देशवासी अपने आपको हिन्दू कहकर शालीनता का परिचय दें : शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती
जगदगुरु शंकराचार्य ने कहा कि स्वतंत्र भारत के राजनेताओं में शासन चलाने की क्षमता नहीं रह गई है देशी विदेशी कंपनिया ही शासन चला रही है।
जयपुर। आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी के दिन जगतगुरु का 82वां प्राकट्योत्सव राष्ट्रोत्कर्ष के रूप में मनाया गया। मानसरोवर के वीटी रोड ग्राउण्ड पर जगद्गुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने गोविंद जय जय गोपाल जय जय, राधारमण हरि गोविंद जय जय का संकीर्तन कराने के बाद उपस्थित साधकों से कहा कि भारत विश्व का हृदय है। साक्षात राम, श्रीकृष्ण, सीताजी और राधाजी ने यहां अवतार लिए हैं। देशभक्त, शूरवीर हुए हैं। विकास की चकाचौंध और भौतिकता के प्रभाव में आकर हम अपने अस्तित्व और आदर्शों को विकृत नहीं करें। विकास का मैं पक्षधर हूं लेकिन मानव जीवन की सार्थकता को समझकर ही विकास को परिभाषित किया जाना चाहिए।
जगदगुरु शंकराचार्य ने कहा कि स्वतंत्र भारत के राजनेताओं में शासन चलाने की क्षमता नहीं रह गई है देशी विदेशी कंपनिया ही शासन चला रही है। संतों का काम है मार्गदर्शन देना। राजनेताओं का कार्य है अच्छी नीतियों का निर्माण। शासकों पर शासन करने का पद शंकराचार्य का होता है। व्यासपीठ से शासनतंत्र की रक्षा होती है। एक ओर गुरु वशिष्ठ जी और दूसरी ओर रामजी में सामंजस्य हुआ तब रामराज्य की स्थापना हुई थी। सुशिक्षित सुरक्षित सम्पन्न सेवापरायण स्वस्थ संवितप्रभ व्यक्ति और समाज की रचना विकास की परिभाषा है। शंकराचार्य ने कहा सभी धर्म सनातन धर्म को अपना मूल मानते हैं। उनके पूर्वज भी आर्य थे इसलिए सब धर्मों के लोग खुद को अपने आपको हिन्दू कहकर शालीनता का परिचय दें।
इस अवसर पर स्वामी गोविंदानंद सरस्वती महाराज, स्वामी निर्विकल्पानंद, आदित्य वाहिनी के गोपाल शर्मा सहित अनेक गण्यमान्यों ने संबोधित किया। कार्यक्रम में राज्यपाल कलराज मिश्र, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, मंत्री किरोड़ीलाल मीणा, विधायक बालमुकुन्दाचार्य, पूर्व सांसद रामचरण बोहरा ने भी शंकराचार्य का आशीर्वाद लिया। कार्यक्रम से पूर्व सुबह राम गोपेश्वर मंदिर से 3100 महिलाओं की कलश यात्रा हाथी, घोड़े, बैंड बाजे और लवाजमे के साथ निकाली गई। इस दौरान रथ में शंकराचार्य भगवान निश्चलानंद सरस्वती, जयपुर के आराध्य गोविंद देवजी, गौ माता की झांकी, भगवान जगन्नाथ जी के साथ बलरामजी, माता सुभद्रा की झांकिया चल रही थी। रथ को श्रद्धालुओं ने अनेक स्थान पर खींचकर आशीर्वाद लिया।
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