युवाओं में नशे की लत चिंताजनक
भारतीय सनातन संस्कृति को गहरा धक्का लगा है
अंत में यही कहूंगा कि विभिन्न जागरूकता अभियानों, सामुदायिक कार्यक्रमों से नशे की फैलती जड़ों का उन्मूलन आसानी से किया जा सकता है।
नशा हमारे देश और समाज के समक्ष दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक अस्थिरता पैदा कर सकता है। यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है कि नशीली दवाओं के उपयोग को कूल और सौहार्द के एक फैशनेबल प्रदर्शन के रूप में सराहा जाता है। कहना गलत नहीं होगा कि नशे का सेवन हमारी युवा पीढ़ी को एक खतरनाक जीवनशैली की ओर अग्रसर कर रहा है और इससे भारतीय सनातन संस्कृति को गहरा धक्का लगा है।
हाल ही में ड्रग तस्करी के एक केस की सुनवाई करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने देश के युवाओं को यह नसीहत दी है कि नशे में डूबे रहना कूल नहीं है, इससे बचना चाहिए। माननीय न्यायालय ने यह बात कही है कि नशे की लत युवाओं पर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से बुरा असर डाल रही है। सच तो यह है कि आज नशे की लत से युवा न तो अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक लक्ष्यों को प्राप्त कर पा रहे हैं और न ही अपने शैक्षणिक लक्ष्यों को हासिल कर पा रहे हैं। नशा हमारे देश और समाज के समक्ष दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक अस्थिरता पैदा कर सकता है। यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है कि नशीली दवाओं के उपयोग को कूल और सौहार्द के एक फैशनेबल प्रदर्शन के रूप में सराहा जाता है। कहना गलत नहीं होगा कि नशे का सेवन हमारी युवा पीढ़ी को एक खतरनाक जीवनशैली की ओर अग्रसर कर रहा है और इससे भारतीय सनातन संस्कृति को गहरा धक्का लगा है। क्या यह दुखद नहीं है कि आज हमारी युवा पीढ़ी भावनात्मक संकट और शैक्षणिक दबावों से बचने के लिए या साथियों के दबाव के कारण नशीली दवाओं की ओर रुख करती है। नशे से धन, समय, स्वास्थ्य की तो बर्बादी होती ही है, नशा समाज में क्राइम की घटनाओं को भी कहीं न कहीं बल देता है। नशा हमारी युवा पीढ़ी को खत्म कर रहा है और युवा पीढ़ी के खत्म होने का मतलब है कि राष्टÑ पर बड़ा खतरा मंडराना, क्यों कि युवा ही किसी राष्ट्र के असली भविष्य होते हैं। भारत तो आज वैसे भी पचपन करोड़ से भी ज्यादा युवा आबादी के साथ विश्व का सबसे युवा देश है। ऐसे में युवाओं का नशे की गिरफ्त में आना वाकई अत्यंत चिंताजनक है। आज हमारे देश के युवा अपने साथियों के दबाव, माता-पिता के असीम स्रेह, देखभाल और मार्गदर्शन की कमी, शैक्षणिक दबाव से तनाव, अवसाद और नशीली दवाओं की आसानी से उपलब्धता के कारण नशे के चंगुल में आसानी से फंस जाते हैं और इसके जाल से बाहर नहीं निकल पाते हैं। यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है कि आज हमारे देश के युवा अनेक व्यक्तिगत और भावनात्मक मुद्दों से निपटने की कोशिश में पलायनवाद के रूप में भी नशीली दवाओं का सहारा लेते हैं।
नशे के कारण युवाओं का पूरा तेज छीन जाता है। माननीय न्यायालय ने यह बात कही है कि प्रयासों के बावजूद, लाभ की चाहत ने मादक पदार्थों के व्यापार और दुरुपयोग के खतरे को बरकरार रखा है, जो इतना कठोर और बहुआयामी है कि यह सभी आयु, समूहों में पीड़ा का कारण बनता है। न्यायालय ने यह भी खुलासा किया कि भारत में लगभग 2.26 करोड़ लोग नशीले पदार्थों का उपयोग करते हैं। पाठकों को यहां जानकारी देना चाहूंगा कि यह आंकड़ा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की 2019 की रिपोर्ट पर आधारित है। यह कहना गलत नहीं होगा कि नशा नाश का प्रमुख कारण है और आज भारत वर्तमान में बढ़ते मादक पदार्थों के व्यापार और बढ़ती लत के संकट से जूझ रहा है। यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है कि आज सभी जनसंख्या समूहों में मादक द्रव्यों का सेवन किया जा रहा है। आज शराब के बाद, भांग और नशीले पदार्थ भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थ हैं। आज नशा तस्कर गिरोह सीमा पार से मादक द्रव्यों का व्यापार करते हैं और मादक द्रव्यों की उपलब्धता आसान है। एमओजेएसई 2019 रिपोर्ट के अनुसार भारत में 77 लाख समस्याग्रस्त ओपिओइड उपयोगकर्ताओं में से आधे से अधिक उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और उड़ीसा राज्यों में फैले हुए हैं। आज देश की युवा पीढ़ी को नशे के जाल, चंगुल से बचाने के लिए अभिभावकों द्वारा ठोस प्रयास किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है। आज घरेलू हिंसा और माता-पिता के बीच कलह विभिन्न कारणों से माता-पिता, अभिभावकों द्वारा बच्चों के साथ समय न बिताना और जेब खर्च आदि करके इसकी भरपाई करना कुछ ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से युवा किशोर मादक द्रव्यों के सेवन और पलायनवाद की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में आज माता पिता, शिक्षकों का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वे युवा पीढ़ी के साथ उनकी समस्याओं को लेकर समय-समय पर उनसे संवाद करें, वास्तव में नशीली दवाओं की लत के जोखिम को कम करने में माता-पिता की जागरूकता, संचार और समर्थन के साथ संवाद बहुत ही अहम् और महत्वपूर्ण हैं। इतना ही नहीं नशे से बचने के लिए आज युवाओं को नशीली दवाओं और नशे के सेवन के खतरों के बारे में भी शिक्षित करने की आवश्यकता है। स्कूल और कॉलेज युवाओं को शिक्षित कर उन्हें जागरूक व सचेत कर सकते हैं। इसके अलावा स्थानीय समुदायों, विभिन्न गैर सरकारी संगठनों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर भी नशे व नशीली दवाओं के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं। अंत में यही कहूंगा कि विभिन्न जागरूकता अभियानों, सामुदायिक कार्यक्रमों से नशे की फैलती जड़ों का उन्मूलन आसानी से किया जा सकता है।
-सुनील कुमार महला
यह लेखक के अपने विचार हैं।
Comment List