'इंडिया गेट'

जानें इंडिया गेट में आज है खास...

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पर्दे के पीछे की खबरें जो जानना चाहते है आप....

दरकता सपाई कुनबा!
यूपी में सपा विधानसभा चुनाव क्या हारी। अखिलेश यादव लगातार कमजोर होते दिख रहे। पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह की आयु जवाब दे रही। जिससे समस्याएं घटने के बजाए बढ़ रहीं। चुनाव से पहले अपर्णा यादव ने सपा छोड़ी। अब चाचा शिवपाल यादव का अखिलेश के तौर तरीकों से मोहभंग हो रहा। चर्चा यह भी कि कई क्षेत्रों में यादवों ने भी सपा को वोट नहीं दिया। अब मुस्लिम वोट भी दरक रहे। पहले संभल से सांसद शफीकुर्रहमान ने तेवर दिखाए। अब आजम खान कैंप से भी नाराजगी के संकेत। मतलब अगले आम चुनाव से पहले ही ऐसे हालात बन रहे। मानो सपा की हालत भी बसपा जैसे होने की नौबत। यूपी में मतदान के आंकड़ों के जरिए संभावना जताई जा रही। यदि 70 फीसदी से ज्यादा आम चुनाव में मतदान हुआ। तो सपा का साफ होना तय। ऐसे में अखिलेश का क्या होगा? इसीलिए वह समझ गए। जब तक प्रदेश में मजबूत नहीं रहेंगे। केन्द्र यानी दिल्ली में कोई पूछने वाला नहीं!


पाक में नया निजाम!
तो तमाम तरह की ड्रामेबाजी होने और राजनीति की चैसर पर चली गईं शह मात के खेल के बाद पाक में नया निजाम आ गया। शहबाज शरीफ ने पाक की कमान भी संभाल ली। तो अब पूर्व पीएम इमरान उनसे सड़कों पर लड़ेंगे। शहबाज पूर्व पीएम नवाज शरीफ के छोटे भाई। जो इन दिनों इलाज के लिए लंदन में। वह जल्द ही पाक लौटेंगे। खैर, बात पाक के नए पीएम की। जिन्होंने कश्मीर राग तो छेड़ा ही। साथ में चीन को भी सुख दुख का साथी भी बता दिया। इधर, महबूबा मुफ्ती का भी पाक प्रेम उमड़ रहा। वह हमेशा कश्मीर मसले पर पाक से वार्ता की हिमायती। लेकिन मोदी सरकार न उनको, न पाक को भाव दे रही। शहबाज शरीफ ने भी कश्मीर मसले के हल तक शांति की बात या भारत के साथ सामान्य संबंधों के कयास को खारिज कर डाला। सो, भारत को लेकर बात वहीं की वहीं। मतलब ढाक के तीन पात। पाक में चलेगी सेना की ही।


डीएमके की दस्तक?
तो द्रविड़ पार्टी डीएमके ने दिल्ली में भव्य महलनुमा पार्टी आॅफिस बनाकर दस्तक दे दी। इसके शुभारंभ के अवसर पर डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने मंशा भी जता दी। वह उत्तर भारत में पार्टी का विस्तार करेंगे। साथ में गैर भाजपाई दलों को भी इस मिशन में साथ लेंगे। असल में, राज्य में उनकी प्रबल प्रतिद्वंदी एआईएडीएमके के सितारे आजकल गर्दिश में। पार्टी संस्थापक जयललिता कभी की दिवंगत हो गईं। चले तो एम. करुणानिधि भी गए। लेकिन स्टालिन के पास अच्छा खासा पॉलिटिकल विजन। राजनीति में वह सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़े। समय रहते करुणनिधि ने उन्हें पार्टी की कमान भी सौंप दी। जबकि अम्मा की पार्टी में वर्चस्व एवं कब्जे की लड़ाई दूसरी पांत के नेताओं में जारी। ऐसे में डीएमके नेतृत्व अब तमिलनाडु से बाहर अपनी पार्टी के विस्तार का मन बना रहा। इसमें कुछ गलत भी नहीं। जब केजरीवाल की ह्यआपह्ण अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। तो डीएमके क्यों नहीं? फिर भाजपा को छोड़कर सब दल उसके लाइक माइंडेड!


महाराष्ट्र में दंगल!
महाराष्ट्र में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से आगे बढ़ रहा। नेताओं एवं दलों की बयानबाजी तीखी और कसेली हो रही। एमएनएस के राज ठाकरे बेहद आक्रामक नजर आ रहे। तो एमवीए सरकार में भी सब कुछ शुरू से ही ठीक नहीं। शेतकारी संगठन सरकार से बाहर आ गया। तो नवाब मलिक पर ईडी का शिकंजा लगातार कसता जा रहा। इन सभी घटनाक्रमों के बीच कांग्रेस की चुप्पी रहस्यमयी। वहीं, सत्ताधारी शिवसेना एवं एनसीपी में बराबर हलचल हो रही। विपक्षी भाजपा, सरकार और विशेषकर शिवसेना एवं सीएम उद्धव ठाकरे के प्रति तल्ख हो रही। मानो इस बार आर पार ही होगा। असल में, मुंबई महानगर पालिका के चुनाव की हलचल। कोरोना एवं वार्डों के पुर्नगठन गठन के चलते इसमें कुछ समय की देरी हुई। इन चुनावों में कांग्रेस के मौन से शिवसेना परेशान। तो भाजपा पूरी तरह उससे दो-दो हाथ करने को आमादा। शिवसनो के लिए बीएमसी कितना महत्वपूर्ण। यह किसी से छुपा नहीं। जिसे भाजपा छुड़ाने को लालायित। सो, दंगल जैसा माहौल बनना लाजमी!

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आइना दिखाया!
विकसित और यूरोपीय देशों का मानवाधिकार मानो प्रिय शगल। तीसरी दुनियां या अविकसित देशों को डराने एवं दबाने का यह जरिया। इसमें लोकतंत्र, पारदर्शी शासन एवं जलवायु परिवर्तन जैसे मसले भी योगदान करते रहे। गरीब देश भी इनके बहाने बड़े देशों की धौंस पट्टी में आते रहे। लेकिन अब वक्त बदल गया। पिछले दिनों अमरीका ने भारत को मानवाधिकारों पर ज्ञान दे डाला। तो भारत ने भी उसी की धरती पर बिना समय गवाएं पलटवार कर डाला। कहा, पहले अपनी गिरेबांन में देखें। फिर भारत जैसे देश पर अंगुली उठाएं। भारत ने तो आगे बढ़कर यहां तक कह दिया। उसकी भी अमरीका में मानवाधिकारों पर नजर। कुछ दशकों पहले तक अमरीका पर इस तरह के जवाब की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। यह ठीक वैसे ही। मानो रूस के सामने यूक्रेन ने अभी तक घुटने नहीं टेके। मतलब भारत जैसे देश दुनियां के फलक पर नई इबारत लिखने की तैयारी कर रहे। भारत द्वारा अमरीका को आइना दिखाना, उसी का संकेत।

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एका या कोशिश?
बीते शनिवार को 13 विपक्षी दलों ने एक संयुक्त बयान जारी किया। मानो बहती गंगा में हाथ धोना। देशभर में बढ़ रही सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं पर चिंता जताई गई। जैसे यह 2024 के आम चुनाव के लिए विपक्षी एकता का सुर। सरकार और पीएम मोदी अपना काम कर रहे। सो, विपक्ष को भी करना पड़ेगा। लेकिन यह एकता का राग कागजों तक ही? पांच राज्यों के चुनाव नतीजों ने विपक्ष को खासा निराश किया। लग रहा मानो आम चुनाव भी भारी पड़ेगा। लेकिन उसी दिन आए विभिन्न उपचुनावों के नतीजों ने विपक्षी नेताओं को राहत दी। लेकिन बात विपक्षी एकता की और अगले आम चुनाव में साथ-साथ उतरने की। जो अभी तक दूर की कौड़ी। क्योंकि कई नेताओं के मन में पीएम पद की हिलौरें मार रहीं। बात चाहे ममता बनर्जी की हो या अरविंद केजरीवाल की। फिर आखिर कांग्रेस क्यों पीछे रहे? टीआरएस के केसीआर आजकल काफी आक्रामक। लगता है कोई तगड़ी चोट लगी हो और बता नहीं पा रहे!
-श्रीनाथ मेहरा, पत्रकार

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