जानिए राजकाज में क्या है खास

कई महीनों बाद हाथ वाले भाई को अक्ल आई

जानिए राजकाज में क्या है खास

आजकल काले कोट वाले भाई लोग बहस के साथ दो-दो हाथ करने में भी माहिर हैं। उनकी स्टाइल को देखकर अहसास होता है कि कइयों ने तो कोर्ट में जाने से पहले जूड़ो-कर्राटे और पहलवानी के गुर भी सीखें होंगे।

अब समझे एक-दूजे की अहमियत
कई महीनों बाद हाथ वाले भाई को अक्ल आई। एक-दूसरे की अहमियत समझ में आ गई। दिल्ली में बैठे नेता भी अब बगलें झांक रहे हैं। मंद-मंद मुस्करा रहे भगवा वाले भाइयों के भी चेहरों की हवाइयां उड़ती नजर आ रही हैं। दस साल तक राज कर चुकी मैडम को भी अहसास हो रहा है कि बिना संगठन के कुछ नहीं है। सो आसपास मंडराने वाले कई लोगों को आंख दिखा दी। बेचारों की अब बोलती बंद है। भगवा में सूबे के सदर की कुर्सी पर बैठे सुमेरपुर वाले मदन जी भाई साहब भी भांप चुके हैं कि उनकी टीम में भीड़ जुटाने वाला एक भी नेता नहीं है। यह चमत्कार केवल मराठी वंशज मैडम के पास ही है। सो पिछले दिनों जा पहुंचे मैडम के दरबार में। दोनों तरफ  अक्ल आई तो भाई साहबों को सुखद नतीजे का इंतजार है। मैडम को अपने घर से बैठकों में लाने की कवायद हो रही है।

प्रेम डेंगू का
डेंगू नाम की विदेशी बीमारी को भी हमारा सूबा काफी रास आ रहा है। संक्रमण से होने वाली यह बीमारी सूबे के लोगों के ऐसे चिपक गई, जैसे तालाब में भैंस के जोंक लगती है। यह रास भी क्यों नहीं आए, यहां राज का काज करने वाले लोगों की कार्य प्रणाली किसी से छिपी नहीं है। वे हो हल्ला ज्यादा और काम कम करते हैं। वो काम को करने के बजाय उसकी फिक्र कर केवल ऊपर वालों को बताते हैं। अब उनको कौन समझाए कि पहले कमीशन रूपी असली बीमारी का उपचार करो, नकली का तो स्वत: हो ही जाएगा। इस सूबे के लोग छप्पनियां का अकाल और महामारी से निपट चुके हैं। इस बीमारी से राज का काज करने वाले भयभीत हैं। अब देखो न केरल जैसे छोटे से प्रदेश ने इस बीमारी को एक सप्ताह में छू मंतर कर दिया, मगर हमारे यहां तो दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। रोजाना दरबार में समीक्षा हो रही है, लेकिन बीमारी भी जाने का नाम ही नहीं लेती।

धन्य हो काले कोट वाले
आजकल काले कोट वाले भाई लोग बहस के साथ दो-दो हाथ करने में भी माहिर हैं। उनकी स्टाइल को देखकर अहसास होता है कि कइयों ने तो कोर्ट में जाने से पहले जूड़ो-कर्राटे और पहलवानी के गुर भी सीखें होंगे। उनको पहले से आभास था कि धंधा तो चलने वाला नहीं, सो काले कोट की आड़ में दादागीरी तो चल जाएगी। लालकिले वाली नगरी में पहले खाकी वालों पर हाथों की खुजली मिटाई और अब न्याय की सबसे ऊंची कुर्सी के सामने अपने ही भाई लोगों का मुंह सुजा कर बता दिया कि हमारा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। राज का काज करने वाले पहले ही इनसे दूरियां बनाकर चलते हैं। अब न्याय की आस में अदालतों में आने वाले फरियादी भी सहमे रहते हैं। पता नहीं काले कोट वाले भाई साहब का हाथ कब उठ जाए। दूसरों की खैर खबर लेने वाले मी लार्ड भी सब कुछ देख रहे हैं, लेकिन कार्रवाई करने में बेबस हैं। ऐसे लोग धन्य हैं, जो काले कोट पहनकर भी कानून से खिलवाड़ कर बैठते हैं।  

खाकी वालों की बढ़ी चिन्ता
जब राज करने वालों ने नकारा खाकी वालों की सूची मांगी तो पीएचक्यू में झण्डे के नीचे बैठने वाले साहब के साथ कई अफसरों की बांछें खिल गईं। उनको लगा कि चलो अब ऊपर की पहुंच रखने वाले गामाओं, पीटरों और ब्रेवोज से पीछा छूटेगा और काम करने वाले मिलेंगे। काफी बदनामी के बोझ तले दबे अफसरों ने आनन-फानन में लंबी चौड़ी सूचियां बनाकर थमा दीं। सूचियों को देखकर राज करने वालों को भी पसीने छूट गए। कई साहबों ने तो बिना देखे ही सूची को आठ नंबर में भिजवा दिया। मामला ठण्डे बस्ते में जाते देख अब उन अफसरों की हालत खराब हो रही है, जिन्होंने भाग-भाग कर सूचियां तैयार की थीं। चूंकि उनकी तरफ  से भेजी गई गोपनीय सूचियां भी जगजाहिर हो गईं।

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एक जुमला यह भी
सूबे में शनिवार की संध्या से एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि फैमिली के लीडर से ताल्लुकात रखता है। दौसा से शुरू हुए जुमले की चर्चा पिंकसिटी से दिल्ली तक है। जुमला है कि फैमिली का लीडर हो तो दौसा वाले मीनेश वंशज डॉक्टर साहब जैसा हो, जिनकी पपलाज माता के आशीर्वाद से हर मंशा पूरी होती है। प्रेसर पॉलिटिक्स में मास्टर भाई साहब का न तो कोई आलाकमान है और न ही कोई बॉस। अपने तेवरों से पहले अर्द्धांगिनी, फिर भतीजे और अब भाई के लिए जो कुछ किया वह हर वर्कर की जुबान पर है। भाई साहब की प्रेशर पॉलिटिक्स को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।

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एल एल शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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