जानिए राजकाज में क्या है खास
सूबे में पिछले दिनों राज के दो रत्नों के बीच जो कुछ हुआ, वह जगजाहिर है। एक रत्न खेतीबाड़ी देखते हैं, तो दूसरे वाले रत्न पंचायती करते हैं। दोनों ही खुद को पावर सेंटर से कम नहीं मानते।
यह तो होना ही था
सूबे में पिछले दिनों राज के दो रत्नों के बीच जो कुछ हुआ, वह जगजाहिर है। एक रत्न खेतीबाड़ी देखते हैं, तो दूसरे वाले रत्न पंचायती करते हैं। दोनों ही खुद को पावर सेंटर से कम नहीं मानते। और तो और दोनों एक-दूसरे के मामलों में टांग फंसाई को कतई बर्दास्त भी नहीं करते। गुजरे जमाने में बाबोसा के राज में भी खुरापात किए बिना चैन से नहीं बैठे। दोनों की मूंछ की लड़ाई में इनका तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन राज का काज करने वालों की नींद जरूर उड़ गई। वो तो भला हो, अटारी वाले पंडितजी का, जिन्होंने मामले की गंभीरता को समझकर सुलटा दिया, वरना बलि का बकरा बेचारे साहब लोगों को ही बनाते। चूंकि राज के रत्न कभी भी गलती नहीं करते। अब बलि का बकरा कौन बनता, यह तो समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।
सुनारी रार
इन दिनों सचिवालय के गलियारों में सुनारी रार को लेकर काफी चर्चाएं हैं। हो भी क्यों ना, मामला राज का काज करने वाले कारिन्दों से ताल्लुक जो रखता है। राज का काज करने वाले दो साहबों को आए दिन डांट का सामना करना पड़ता है। इनमें से एक साहब एक बड़े जिले के कलेक्टर हैं, तो दूसरे साहब सचिवालय में दूसरी मंजिल पर बड़ी कुर्सी पर बैठते हैं। दोनों को पिछले दिनों राज के मुखिया ने कई बार लाल आंखें दिखाई तो दूसरे कई साहब लोगों तक के पसीने छूट गए। कहने वाले तो पता नहीं क्या-क्या कहते हैं, पर सौ टका सच यह है कि यह राज और काज करने वालों के बीच सुनारी रार है। जो सबसे ज्यादा प्यारा होता है, डांट भी सबसे ज्यादा उसी को पिलाई जाती है।
नहीं खुली गांठ
भारती भवन में पिछले कुछ दिनों से चर्चा और चिंतन जारी है। भाईसाहबों की आंखें गुस्से से लाल होने के साथ ही उनके चेहरों पर चिंता की लकीरें भी साफ दिखाई दे रही हैं। गुस्सा इस बात का है कि उन्हीं के संघनिष्ठ कुछ साथियों ने मंत्रोचार के बीच सौगंध खाने के बाद भी पाला पलट लिया। उनको चिंता इस बात की सता रही है कि एक साल बाद भी संगठन महामंत्री को लेकर सहमति नहीं बन पाई। भारती भवन वालों के गुस्से और चिंता का असर कमल वालों के ठिकाने पर भी दिखाई देने लगा है। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि भाई साहबों के मन की गांठ नहीं खुली, भाईसाहबों के दिन में देखे सपनों को पूरा करना मुश्किल नजर आ रहा है।
निष्ठा परिवर्तन
निष्ठा तो निष्ठा ही होती है, वह कब और कहां तथा किसके प्रति बदल जाएं, कुछ नहीं कहा जा सकता। अब देखो ना राज में कुर्सी मिलने से पहले कई भाई लोगों ने मैडम के प्रति पूरी निष्ठा दिखाई थी। और तो और कई देवी- देवताओं को साक्षी मानकर मरते दम तक निष्ठा निभाने तक की सौगंध भी खाई। दिन-रात मैडम के गुण गान भी किए, मगर जीते तो निष्ठा बदलने में एक पल भी नहीं लगाया। गिरगिट की तरह रंग बदल कर मैडम से नमस्ते तक करने से परहेज करने लगे। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि पिछले दिनों दिल्ली दरबार की जंग के लिए नामों के ऐलान के बाद से ही कइयों ने अलविदा कर लिया था। एक ने तो गुजरात वाले भाईसाहब से रिश्तेदारी की दुहाई दी, तो दूसरे ने कहीं और निशाना लगा दिया। तीसरे ने लाल बत्ती की चाहत में खुद का शाखाओं से पुराना रिश्ता साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
-एल एल शर्मा
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