प्रेरणा के स्रोत कप्तान साहब
कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी की जयंती पर विशेष...
‘‘कप्तान साहब’’
के नाम से प्रसिद्ध दुर्गाप्रसाद जी चौधरी की गिनती भारत के उन महान सपूतों में की जाती है, जो जीवन पर्यन्त अन्याय और अत्याचार के खिलाफ रहे।
देश को आजादी मिलने से पहले जहां उनकी लड़ाई ब्रिटिश साम्राज्य और देश की सामन्तशाही के खिलाफ रही, वहीं आजादी के बाद वे देश में सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक मूल्यों के लिए अंतिम सांस तक संघर्षरत रहे। वर्ष 1936 में संस्थापित अपने समाचार पत्र ‘‘दैनिक नवज्योति’’ का भी कप्तान साहब ने अपने राजनीतिक, सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति में बखूबी इस्तेमाल किया। - अशोक गहलोत, मुख्यमंत्री
र्गाप्रसादजी की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा नीमकाथाना, जयपुर-सांभर, रामगढ़ शेखावाटी और कानपुर में हुई। मात्र 13 वर्ष की आयु में वह महात्मा गांधी के आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ ‘‘जनसहयोग आन्दोलन’’ में ऐसे कूदे कि सामाजिक और राजनीतिक कार्य उनसे जीवन पर्यन्त छोड़ते न बने, स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के कारण दुर्गाप्रसाद जी को अनेक बार जेल जाना पड़ा। वर्ष 1930 से 1947 के दौरान कांग्रेस सेवादल द्वारा चलाए जा रहे आन्दोलन का नेतृत्व करने के कारण ही वे कप्तान के रूप में मशहूर हुए। कप्तान साहब ने ‘‘बिजौलिया सत्याग्रह’’ में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। उन दिनों राजस्थान में किसानों पर दोहरे अत्याचार थे। जहां एक और उन्हें ब्रिटिश हुकुमत की गुलामी झेलनी पड़ती थी, वहीं दूसरी और राज्य में सामंती प्रथा के चलते उनका जीवन अन्याय और अत्याचारों से भरपूर था उन्हें क्रूर अमानवीय यातनाओं को सहते रहने के बावजूद भारी कर चुकाने पड़ते थे। 20वीं सदी के दूसरे और तीसरे दशक के बीच विजयसिंह पथिक, मानिक लाल वर्मा, साधु सीताराम और प्रेमचन्द भील के नेतृत्व में किसानों की ओर से एक प्रभावी आन्दोलन चलाया गया। बिजौलिया सत्याग्रह के नाम से जाने, जाने वाला इस ऐतिहासिक आन्दोलन की उपलब्धि मात्र यह नहीं थी कि किसान अपनी तत्कालीन समस्याओं से निजात पा गए, बल्कि किसानों द्वारा इस आन्दोलन को चलाए जाने के कारण उनमें समझ बढ़ी और अपने ऊपर विश्वास पैदा हुआ, जिसने उन्हें अपना महत्व समझाते हुए समाज और देश की मुख्य धारा में ला खड़ा किया।
अभिवादन ग्रंथ स्वतंत्रता संग्राम एवं पत्रकारिता के कीर्ति पुरुष,कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी से साभार
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