायने निकालना भी उनकी मजबूरी है, चूंकि हाथ वाले कुछ बड़े नेता आलाकमान से वन टू वन होने के लिए 15 महीनों से काफी हाथ-पैर मार रहे हैं, मगर उनकी पार नहीं पड़ी। ज्योति से ज्वाला बन कर अपनी पार्टी के कई नेताओं को आंख दिखाकर किनारे लगा चुकी मैडम ने भी इटली वाली मैम के वाली फोटो वायरल कर मैसेज दे दिया कि कार सेवा करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा, बिना परवाह किए हार्डवर्क करने में ही भलाई है, वरना पाप धोने के लिए हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए कभी भी फरमान आने में देरी नहीं लगेगी। अब भाई लोगों को कौन समझाए कि राजनीति में जो होता है, वह दिखता नहीं है और जो दिखता है, वह होता नहीं है।


रत्नों की बढ़ती चिंता
इन दिनों राज के कई रत्नों का वजन एकदम कम होने लगा है। शरीर से भी दुबले हो रहे हैं, चेहरों पर भी चिंता की लकीरें हैं। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के दफ्तर में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। संगठन से जुड़े एक साहब ने दो रत्नों को इसका कारण पूछ भी लिया। बात जब बाहर आई तो, आसपास खड़े लोगों के पास हंसने के अलावा कोई चारा भी नहीं था। रत्नों का कहना था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली वालों की ओर से चलाई मुहिम सूबे में घुस गई, तो कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। इसकी याद आते ही खाना पीना तक भूल जाते हैं।


मोय मन नहीं लागै
खाकी वालों का कोई सानी नहीं है। वो जो भी करते हैं, डण्डे के जोर पर करते हैं। राज भी उनके आगे बेबस है। पीएचक्यू में बैठे कई खाकी वालों का कुछ दिनों से काम में मन नहीं लग रहा। कोई बड़ा काम करने से कोसों दूर हैं। कानून-व्यवस्था तक की चिंता नहीं है। जब भी राजधानी के साथ सूर्यनगरी में कमिश्नर बदलने की बात चलती है, खाकी वाले काम धाम छोड़ कर उसकी चिंता में डूब जाते हैं। कई साहब जुगाड़ बिठाने के लिए भाग दौड़ में लग जाते हैं। और तो और राज के सामने में भी एक की चार लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ते, मगर राज है कि कोई न कोई बहाना बना कर उनकी बातों को अनसुनी कर देते हैं। क्योंकि यहां डण्डे का जोर तो चल नहीं सकता।

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एक जुमला यह भी
सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर एक चर्चा जोरों पर है। चर्चा भी छोटी मोटी नहीं, बल्कि पार्टी की थमी रफ्तार को लेकर हैं। दिल्ली से कई बड़े इंजीनियर भी आए, पर स्पीड बढ़ी नहीं। दीपावली की रोशनी के बाद कइयों को बैठने की जगह मिलनी थी, लेकिन वह टलती नजर आ रही है। अब हर कोई एक दूसरे से पूछ रहा है कि पौने तीन साल में पार्टी कितने कदम चली।

   एल. एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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