World Population Day: विकास के लिए जनसंख्या नियंत्रण जरूरी

World Population Day: विकास के लिए जनसंख्या नियंत्रण जरूरी

परिवार नियोजन, गरीबी, लैंगिक समानता, नागरिक अधिकार, मां और बच्चे का स्वास्थ्य, गर्भनिरोधक दवाओं के इस्तेमाल जैसे गंभीर विषयों पर चर्चा और विमर्श किया जाता है। 

संयुक्त राष्ट्र संघ ने बढ़ती जनसंख्या पर चिंता प्रकट की, इसके बाद 11 जुलाई 1989 को संयुक्त राष्ट्र में बढ़ती जनसंख्या को काबू करने और परिवार नियोजन को लेकर लोगों में जागरूकता लाने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके साथ ही पहली बार वर्ल्ड पॉपुलेशन- डे मनाया गया। इस मूल तिथि को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में निर्धारित करने का निर्णय लिया गया था। दिसंबर 1990 में इसे आधिकारिक बना दिया। हर साल इस दिन जनसंख्या को कंट्रोल करने के उपायों पर चर्चा की जाती है। बढ़ी हुई जनसंख्या की वजह से देश और दुनिया के सामने जो परेशानियां हैं उनसे इको सिस्टम और मानवता को जो नुकसान पहुंचता है,उसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए ये दिन मनाया जाता है। परिवार नियोजन, गरीबी, लैंगिक समानता, नागरिक अधिकार, मां और बच्चे का स्वास्थ्य, गर्भनिरोधक दवाओं के इस्तेमाल जैसे गंभीर विषयों पर चर्चा और विमर्श किया जाता है। 

हमारा देश चीन के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। कोरोना काल में बढ़ी हुई आबादी के दुष्प्रभाव साफ नजर आए, स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा, हर क्षेत्र में मुश्किलें बढ़ी हैं, ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण के महत्व को समझना और भी जरूरी हो गया है। हर साल विश्व जनसंख्या दिवस एक थीम के साथ मनाया जाता है। जैसे कि कुल विश्व जनसंख्या 8 मिलियन का आंकड़ा पार करने वाली है, अवसरों का दोहन और सभी के लिए अधिकार और विकल्प सुनिश्चित करना। अगर बात करें वर्तमान समय की तो इस समय विश्व की जनसंख्या 7.92 अरब के पार पहुंच गई है। इस आंकड़े में हर सेकंड  इजाफा हो रहा है। वहीं विश्व की इस बढ़ती जनसंख्या में चीन और भारत का सबसे ज्यादा योगदान है। जिसमें भारत की जनसंख्या वृद्धि दर तो कुछ सालों में चीन से भी ज्यादा हुई है। कुछ साल में भारत चीन को आसानी से पीछे छोड़कर जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का सबसे बड़ा देश बन जाएगा। अगर जनसंख्या वृद्धि की बढ़ती दर के पीछे केवल चीन और भारत ही नहीं है,बल्कि अन्य कई देश हैं जहां जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। इनमें भारत और चीन के पड़ोसी पकिस्तान और बांग्लादेश का भी नाम शामिल है।

आजादी के पहले तक पाकिस्तान और बांग्लादेश भी भारत के ही हिस्से हुए करते थे। वर्तमान में भी अगर ये भारत के ही भाग होते तो भारत की बढ़ती जनसंख्या का केवल आप अनुमान ही लगा सकते हैं। जनसंख्या वृद्धि दर संबंधी आंकड़ों पर नजर रखने वाली वेबसाइट अनुसार 2021 में भारत की जनसंख्या लगभग 139 करोड़ हो चुकी है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या की रिपोर्ट के अनुसार भारत की आबादी 1.21 अरब यानी 121 करोड़ है। वर्ष 2021 चला गया और वर्ष 2022 और 2023 भी चला गया। और वर्ष 2024 का लगभग आधे से ज्यादा साल बीतने को आ गया है। लेकिन अभी नई जनगणना अधर में है।

हम देश की वर्ष 2011 की जनगणना की बात करें तो इस जनगणना को दो चरणों में पूरा किया गया था। पहले चरण में अप्रैल 2010 से सितंबर 2010 के बीच देशभर में घरों की गिनती की गई थी। वहीं, दूसरे चरण में 9 फरवरी 2011 से 28 फरवरी 2011 तक चली। यह जनगणना किसी भी देश के विकास में मील का पत्थर होती है और नीति निर्धारण में अहम भूमिका निभाती है। देश में प्रत्येक 10 साल में एक बार जनगणना होती है। 

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पिछली जनगणना के 12 वर्ष पूरे हो चुके हैं और 13वां वर्ष शुरू हो चुका है। वर्ष 2021 में नई जनगणना होनी थी,लेकिन वैश्विक संक्रामक महमारी कोविड-19 के प्रकोप के कारण यह नहीं हो पाई। और इसमें लगातार देरी हो रही है। जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि के कारण संसार पर भुखमरी का संकट तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है। जब हम महानगरों की बात करते हैं तो  साफ नजर आता है कि महानगरों कि जनसंख्या वृद्धि के कारण वाहनों की लंबी लंबी कतारें, घण्टों तक लम्बा जाम और बेतरतीब फंसे वाहन आमजन के जीवन मे बड़ी समस्या बनते दिखाई दे रहे है। 

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बढ़ती जनसंख्या के कारण स्थिति बदहाल हो रही है। चाहे  बात रेलवे स्टेशनों की हो या फिर बस स्टैंड, बाजार, मॉल, सड़कों की हर तरफ भीड़ तंत्र दिखाई दे रहा है। जिसके कारण आमजन फंसता दिखाई दे रहा है। सरकार की ओर से चलाए जा रहे तमाम अभियान बौने साबित हो रहे हैं।  लंदन के विश्व विख्यात  जनसंख्या विशेषज्ञ हरमन वेरी ने संसार को सावधान करते हुए लिखा है- सन् 2050 में संसार की हालत महाप्रलय से भी बुरी हो जायेगी। तब धरती पर न तो इतने लोगों के लिए पर्याप्त भोजन मिल सकेगा, न शुद्ध वायु,न पानी,न बिजली। देश की उत्पादकता ही राष्ट्रीय विकास का आधार है। 

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- प्रकाश चंद्र शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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