सतरंगी सियासत

चक्रव्यूह में नीतीश

सतरंगी सियासत

हालांकि बाद में नीतीश-पीके की मुलाकात भी। और ट्वीटर के जरिए पीके के इशारे भी। उधर, राजद के नेता कार्यकर्ता रंग में आ रहे। नीतीश के एक मंत्रीजी का बयान।

नीतीश ने भाजपा का साथ क्या छोड़ा। उनके बुरे दिन शुरू हो गए। दिल्ली में उनका विपक्षी एकता का मिशन फुस्स हो गया। कांग्रेस ने संकेत कर दिया। कितनी भी कोशिश कर लो। भाजपा के खिलाफ राजनीतिक मिशन में कांग्रेस के बगैर बात नहीं बनेगी। उधर, पीके के बयान चर्चा में। पीके कभी जदयू के उपाध्यक्ष रहे। हालांकि बाद में नीतीश-पीके की मुलाकात भी। और ट्वीटर के जरिए पीके के इशारे भी। उधर, राजद के नेता कार्यकर्ता रंग में आ रहे। नीतीश के एक मंत्रीजी का बयान। हम चोरों के सरदार। गजब तो या कि बाद में भी मंत्रीजी अपने बयान पर अड़े रहे। लेकिन अब बात पहले जैसी बिल्कुल नहीं। अब न तो तेजस्वी यादव जूनियर रहे एवं अनुभवहीन। और न ही नीतीश का वह राजनीतिक रूआब। भाजपा दूर जा चुकी। निकट भविष्य में फिलहाल अब कोई मेल की संभावना भी नहीं। सो, अब आगे क्या? तेजस्वी के पीछे लालू यादव। इन सबमें वह अपना पुराना हिसाब करने से कहां चूकने वाले?

चर्चा में यात्रा!
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा मीडिया में सुर्खियां बटोर रही। आखिर अभी तक राहुल गांधी साथ जो चल रहे। सबसे पहले राहुल गांधी की टी शर्ट कीमत को लेकर चर्चा का विषय बनी। फिर एक पादरी से हुई उनकी बातचीत। बाकी सब तो ठीक। लेकिन पूर्व में पादरी हेट स्पीच के मामले में जेल जा चुके। हालांकि पादरी के विचारों से कांग्रेस ने नाइत्तेफाकी जताई। फिर ट्वीटर के जरिए संघ की निक्कर की आग लगते हुए फोटो पोस्ट करना। यह चर्चा का विषय बनना ही था, सो हुआ। अब एक दुकानदार से वसूली को लेकर हुई तोड़फोड़ का विडियो सामने आ गया। फिर पार्टी की सफाई। वह कारपोरेट से धन नहीं लेती। पूर्व में भी ऐसे ही इंतजाम किया जाता रहा। हालांकि जो लक्ष्य यात्रा का शुरूआत में तय किया गया। उसमें कितनी सफलता मिली। यह तो पार्टी बताएगी। लेकिन यात्रा किसी न किसी बहाने चर्चा में। इससे यात्रा के रणनीतिकार खुश और संतुष्ट! वहीं, पार्टी नेताओं का दावा। जनता जुड़ रही।

फलक से गायब!
कभी मेधा पाटकर, अरूंधती राय और तीस्ता सीतलवाड़ का जलवा। कई बार इनके बयान सुर्खियों में। लेकिन आज समय के साथ इन तीनों की चर्चा मंद पड़ गई। मेधा पाटकर सामाजिक कार्यकर्ता। उन्होंने सरदार सरोवार बांध परियोजना का विरोध करके देश-विदेश में खूब नाम कमाया। दूसरी, लेखक अरूंधरी राय। उनकी एक पुस्तक और उसको मिले पुरस्कार ने उन्हें खूब शोहरत दी। उनका वामपंथी झुकाव किसी से छुपा नहीं। तीसरी, तीस्ता सीतलवाड़। वह पीएम मोदी के विरोध के लिए जानी जाती रहीं। लेकिन आजकल यह तीनों ही बियांबान में। मानो फलक से गायब। लेकिन ऐसा क्यों? असल में, मेधा पाटकर की दुकान उसी समय बंद हो गई। जब सरकार द्वारा विस्थापितों के लिए किए गए वादे पूरे कर दिए गए। सीतलवाड़ जेल जा चुकीं और अभी जमानत पर। शायद उनके नैरेटिव को लोग समझ गए। वहीं, अरूंधति राय का ज्ञान अब मंद पड़ गया। हां, जिसके लिए उन्हें बुकर पुरस्कार दिया गया। उन्होंने भारत में वह काम कर दिया। उनके बयान इसकी गवाही!
क्या होगा?

ज्यो-ज्यों कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नजदीक आ रहा। राजस्थान में भी हलचल और कयास तेज। राजनीतिक हमले तेज हो रहे। सीएम गहलोत ताबड़तोड़ दौरे कर रहे। जानकार इसके संकेत समझ रहे। वहीं, सचिन पायलट खामोश। उनको लेकर मंत्री अशोक चांदना के बयान की भाषा लोगों को रास नहीं आ रही। असल में, सारा माजरा गहलोत के दिल्ली जाने की चर्चा का। और फिर किसी और के सीएम की कुर्सी संभालने का। यदि पायलट का विरोध हुआ। तो वह क्या करेंगे? सीएम फेस कौन होगा? फिर गहलोत कुर्सी छोड़ेंगे भी या नहीं? तो फिर कांग्रेस अध्यक्ष किसे बनाया जाएगा? मतलब होचपौच के हालात! कोई भी सटिक अनुमान लगा पा रहा। मतलब गांधी परिवार शायद चीजों को सीक्रेट रखने की रणनीति में सफल! अब कहा जा रहा। कांग्रेस की नजर 2023 के साथ ही 2024 पर भी। बताया जा रहा, राजस्थान में फैसला उसी हिसाब से होगा। इस बीच, गहलोत के बयान। वह अलग-अलग संकेत कर रहे। लेकिन पायलट की खामोशी बहुत कुछ कह रही।

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गुजरात चुनाव...
साल 2002 के बाद यह पहला अवसर। जब गुजरात विधानसभा चुनाव की सरगर्मीं उतनी तीव्रता से नहीं। इससे पहले गुजरात चुनाव की चर्चा विदेश में भी रहती आई। कांग्रेस की ओर से दो सियासी दिग्गज मोर्चा संभाल रहे। अशोक गहलोत वरिष्ठ पर्यवेक्षक। तो रघु शर्मा प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी। पिछली बार पीएम मोदी और अमित शाह को गुजरात चुनाव निकालने के लिए अच्छा खासा पसीना बहाना पड़ा था। भाजपा सौ का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई। अशोक गहलोत की चुनावी रणनीति ने मोदी-शाह को खूब छकाया था। हां, पिछली बार तीन युवा नेता गुजरात में छाए रहे। लेकिन इस बार बिखर गए। पटेल आरक्षण आंदोलन के अगुवा बने हार्दिक पटेल अब भाजपा में। तो ओबीसी समाज में सुधार की बात करने वाले अल्पेश ठाकोर भी भाजपा में आ गए। तीसरे बचे जिग्नेश मेवाणी। जो उस समय दलित अत्याचार के खिलाफ मुखर आवाज बने। बाद में निर्दलीय विधायक बने मेवाणी आजकल कांग्रेस में। इन तीनों युवाओं ने पिछली बार भाजपा को खूब छकाया।

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कश्मीर की सियासत
जम्मू-कश्मीर को लेकर भाजपा लगातार सियासी जानकारों को चौंका रही। पूर्व में वह पाक से आए विस्थपितों, राज्य के दलितों के साथ न्याय कर चुकी। तो उसके बाद देश के अन्य भागों से आए लोगों के लिए भी मतदान का रास्ता खुल चुका। भाजपा का इरादा पीडीपी का हौंसला पूरी तरह से पस्त कर देने का।ं इसीलिए नेशनल कांफ्रेंस के प्रति थोड़ा नरम रवैया भी। सरकार जम्मू-कश्मीर के केन्द्र शासित प्रदेश बनने के बाद ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद का चुनाव करवा चुकी। मतलब निचले स्तर पर सारे फैसले आम जनता द्वारा चुने गए नुमाइंदे कर रहे। इसीलिए विधानसभा चुनाव लगातार किसी न किसी बहाने आगे खिसक रहे। अब भाजपा का एक और दांव। गुलाम अली खटाना को उच्च सदन के लिए मनोनीत किया गया। वह घाटी के गुर्जर समाज से आते। जिसकी जनसंख्या करीब 14 फीसदी। मतलब अब तक भाजपा का अपरहैंड। इसी बीच, गुलाम नबी आजाद का बयान। अब कश्मीर में अनुच्छेद-370 की बहाली नामुमकिन। सो, कांग्रेस कासी असहज!

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