उदपुरिया में उजड़ी जांघिल पक्षियों की बस्ती, दुर्दशा का शिकार हुआ तालाब

पर्यटन विभाग ध्यान दे तो उदपुरिया बन सकता है हाड़ौती का कैलादेवी पक्षी विहार

उदपुरिया में उजड़ी जांघिल पक्षियों की बस्ती, दुर्दशा का शिकार हुआ तालाब

लगातार घटती पेड़ों की संख्या से जांघिलों ने पुश्तैनी घर छोड़ने को मजबूर हो गए।

कोटा। हाड़ौती में पेंटेर्ड स्टॉर्क बर्ड की जन्मस्थली कहलाने वाला उदपुरिया तालाब इन दिनों दुर्दशा का शिकार हो रहा है। पेड़ों की अवैध कटाई के कारण जांघिलों की बस्ती उजड़ गई। तालाब जलकुंभी से अटा पड़ा है तो पानी किनारे जगह जगह गंदगी के ढेर लगे हैं। कूड़े कचरे से उठती दुर्गंध से तालाब का मनोहारी वातारण दूषित हो गया। पूर्व में तालाब किनारे लगभग 50 पेड़ हुआ करते थे, लेकिन, स्थानीय पंचायत प्रशासन व पर्यटन विभाग की अनदेखी के चलते आज एक भी नहीं बचा। हालात यह हैं कि शाम ढलते ही तलाब किनारे नशेड़ियों की महफिल सजती है। यहां जगह-जगह शराब की खाली बोतलों का ढेर लगा हुआ है। यदि, पर्यटन विभाग ध्यान दे तो उदपुरिया तालाब हाड़ौती का कैलादेवी पक्षी विहार के रूप में उभर सकता है। 

2015 के बाद से नहीं बनाए घौंसले
नेचर प्रमोटर एएच जैदी ने बताया कि पेंटर्न स्टोक बर्ड यानी जांघिल प्रवासी पक्षी हैं, इनका प्रवास अगस्त से फरवरी तक रहता है। पहली बार 1995 में जांघिलों ने उदपुरिया में दस्तक दी थी। वर्ष 2015 तक इन्होंने यहां लगातार बस्ती बसाई। इस दरमियानयहां 6 हजार के लगभग नन्हें मेहमान जन्मे थे। वहीं, कई सीजन में 250 से अधिक नीड़ बनाए और 600 बच्चों ने उदपुरिया में जन्म लिया था। लेकिन, 2015 के बाद से यहां मानवीय दखल व अतिक्रमण बढ़ने की वजह से इन्होंने यहां घौंसले नहीं बनाए और उदपुरिया छोड़ बारां जिले के सोरसन की तरफ रूख कर लिया। जबकि, वर्ष 2010 में इन्होंने उदपुरिया तालाब किनारे पेड़ों पर करीब 250 घौसलें बनाए थे। लेकिन, धीरे-धीरे पेड़ों की संख्या कम होती चली गई और घौंसलों की भी संख्या घटती चली गई। 

पर्यटन केंद्र बन सकता है उदपुरिया
जैदी बताते हैं, प्रशासन व जिला पर्यटन विभाग ध्यान दे तो उदपुरिया तालाब कैलादेवी पक्षी विहार जैसा खूबसूरत पर्यटन केंद्र बन सकता है। उदपुरिया अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया। तालाब की पाल जगह-जगह से क्षतिग्रस्त हो गई। लगातार घटती पेड़ों की संख्या से जांघिलों ने पुश्तैनी घर छोड़ने को मजबूर हो गए। 

इसी का नतीजा है, कि वर्ष 2015 से जांघिलों ने उदपुरिया से मुंह मोड़ लिया और बारां जिले के अमलसरा व सोरसन क्षेत्र के तालाबों को बस्तियां बनाकर आबाद किया। वहीं, गोदल्याहेड़ी गांव के राजपुरा तालाब किनारे पेड़ों पर अपना आशियाना बनाया। इसके अलावा मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व क्षेत्र, रामगंजमंडी, उंडवा, चित्तौड़, जोधपुर समेत व अन्य जगहों पर भी इनकी मौजूदगी है।  

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पर्यटन विभाग को ध्यान देने की जरूरत
स्थानीय निवासी पक्षी प्रेमी श्याम जांगिड़ कहते हैं, यहां पक्षियों का आना अच्छा संकेत है। लेकिन, पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन की ओर से तालाब के आसपास सुरक्षित जगहों पर पेड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए पौधरोपण करवाए जाना चाहिए। साथ ही इनकी पंसदीदा विलायती बबूल के पेड़ लगाए जाए ताकि, यहां पर्याप्त घोंसले बनाने के लिए इन्हें जगह मिल सके। वहीं, अतिक्रमण हटवाकर व जलकुंभी हटाकर तालाब की सफाई करवानी चाहिए।

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जांघिलों की विशेषताएं
20 नीड़ बना लेते हैं एक पेड़ पर
20 से 25 बरस है औसत आयु
3 से 5 अंडे देते हैं एक बार में
2 वर्ष में बच्चे हो जाते हैं वयस्क
6 हजार बच्चे जन्मे 22 साल में
वर्तमान में  उदपुरिया में एक भी जाघिल नहीं है

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अपने खर्चे पर कर रहे पक्षियों की निगरानी
हाड़ौती नेचुरल सोसाइटी के सदस्य श्याम जांगिड़ स्वयं के खर्चे पर उदपुरिया में जांघिल पक्षियों की देखभाल कर रहे हैं। साथ ही अवैध शिकार, संदिग्ध घुसपैठ रोकने के लिए निगरानी कर रहे हैं। इसके अलावा यहां आने वाले पर्यटकों को पाक्षियों की विशेषताएं, इतिहास से रूबरू करवाते हैं।  इसी तरह राजपुरा तालाब में मौजूद पेटेंर्ड स्टॉर्क बर्ड की सुरक्षा में सुरेश नागर तैनात हैं। नागर अपने स्तर पर ही इन पक्षियों की निगरानी करते हैं।

जलकुंभी से अटा और गंदगी से दबा सौंदर्य
शहर से करीब 30 किमी दूर दीगोद तहसील के गांव उदपुरिया का तालाब वर्तमान में अतिभेंट चढ़ चुका है। तालाब की पाल पर जगह-जगह ग्रामीणों ने मवेशियों के बाड़े व कच्चे बना लिए हैं। वहीं, तालाब किनारे पेड़ों की भी अवैध कटाई की जा रही है। तालाब पूरी तरह से जलकुंभी से अटा पड़ा है। जिसे साफ करवाने में स्थानीय प्रशासन भी सुध नहीं ले रहा। हालात यह हैं, पहले तालाब के बीचोंबीच करीब 50 पेड़ हुआ करते थे, जो आज एक भी नहीं है। 

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