राजकाज
ठीकरा हार का : जीत के बाद भी नींद उड़ी : अब नजरें बड़े साहब की कुर्सी पर : पहले घर संभालो : एक जुमला यह भी
ठीकरा हार का
सूबे में भगवा वाले भाई लोगों ने दोनों सीटें बुरी तरह क्या हारी, कि एक-दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ने पर कोई कसर नहीं छोड़ रहे। सरदार पटेल मार्ग पर स्थित बंगला नंबर 51 में बने अपने ठिकाने पर आने वाला हर कोई वर्कर जोड़-बाकी और गुणा-भाग लगाए बिना नहीं रहते। अब इन लोगों को कौन समझाए कि जब टिकट ही गांधीजी को सतौल कर दिल्ली में बैठे मेष राशि वाले भाई साहब ने थोपे हैं, तो हार की पगड़ी बेचारे सूबे के नेताओं के सिर बांधने से कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा। अब तो दिल्ली वालों को सीख लेनी है कि मैडम को दूर रख कर राज की कुर्सी के सपने देखना, अमावस्या की रात में चांदनी ढूंढने के सिवाय कुछ नहीं है।
जीत के बाद भी नींद उड़ी
हाथ वाले भाई लोगों का भी कोई जवाब नहीं। अब देखो ना धरियावद और वल्लभनगर में जीत के बाद भी एक खेमे के भाई लोग कुछ नहीं है। उनके चेहरों पर चिन्ता की लकीरें दिखाई देने लगी हैं। सोलह महीनों से तीन आए और तीन गए के खेल में फंसे भाई लोगों की नींद तो पहले ही डबल गेम खेलने वालों ने उड़ा रखी है, ऊपर से चुनावी नतीजों ने जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ठिकाने पर चर्चा है कि उप चुनावों में दोनों सीटें जीतने से जोधपुर वाले अशोक जी भाई साहब की मजबूती तो बढ़ी है लेकिन राज की कुर्सी के सपने देखने वाले भी, उस दिन को कोस रहे हैं, जब बिना आगा-पीछा सोचे मानेसर जाने में कोई देरी नहीं की थी। राज का काज करने वाले सही तो कहते हैं कि राजनीति में जो होता है वह दिखता नहीं है और जो दिखता है, वह होता नहीं है।
अब नजरें बड़े साहब की कुर्सी पर
सूबे के बड़े साहब की कुर्सी खाली होने में अभी तीन महीने बाकी है, परन्तु ब्यूरोक्रेसी वाले अभी से हिसाब-किताब लगाने में बिजी हैं। दिवाली की रामा-श्यामा में हाल-चाल जानना तो महज खानापूर्ति में ही निपट गया, लेकिन कुर्सी को लेकर घण्टों तक बातें किए बिना नहीं रहे। कुछ साहब लोगों की गणित भी तगड़ी है, बिना पूछे ही ज्ञान बांटने में कोई कंजूसी नहीं करते। अब देखो ना, उनकी गणित के हिसाब से जोधपुर वाले अशोकजी भाई साहब सूबे वाले साहब को ही कुर्सी देना पसंद करेंगे, तो वर्ष 1988 बैच के सीकर वाले पीकेजी फिट हैं, वरना तीन मैडमों के फेर में सलेक्शन करने में पूरा जोर आए बिना नहीं रहेगा। तीनों ही मैडमें पड़ोसी सूबे यूपी से ताल्लुकात रखती हैं और साल 2023 में षष्ठीपूर्ति करने वाली हैं। एक वर्ष 85 बैच तो दो 87 बैच की हैं। चर्चा है कि राज का कोमल मन भी महिला उत्थान के पक्ष में दिखता नजर आ रहा है।
पहले घर संभालो
भगवा वालों को जेपी भाई साहब की दी जा रही नसीहत को खुद के लोग ही पचा पाए। भ्रष्टाचार के संक्रमण को लेकर भाई साहब की ओर से पेला गया भाषण से खुसर फुसर हो रही है। पार्टी कार्यालय में भाई साहब के मुंह से जब निकला कि भ्रष्टाचार का संक्रमण सभी दलों में आ गया, तो लोगों ने मुंह खोला कि पहले खुद के घर को संभालो।
एक जुमला यह भी
इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि जुमलेबाजों को लेकर है। जुमलेबाज सत्ता में ही नहीं, बल्कि में विपक्ष में भी कम नहीं है। हाथ वालों के साथ भगवा वालों के ठिकाने पर खुसरफुसर है कि इन दिनों पूरी कंट्री ही जुमलेबाजी में फंस चुकी है। दोनों तरफ के जुमलेबाजों के फेर में मेरा भारत महान खतरनाक मोड़ पर है। बड़ी चौपड़ से स्टेच्यू सर्किल तक चर्चा है कि जुमलाबाजी के चक्कर में देश धार्मिक युद्ध की कगार पर है।
एल. एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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