आत्म मंथन करें

हाल के पांच राज्यों के चुनाव में देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस की जो हालत बनी

आत्म मंथन करें

कांग्रेस को एकजुट होकर गंभीर आत्म मंथन करना चाहिए और इसके लिए यही सही समय भी है।

हाल के पांच राज्यों के चुनाव में देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस की जो हालत बनी, उसके बाद संगठनात्मक सुधारों की मांग का जोर पकड़ना स्वाभाविक ही था, जिसके चलते रविवार 13 मार्च को बुलाई गई कार्य समिति की बैठक की यही बड़ी वजह थी। बैठक से पहले कुछ आंतरिक कलह और दोषारोपण का भी सिलसिला चला। पंजाब की हार के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन को जिम्मेदार ठहराया गया तो इसके जवाब में कैप्टन ने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व कभी नहीं सुधर सकता। यदि कांग्रेस पंजाब में मेरे कारण हारी है तो फिर अन्य चार राज्यों में बुरी स्थिति कैसे बनी? कुछ नेताओं ने राज्य के पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को जिम्मेदार ठहराया तो कुछ ने उत्तराखंड के नेता हरीश रावत को हार की वजह माना। ऐसे ही कुछ वरिष्ठ नेताओं ने भी पार्टी के भीतर बदलाव लाने की मांग की। लेकिन कार्य समिति की बैठक के बाद वरिष्ठ कांग्रेसियों के जो बयान सामने आए, उनसे लगता है कि वे राहुल गांधी को पूर्णकालिक अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते हैं। वहीं पंजाब में हार के लिए अंदरूनी कारणों को जिम्मेदार ठहरा दिया गया। लेकिन फिर भी पार्टी में सुधार व बदलाव की जरूरत को भी स्वीकार किया गया। हाल के चुनाव परिणामों ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी पराभव के सबसे बुरे दौर में है, जो यह बताता है कि वर्ष 2024 के आम चुनाव में बिना बदलाव व विपक्षी एकजुटता के उसका भाजपा का विकल्प बनना संभव नहीं है। पंजाब में पराजय के बाद अब पार्टी दो राज्यों की सत्ता संभाल रही है। जबकि 2014 में पार्टी नौ राज्यों में शासन कर रही थी। इस साल के अंत में पार्टी हिमाचल में वापसी की उम्मीद कर रही है, लेकिन वीरभद्र के अभाव में वहां चुनौती बड़ी ही बनी रहेगी। वहीं 2024 से पहले राजस्थान व छत्तीसगढ़ में चुनाव होंगे। ऐसे में आम चुनाव से पहले वर्ष में पार्टी को भाजपा से बड़ी चुनौती मिलेगी। नि:संदेह कांग्र्रेस की ऐसी दुर्गती देश के लोकतंत्र व राजनीतिक दृष्टि से उचित नहीं है। किसी भी बहुमत वाली सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए किसी भी लोकतांत्रिक देश में मजबूत विपक्ष की जरूरत होती है। तभी तीन दशक में पराभव के बावजूद कांग्रेस भाजपा का व्यावहारिक विकल्प नजर आती है। लेकिन पार्टी की वर्तमान में दयनीय हालत देखकर दिग्गज कांग्रेसियों का धैर्य जवाब दे रहा है। हालांकि अभी भी कांग्र्रेस भारत में नेतृत्व की क्षमता रखती है। संगठनात्मक सुधारों व रीति-नीतियों में बदलाव लाकर वह भाजपा का विकल्प बन सकती है। इसके लिए कांग्रेस को एकजुट होकर गंभीर आत्म मंथन करना चाहिए और इसके लिए यही सही समय भी है।

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