शतरंज की दुनिया का नया सितारा
गुकेश ने 12 साल 7 महीने की उम्र में ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल किया
शतरंज केवल एक खेल नहीं है, यह दिमाग और मानसिक शक्ति का असली परीक्षण है।
गुकेश ने 12 साल 7 महीने की उम्र में ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल किया, जो उनकी प्रतिभा का परिचायक था। इसके बाद उन्होंने लगातार अपने खेल को निखारा और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद को साबित किया। उनकी मेहनत, मानसिक दृढ़ता और तकनीकी कौशल ने उन्हें शतरंज के सबसे कठिन मुकाबलों के लिए तैयार किया। शतरंज केवल एक खेल नहीं है, यह दिमाग और मानसिक शक्ति का असली परीक्षण है।
शतरंज की दुनिया में भारत ने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। 18 वर्षीय डोम्माराजू गुकेश ने सबसे कम उम्र में शतरंज का विश्व खिताब जीतकर नया इतिहास रच दिया है। उन्होंने चीन के डिंग लिरेन को हराकर यह मुकाम हासिल किया। यह जीत न केवल भारतीय खेलों के लिए गौरव का क्षण रहा, बल्कि इस बात का प्रमाण भी है कि भारत अब शतरंज की महाशक्ति बनने की दिशा में अग्रसर है। डोम्माराजू गुकेश का जन्म चेन्नई में हुआ, जिसे भारत की शतरंज राजधानी माना जाता है। उनका शतरंज के प्रति रुझान बचपन से ही था। जब उन्होंने सात साल की उम्र में खेलना शुरू किया, तभी से उनका सपना था कि वह सबसे कम उम्र में विश्व चैंपियन बनें। यह सपना उन्होंने अपने परिवार के समर्थन और अपनी लगन से पूरा किया। गुकेश ने 12 साल 7 महीने की उम्र में ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल किया, जो उनकी प्रतिभा का परिचायक था। इसके बाद उन्होंने लगातार अपने खेल को निखारा और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद को साबित किया। उनकी मेहनत, मानसिक दृढ़ता और तकनीकी कौशल ने उन्हें शतरंज के सबसे कठिन मुकाबलों के लिए तैयार किया। शतरंज केवल एक खेल नहीं है, यह दिमाग और मानसिक शक्ति का असली परीक्षण है। गुकेश ने इस बात को बखूबी समझा और अपने खेल को न केवल तकनीकी रूप से मजबूत किया, बल्कि अपनी मानसिक शक्ति पर भी ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने मानसिक मजबूती के लिए दक्षिण अफ्रीकी मेंटल हेल्थ कोच पैडी अप्टन की मदद ली। पैडी अप्टन का योगदान भारतीय खेलों में पहले भी रहा है। उन्होंने 2011 में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम को विश्व कप जीतने में मदद की थी। उनकी सलाह और मार्गदर्शन से गुकेश ने मुश्किल समय में भी अपना आत्मविश्वास बनाए रखा।
विश्व चैंपियनशिप के दौरान पहली बाजी हारने के बाद भी गुकेश ने शानदार वापसी की। उन्होंने अपनी हार को सीखने का अवसर बनाया और अगले दौर में जीत दर्ज की। उनकी यह क्षमता कि वह विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखते हैं, उनकी सबसे बड़ी ताकत है। गुकेश और डिंग लिरेन के बीच हुए इस मुकाबले में रोमांच अपने चरम पर था। यह मैच 14 बाजियों का था, जिसमें दोनों खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया। पहले दौर में हार के बाद गुकेश ने तीसरी और 11वीं बाजी में जीत हासिल की। हालांकि 12वीं बाजी में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अंतिम बाजी में अपनी सूझबूझ और लिरेन की एक गलती का फायदा उठाते हुए खिताब अपने नाम कर लिया। खेल का निर्णायक क्षण 14वीं बाजी में आया, जब लिरेन ने 55वीं चाल में एक गलती कर दी। गुकेश के कॅरिअर में वेस्टब्रिज आनंद अकादमी की भी अहम भूमिका रही। विश्वनाथन आनंद ने खुद भी उन्हें कई बार प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि गुकेश को उनकी सलाह ने कठिन समय में आत्मविश्वास बनाए रखने में मदद की। गुकेश की जीत ने भारत में शतरंज के प्रति लोगों की रुचि को बढ़ाने का काम किया है। भारत पहले ही 85 से अधिक ग्रैंडमास्टर्स का देश बन चुका है और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। भारत में शतरंज की यह प्रगति तमिलनाडु जैसे राज्यों के प्रयासों का परिणाम है। यदि देश के अन्य हिस्सों में भी शतरंज को प्रोत्साहन दिया जाए, तो भारत इस खेल में सोवियत संघ जैसा दबदबा बना सकता है।
प्रगनानंदा, अर्जुन एरिगेसी और विदित गुजराती जैसे युवा खिलाड़ियों की सफलता इस बात का प्रमाण है कि भारत शतरंज की नई महाशक्ति बनने की कगार पर है। गुकेश की सफलता ने उन्हें शतरंज की दुनिया के अन्य महान खिलाड़ियों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। इससे पहले गैरी कास्पारोव सबसे कम उम्र के विश्व चैंपियन थे, जिन्होंने यह खिताब 22 साल की उम्र में जीता था। लेकिन गुकेश ने उन्हें पीछे छोड़ते हुए केवल 18 साल की उम्र में यह मुकाम हासिल कर लिया। उनकी तुलना जेवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा से की जा रही है, जिन्होंने भारत के लिए ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था। हालांकि शतरंज का दायरा जेवलिन थ्रो से कहीं बड़ा है, क्योंकि यह 200 से अधिक देशों में खेला जाता है। गुकेश की इस जीत के लिए उन्हें 1.35 मिलियन डॉलर की भारी भरकम पुरस्कार राशि मिली है। यह दर्शाता है कि शतरंज अब केवल दिमाग का खेल नहीं रहा, बल्कि इसकी लोकप्रियता भी तेजी से बढ़ रही है। उनकी यह कहानी हर युवा और खासतौर पर बच्चों के लिए प्रेरणा है। उन्होंने साबित किया कि केवल सपने देखना ही नहीं, बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए कठिन परिश्रम करना भी जरूरी है। उनके माता-पिता ने भी उनके सपने को साकार करने में बड़ा योगदान दिया। गुकेश की यह उपलब्धि केवल उनके लिए नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का विषय है। यह शतरंज के खेल में भारत के दबदबे की शुरुआत का संकेत है। आने वाले समय में यदि देश में अधिक अंतरराष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंट आयोजित किए जाएं, तो इससे न केवल भारतीय खिलाड़ियों को मौका मिलेगा, बल्कि शतरंज की लोकप्रियता भी बढ़ेगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि गुकेश आने वाले समय में भारतीय शतरंज को नए आयाम देंगे।
-देवेन्द्रराज सुथार
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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