स्वच्छता के लिए जिम्मेदार बनना जरूरी

भविष्य में यह मिशन और कामयाबी हासिल करेगा

स्वच्छता के लिए जिम्मेदार बनना जरूरी

एसबीएम ने केवल शौचालयों के निर्माण और पहुंच बढ़ाने से आगे बढ़ते हुए, प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने के लिए समुदायों को सही मार्गदर्शन देने पर ध्यान केंद्रित किया है।

ऐसे वक्त में जब हम स्वच्छ भारत मिशन की दसवीं वर्षगांठ मना रहे हैं, हम एक दशक तक चलने वाली एक ऐसी परिवर्तनकारी यात्रा के साक्षी बन रहे हैं, जिसने भारत में साफ -सफाई और स्वच्छता को एक नए रूप में परिभाषित किया है। यह मिशन महज एक पहल नहीं, बल्कि एक आंदोलन था । देश के हर नागरिक को स्वच्छ, स्वस्थ और विकसित भारत में योगदान करने का आह्वान।

आज एसबीएम ने केवल शौचालयों के निर्माण और पहुंच बढ़ाने से आगे बढ़ते हुए, प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने के लिए समुदायों को सही मार्गदर्शन देने पर ध्यान केंद्रित किया है। यह बदलाव स्वच्छता के लिए जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देता है और लोगों को समाज की भलाई में सक्रिय रूप से योगदान करने के लिए प्रोत्साहित करता है। खुद प्रधानमंत्री द्वारा इस पहल को आगे लाने के प्रयास की बदौलत, भारत आज खुले में शौच से मुक्त हो चुका है और इस पहल ने हमारे समुदायों में जन भागीदारी के भाव को बल दिया है। शहरी क्षेत्रों में एसबीएम ने अपशिष्ट प्रबंधन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है।

प्रभावी अपशिष्ट पृथक्करण प्रणालियों के कार्यान्वयन से लेकर  ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना तक, देश भर के शहरों ने आज नए समाधानों को खुले दिल से अपनाया है, जो हमारे माननीय प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2014 -2024 के बीच किए गए दूरदर्शी नेतृत्व और अथक प्रयासों के कारण ही संभव हो पाया है। राज्य सरकारों ने स्थानीय स्तर पर राष्ट्रीय नीतियों को लागू किया है, स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित किए हैं, शहरों को ध्यान में रखते हुए स्वच्छता रणनीतियों को तैयार किया है और सार्वजनिक शौचालयों और अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं जैसे आवश्यक बुनियादी ढ़ांचे का निर्माण किया है, इसके साथ ही नगरपालिका कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से क्षमता निर्माण में भी निवेश किया गया है। इस मुहिम के तहत हो रही प्रगति को ट्रैक करने और जरूरी बदलाव करने के लिए मजबूत निगरानी और मूल्यांकन तंत्र के साथ अपने प्रदर्शन पर काम किया है। विभिन्न क्षेत्रों के साथ सहयोग करते हुए मिशन ने स्थानीय निकायों, गैर सरकारी संगठनों और नागरिकों को एक सामान्य लक्ष्य की दिशा में मिलकर काम करने के लिए सशक्त बनाया है।

सार्वजनिक, निजी भागीदारी पर जोर देने की वजह से संसाधनों को जुटाने और तकनीकी नवाचारों में और सुविधा मिली है, जिससे स्वच्छता समाधान अधिक सुलभ और टिकाऊ हुए हैं। इसके अतिरिक्त सफाई मित्र सुरक्षा शिविर जैसी पहल स्वास्थ्य जांच प्रदान करती है और सामाजिक सुरक्षा लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाती है, जो सामुदायिक स्वास्थ्य के लिए मिशन के व्यापक दृष्टिकोण पर जोर देती है। यह सुनिश्चित करना बेहद महत्वपूर्ण है कि स्वच्छता सेवाएं, समावेशी हों और हाशिए पर रहने वाले लोगों तक न्यायसंगत तरीके से पहुंचें और एसबीएम ने सफलतापूर्वक ऐसा किया है। ऐसा ही एक उदाहरण, जो मैंने करीब से देखा है वह छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के अंबिकापुर का है। एक विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन योजना के जरिए, करीब 200,000 निवासियों वाले इस शहर ने लैंडफिल कचरे को प्रभावी ढंग से कम किया है और इसे स्रोत पर प्रबंधित करते हुए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता अर्जित की है। इस सफलता का एक प्रमुख कारण है, 470 सफाई कर्मियों का एक समर्पित समूह, जो शहर के लिए कचरे का प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित जीवंत महिलाओं का एक समूह है। उनके प्रयासों ने न केवल राजस्व उत्पन्न करने के लिए बल्कि समावेशी रणनीतियों के सामाजिक-आर्थिक लाभों का प्रदर्शन करते हुए, अंबिकापुर नगर पालिका को सामुदायिक सेवाओं में पुनर्निवेश करने में भी सफलतापूर्वक मदद की है।

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अंबिकापुर में महिलाएं संपूर्ण अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया को चलाती हैं। संग्रह और पृथक्करण से लेकर प्रसंस्करण तक  वे कचरे को दायित्व के बजाय एक संसाधन के रूप में देखती हैं। यह मानसिकता रीसाइक्लिंग और संसाधन वसूली को प्रोत्साहित करती है। अपशिष्ट निष्पादन के बारे में समुदाय को शिक्षित करके वे पर्यावरण रखरखाव में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देती हैं, आर्थिक अवसरों के मौके  बनाती हैं और टिकाऊ प्रथाओं को प्राथमिकता देती हैं। जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन से शुरुआत को ज्यादा अहमियत देने वाले इस नजरिए ने राज्यों को अपशिष्ट प्रबंधन में प्रशंसनीय प्रगति करने में सक्षम बनाया है। हमारे पास देश भर में महिला सशक्तीकरण के तमाम उदाहरण मौजूद हैं, जिनसे सफाई और स्वच्छता के मिशन के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में महिलाओं की अहम भूमिका साफ दिखाई देती है।

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अपशिष्ट प्रबंधन, सामुदायिक शिक्षा और स्वास्थ्य पहलों में महिलाएं सबसे मजबूत नेतृत्व की भूमिका अदा करती हैं, जो उन्हें बदलाव का एक अहम केंद्र बिंदु बनाता है। अपनी सक्रिय भागीदारी के जरिए, उन्होंने न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगदान दिया है,  बल्कि साफ  और स्वच्छता के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को भी बदला है। सफाई कर्मी के रूप में महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता मिलती है और साथ ही उनके समुदायों में उनका ओहदा बढ़ता है। यह आर्थिक सशक्तीकरण और पारंपरिक लिंग मानदंडों को चुनौती देते हुए उनके आत्मसम्मान और मान्यता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। महिलाएं सामुदायिक बदलाव लाने और जागरूकता अभियानों में भी अहम भूमिका निभाती हैं। अंत में, एसबीएम में महिलाओं के आने से न केवल स्वच्छता पहल की प्रभावशीलता में इजाफा हुआ है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक विकास और लैंगिक समानता को भी बढ़ावा मिला है। भविष्य में यह मिशन और कामयाबी हासिल करेगा। अब स्वच्छता प्रथाओं में स्थिरता सुनिश्चित करने, शहरीकरण की चुनौतियों का समाधान करने और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। 

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-तोखन साहू
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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