जागरुकता से बढ़ा लिंगानुपात, एक हजार युवा के मुकाबले 930 पर पहुंची बेटियां
बदल रही परिपाटी, बालिकाओं को दे रहे प्राथमिकता, चिकित्सा विभाग की भी रही पहल, समझदार लोग आ रहे आगे
बीतें पांच सालों में कोटा का लिंगानुपात तेजी से बढ़ा है। ये वर्ष 2018-19 में बढ़कर 909 पहुंच गया है। वर्ष 2020-21 में और बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस साल में 923 जा पहुंचा था। यानिकि, दो सालों में 12 फीसदी लिंगानुपात अधिक दर्ज किया गया है। कोटा का लिंगानुपात 930 है।
कोटा। एक समय था जब बेटियों को कोख में मार दिया जाता था, लेकिन अब समय के साथ परिपाटी बदल रही है। लड़कों के बराबर ही लड़कियों को भी प्राथमिकता दे रहे है। यही वजह है कि बीतें पांच सालों में कोटा का लिंगानुपात तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2017-18 में लिंगानुपात 897 था। ये वर्ष 2018-19 में बढ़कर 909 पहुंच गया है। वर्ष 2020-21 में तो और बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस साल में 923 जा पहुंचा था। यानिकि, दो सालों में 12 फीसदी लिंगानुपात अधिक दर्ज किया गया है। यहां भी अभी की बात करे तो कोटा का लिंगानुपात 930 है। हालांकि, अभी भी काफी कम है। क्योंकि, 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में सर्वाधिक लिंगानुपात डूंगरपुर का 990 है। इसके मुकाबले कोटा काफी पीछे है। प्रदेश में कोटा लिंगानुपात 2011 की जनगणना के अनुसार 22 नंबर पर है। हालांकि, इसके उपरांत इसमें काफी सुधार आ गया है। फिर भी इसको और भी बढ़ाए जाने की जरूरत है। ताकि, लड़की और लकड़ों का भेद कम हो।
लिंगानुपात बढ़ने के कारण
1. सामाजिक जागरुकता: पिछले कुछ सालों में जागरूका बढ़ी है। लोग लड़कों और लडकियों में भेद नहीं कर रहे है। उनकी पढ़ाई और लिखाई में भी बराबर खर्च कर रहे है।
2. चिकित्सा विभाग का योगदान: चिकित्सा विभाग के योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि, चिकित्सा विभाग ने नए कानून बना दिए है। इसमें भू्रण की जांच प्रमुख है। इसके साथ ही गर्भ निरोधक साधन भी महत्वपूर्ण है।
3. शिक्षा का प्रसार: लिंगानुपात का बढ़ने का मुख्य कारण शिक्षा का प्रसार भी रहा है। क्योंकि, पहले शिक्षा का स्तर काफी नीचे थे। जिसके चलते लोगों द्वारा भेदभाव किया जाता था।
4. लोक कल्याणकारी योजनाएं: सरकार द्वारा लड़कियों के लिए कई प्रकार की लोक कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है। इनमें बेटी बेचाओं को बेटी पढ़ाओं प्रमुख है। इसके अलावा बालिका प्रोत्साहन योजनाएं भी चलाई जा रही है।
इसलिए जरूरी है लिंगानुपात
किसी भी देश या राज्य की आर्थिक सशक्तता के लिए महिल और पुरूषो ंकी संख्या संतुलित होनी चाहिए। लिंगानुपात की जानकारी एक हजार पुरुषों के पीछे महिलाओं की संख्या से लगाई जाती है। पूरे प्रदेश का लिंगानुपात 926 है। ये भी अन्य राज्यों के मुकाबले काफी पीछे है। यहां तक कि कोटा से भी कम है। हालांकि, ये 2011 है। वर्ष 2011 में कोटा लिंगानुपात भी 906 ही था। ये बढ़कर 930 पहुंच गया है। हर 10 सालों में गणना होती है। वर्ष 2021 की गणना के परिणाम आने बाकि है।
प्रदेश में टॉप 10 जिलों का लिंगानुपात (2011 की जनगणना)
जिले लिंगानुपात
1. डूंगरपुर 990
2. राजसमंद 988
3. पाली 987
4. प्रतापगढ़ 982
5. बांसवाड़ा 979
6. चित्तोड़गढ़ 970
7. भीलवाड़ा 969
8. उदयपुर 958
9. जालौर 951
10. झुंझुनूं 950
ये लोग बने रोल मॉडल
1. डॉ. अशोक मीना और डॉ. जागृति मीना
डॉ.अशोक मीना मेडिकल कॉलेज के एमबीएस में नेत्र रोग विभाग के विभागाध्यक्ष है। जबकि, डॉ. जागृति मीना जेडीबी कॉलेज में रसायन विज्ञान की सहायक आचार्य है। दोनों दंपती के एक ही बेटी है, जो कि नवीं क्लास में पढ़ाई करती है। ऐसा करने के पीछे दोनों का मानना थ कि प्रकृति ने इसमें भेद नहीं किया तो मनुष्य को नहीं करना चाहिए। बेटियां तो और अधिक सौभाग्यशाली होती है। उनके कारण ही हमारा सब कुछ है।
2. डॉ. कंचना सक्सेना और डॉ. प्रदीप अस्थाना
डॉ. कंचना सक्सेना राजकीय कॉमर्स कन्या महाविद्यालय की सेवानिवृत्त प्राचार्य है। जबकि, डॉ. प्रदीप अस्थाना बैंक के रिटायर्ड अधिकारी है। दोनों के एक बेटी है श्रुति अस्थाना। दंपती का कहना है कि शताब्दियों से लड़का और लड़की में भेद आता आया है, लेकिन अब ऐसा नहीं होना चाहिए। अधिक संतान जनसंख्या बढ़ोतरी के अलावा कुछ नहीं है। हमनें एक संतान को ही जीवन आधार माना। सब कुछ उसकी के लिए किया। लोग बेटों को महत्व देते है, लेकिन बेटी तो उनसे कई गुना आगे होती है।
3. डॉ. संजय भार्गव और उमंग भार्गव
डॉ. संजय भार्गव राजकीय आर्ट्स कॉलेज के प्राचार्य है। जबकि, उमंग भार्गव गृहणी है। दोंनों के एक बेटी है। हर्षि भार्गव है। जो कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। डॉ. भार्गव बताते है कि एक बेटी होने पर लोग सवाल करते थे। उनसे डॉ. संजय भार्गव राजकीय आर्ट्स कॉलेज के प्राचार्य है। उन्होंने एक बात कही कि बेटा तो केवल एक घर रोशन करता है। बेटियों तो दो परिवारों को रोशन करती है। हमारे लिए बेटी ही सब कुछ है।
इनका कहना है
अब परिपाटी बदल रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग अधिक संतान को महत्व नहीं दे रहे है। यहां तक दो बेटियों पर नसबंदी करवा ली है। इनको सम्मानित भी किया है।
- प्रमोद कंवर, कोर्डिनेटर, पीसीपीएनडीटी
Comment List