Pran Birth Anniversary: वह अभिनेता जिसके डायलॉग बोलने से पहले ही दर्शक बोल पड़ते थे कि इसका यकीन मत करना इसकी नसों में ही मक्कारी है

Pran Birth Anniversary: वह अभिनेता जिसके डायलॉग बोलने से पहले ही दर्शक बोल पड़ते थे कि इसका यकीन मत करना इसकी नसों में ही मक्कारी है

साल 1958 की बात है। लोग सिनेमा हॉल में अदालत फिल्म देख रहे थे। प्राण नेगेटिव रोल में थे। उनकी एक्टिंग इतनी जोरदार थी कि औरतें थिएटर छोड़कर भाग गई थी।

हिंदी सिनेमा में खलनायकों की सूची बनानी हो तो प्राण के नाम के बिना वह अधूरी रहेगी। उन्होंने विलेन के कई किरदार निभाकर सिने जगत में अपना लोहा मनवाया। उनका जन्म 12 फरवरी 1920 को हुआ था और 12 जुलाई 2013 को उनका निधन हो गया था।

प्राण की फिल्म डॉन का गाना 'खईके पान बनारस वाला' को आज भी लोग बड़े चाव से सुनते है। प्राण की फिल्म इंडस्ट्री में आने की कहानी भी पान से ही जुड़ी हुई है। एक दिन उनकी मुलाकात लाहौर के बड़े लेखक वली मोहम्मद से पान की दुकान पर हो गई थी। वली ने प्राण की सूरत देखी और फिल्मों में काम करने की बात कही। प्राण ने शुरुआत में तो उनकी बात को हल्के में लिया लेकिन बार-बार कहने पर वह राज़ी हो गए।

प्राण ने अपने करियर की शुरूआत फिल्म यमला जट से की थी। फिल्म सफल रही तो उन्हें महसूस हुआ कि अगर वह इंडस्ट्री में करियर बनाएंगे तो शोहरत हासिल कर सकते है। उन्हें भारत-पाकिस्तान के बंटवारे का दुःख भी झेलना पड़ा था। प्राण अपने शहर लाहौर को छोड़कर मायानगरी में आ गए थे। मुंबई आकर उन्हें फिल्मों में काम मिलना शुरू हो गया। क़रीब 22 फिल्मों में काम करने के बाद प्राण को महसूस हुआ कि वह विलेन के तौर पर अपनी जगह बना सकते है।

प्राण विलेन का किरदार निभाने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। इसी बीच 1948 में उन्हें जिद्दी फिल्म में नेगेटिव रोल निभाने का का मौका मिल गया। इस फिल्म से मानो उन्हें खलनायक बनने का चस्का सा लग गया था। प्राण 40 साल तक स्क्रीन पर अलग-अलग नाम से खलनायक बनकर आते रहे।

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प्राण विलेन का किरदार इतनी बारीकी से निभाया करते थे कि सिनेमाहॉल में बैठे दर्शक उनके डायलॉग बोलने से पहले ही कह देते थे कि इस आदमी का यकीन मत करना। यह प्राण है प्राण। झूठा आदमी है।

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साल 1958 की बात है। लोग सिनेमा हॉल में अदालत फिल्म देख रहे थे। प्राण नेगेटिव रोल में थे। उनकी एक्टिंग इतनी जोरदार थी कि औरतें थिएटर छोड़कर भाग गई थी। विलेन के रूप में उनका काम इतना शानदार होता था कि प्रोडयूसर को उन्हें फिल्म के हीरो से भी ज्यादा फीस चुकानी पड़ती थी। उदाहरण के लिए- प्राण को डॉन के लिए अमिताभ बच्चन से भी ज्यादा पैसे दिए गए थे।

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प्राण खलनायक तक ही सीमित नहीं रहे। फिल्म उपकार से प्राण ने अपनी छवि बदल डाली थी। ऐसा सिर्फ एक मंझा हुआ कलाकार ही कर सकता है। इस फिल्म के बाद उनके पास कैरेक्टर रोल की झड़ी लग गई थी।

फिल्मों के क्रेडिट टाइटल में प्राण का नाम अनोखे ढंग से आया करता था। स्क्रीन पर सारे कलाकारों के नाम के बाद - 'और प्राण' लिखा हुआ दिखाई देता था। यही वजह है कि उनकी जीवनी का नाम भी एंड प्राण (और प्राण) है।

प्राण को तीन बार फिल्म फेयर मिला था। उन्हें साल 2013 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

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