जानें राज-काज में क्या है खास
राज का काज करने वाले भी चर्चाओं से अछूते नहीं हैं
सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में दस दिनों से बहस चल रही है कि राह चलते मुर्दे को कंधा देने से स्वर्ग नहीं मिलता, तो फिर बीच में जाकर रामनाम बोलने की जरूरत क्या थी।
अब और बढ़ी चिन्ता
सूबे में शनि के बाद हाथ वाले भाई लोगों की चिन्ता और बढ़ गई। बढ़े भी क्यों नहीं, स्टूडेंट गवर्नमेंट के रिजल्ट ने मैसेज जो दिया। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के दफ्तर में चर्चा है कि यूथ के भरोसे अगले साल चुनावी जंग में उतरने का सपना देखने वाले लीडर्स को धरा पर उतर कर अभी से ही अपना आगा-पीछा देखने में फायदा है, वरना शनि वाले दिन की तरह किरकिरी होने में कोई देर नहीं लगेगी। यूथ ने भी खुले में मैसेज देने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि हाईलेवल पर बैठे लीडर्स की मनमानी कतई नहीं चलेगी। यूथ के मैसेज को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।
मुर्दे को कंधा
सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में दस दिनों से बहस चल रही है कि राह चलते मुर्दे को कंधा देने से स्वर्ग नहीं मिलता, तो फिर बीच में जाकर रामनाम बोलने की जरूरत क्या थी। सरपंचों के आंदोलन को लपकने की सलाह देने वालों के मकसद को तलाशने में जुटे भाईसाहबों का कहना है कि इससे सीधा नहीं जुड़ना था। संगठन तो पहले ही कन्नी काट रहा था, ऊपर से राज ने भी बात तक नहीं की। इससे ज्यादा किरकिरी पहले कभी नहीं हुई।
मूड में बदलाव
मैडम के दौरे के बाद भाईसाहब के मूड में आए बदलाव को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। राज का काज करने वाले भी चर्चाओं से अछूते नहीं हैं। जो भाईसाहब सवाल पूछने पर चाय के लिए इशारा करने में माहिर हैं, वो खुद सवाल पैदा कर जवाब देने लगे, अखबार वालों का माथा ठनका। खबरनवीसों ने भाईसाहब के मन को टटोला, तो बात जुबान पर आई। सहज भाव से बोले क्या करें जब आप लोगों ने पिंकसिटी के नेताजी की जुबान को तिल का पहाड़ बना दिया और जो अच्छा हुआ उसे कोने में रख दिया। अब मैंने सोचा कि चलो अपन ही सवाल कर लेते हैं और जवाब तो अपन को देना ही है, तो कंजूसी किस बात की।
चर्चा फिर आरक्षण की
भगवा वालों में देवनारायण के वंशजों को अलग से आरक्षण को लेकर अब फिर बहस छिड़ने लगी है। बहस भी छोटी-मोटी नहीं, बल्कि आरक्षण को लेकर पार्टी का रुख स्पष्ट करने को लेकर है। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि भगवा का एक गुट आरक्षण को लेकर पार्टी की नीति का खुलासा करने के पक्ष में है। सूबे के पूर्वी हिस्से से ताल्लुकात रखने वाले भाई साहबों ने तो मुंह खोल दिया है कि पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में इसका जिक्र नहीं किया तो कुर्सी सिर्फ मुंगेरीलाल के सपने बन कर रह जाएगी। अगली कोर गु्रप की मीटिंग में चर्चा के लिए एक गुट ने अभी से दबाव भी बनाना शुरू कर दिया है।
चेहरों पर चिंता की लकीरें
पिछले दो दिनों से दौसा वाले डाक्टर साहब को लेकर भगवा वाले भाई लोगों के चेहरों पर चिन्ता की लकीरें हैं। ऐसा उनकी नई चाल को लेकर है। गुजरे जमाने में अपने पैंतरों से अपनी अर्द्धांगनी को सूबे के दरबार में भेजने वाले मिनेश वंशज ने इस बार कइयों की गलत फहमियां दूर कर दी। शिक्षा के मंदिर में छह साल पहले तीसरे मोर्चे की प्रभा को आशीर्वाद देकर राज की नींद उड़ाने वाले किरोड़ी ने इस बार फिर रास्ता बदल लिया। दो दिन पहले ही एबीवीपी के पक्ष में मुंह खोल कर मौन धारण भी कर लिया। उनके साथ किरोड़ी तौलिया लेकर चलने वाले राजकपूर की अनाड़ी फिल्म का गाना गुनगुना रहे हैं कि समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं। बाकी और कुछ पूछना है, तो पीळी लूगड़ी के दरबार में जाकर धोक लगाओ।
एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि अनजान डर को लेकर है। जुमला भगवा वाले भाई लोगों के बजाय हाथ वालों में ज्यादा चल रहा है। दोनों दलों के ठिकानों पर हर कोई आने वालों को भी सुनाया जाता है। जुमला है कि जो बुरे काम करते हैं, डर उनकी नस-नस में होता है।
- एल एल शर्मा
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