विदेशी निवेशकों का भरोसा जीत रहा भारत  

विदेशी निवेशकों का भरोसा जीत रहा भारत  

पिछले साल समान अवधि के आंकड़े 10.9 अरब डॉलर से 47.80 प्रतिशत अधिक है।

रत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एफडीआई बीते 10 वर्षों में तेजी से बढ़ा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान 600 अरब डॉलर से ज्यादा का एफडीआई आया है। उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग और भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार देश में 1991 के निजीकरण के बाद से जून 2024 तक कुल 1,059 अरब डॉलर का एफडीआई आया है। इसमें से 689 अरब डॉलर यानी 65 प्रतिशत 2014 से जून 2024 के बीच आया है, जबकि 370 अरब डॉलर यानी 35 प्रतिशत 1991 से 2014 बीच आया था। भारत में चालू वित्त वर्ष 2024-25 में भी एफडीआई मजबूत रहा है। डीपीआईआईटी के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से जून की अवधि में 16.17 अरब डॉलर का एफडीआई भारत में आया है, जो पिछले साल समान अवधि के आंकड़े 10.9 अरब डॉलर से 47.80 प्रतिशत अधिक है। वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में सबसे अधिक 3.9 अरब डॉलर का निवेश सिंगापुर से, 3.2 अरब डॉलर का निवेश मॉरीशस से, 2.4 अरब डॉलर का निवेश नीदरलैंड से, 1.5 अरब डॉलर का निवेश अमेरिका से, जापान से 629 मिलियन डॉलर, साइप्रस से 615 मिलियन डॉलर और यूएई से 555 मिलियन डॉलर निवेश आया था। इस दौरान सबसे ज्यादा 3.9 अरब डॉलर का एफडीआई निवेश सर्विस सेक्टर में आया है। कंप्यूटर और हार्डवेयर सेक्टर में 2.7 अरब डॉलर गैर-पारंपरिक एनर्जी सेक्टर में 1.03 अरब डॉलर, कंस्ट्रक्शन गतिविधियों में 666 मिलियन डॉलर, ट्रेडिंग और टेलीकम्युनिकेशन सेक्टर में 460 मिलियन डॉलर और 455 मिलियन डॉलर का निवेश आया है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो विकास, रोजगार और नवाचार के प्रमुख कारक के रूप में कार्य करता है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए, 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद से एफडीआई इसके आर्थिक सुधारों और आधुनिकीकरण की आधारशिला रहा है। दशकों से भारत अपने विशाल बाजार, कुशल कार्यबल और अनुकूल सरकारी नीतियों की बदौलत निवेश के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में उभरा है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से तात्पर्य किसी विदेशी संस्था द्वारा घरेलू उद्यम में किए गए निवेश से है, जिसमें उद्यम पर दीर्घकालिक हित और नियंत्रण शामिल होता है। भारत का एफडीआई के प्रति दृष्टिकोण पिछले कुछ वर्षों में काफी विकसित हुआ है।

उदारीकरण से पहले यानि 1991 से पहले भारत में एफडीआई की एक प्रतिबंधात्मक व्यवस्था थी, जिसमें कड़े नियम और सीमित विदेशी भागीदारी थी। 1991 के आर्थिक सुधारों ने अर्थव्यवस्था को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एफडीआई के लिए नीतियों को उदार बनाया गया, जिससे विदेशी निवेशकों को भारत के बाजारों तक अधिक पहुंच मिली। इसमें दूरसंचार, ऑटोमोबाइल और आईटी जैसे उद्योगों में सुधार शामिल थे। आज भारत वैश्विक स्तर पर एफडीआई के शीर्ष प्राप्तकर्ताओं में से एक है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देशों से निवेश आकर्षित करता है। एफडीआई भारत की अर्थव्यवस्था में बहुआयामी भूमिका निभाता है, जो कई तरीकों से इसके विकास में योगदान देता है। एफडीआई विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी पूंजी लगाकर भारत के सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह औद्योगिक विकास को बढ़ावा देता है, बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करता है और अर्थव्यवस्था पर गुणक प्रभाव डालता है। एफडीआई विनिर्माण, आईटी और खुदरा जैसे क्षेत्रों में सीधे तौर पर लाखों नौकरियां पैदा करता है। यह सहायक उद्योगों और सेवाओं में अप्रत्यक्ष रोजगार को भी बढ़ावा देता है, जिससे बड़े और बढ़ते कार्यबल वाले देश में बेरोजगारी की चुनौतियों का समाधान होता है। इसी प्रकार दूरसंचार, ऑटोमोबाइल और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों को विदेशी निवेशकों द्वारा लाई गई तकनीकी प्रगति से बहुत लाभ हुआ है। एफडीआई ने भारत के बुनियादी ढांचे के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें सड़कें, बंदरगाह और बिजली संयंत्र शामिल हैं। उदाहरण के लिए अक्षय ऊर्जा में विदेशी निवेश ने भारत को टिकाऊ ऊर्जा समाधानों की ओर बढ़ने में मदद की है। भारतीय कंपनियों को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकृत करने, उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करने और निर्यात को बढ़ावा देने में मदद करता है। यह आईटी और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में स्पष्ट है, जहां भारत ने एक मजबूत वैश्विक उपस्थिति स्थापित की है। विदेशी मुद्रा लाकर, एफडीआई भारत को अपने चालू खाता घाटे का प्रबंधन करने में मदद करता है, जिससे बाहरी उधार पर निर्भरता कम हो जाती है। यह सत्य है कि एफडीआई के कई लाभ हैं, लेकिन इसकी कुछ चुनौतियां भी हैं। एफडीआई पर अत्यधिक निर्भरता से कमजोरियां पैदा हो सकती हैं, खासकर तब, जब विदेशी निवेशक आर्थिक मंदी के दौरान धन वापस ले लेते हैं। इससे अर्थव्यवस्था के लड़खड़ाने का खतरा रहता है। एफडीआई प्रवाह अक्सर विशिष्ट क्षेत्रों में केंद्रित होता है, जिससे अन्य क्षेत्रों को कम फंड मिल पाता है। 

-राम शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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