तेजी से पनप रही है डिब्बा-बंद भोजन संस्कृति
डिब्बा बंद भोजन कभी भी ताजा भोजन की होड़ नहीं कर सकता है
हम भारतीय भी आज पश्चिमी देशों की खान-पान संस्कृति का अनुसरण करने लगें हैं।
डिब्बा बंद भोजन कभी भी ताजा भोजन की होड़ नहीं कर सकता है, भले ही कोई कुछ भी कहे। यह ठीक है कि थर्मल प्रोसेसिंग से विभिन्न खाद्य उत्पाद डिब्बों में पूरे साल उपलब्ध रहते हैं और इनकी उपलब्धता भी कहीं अधिक आसान और सरल है। हले की तुलना में आज हमारी जीवनशैली बहुत बदल गई है। सच तो यह है कि आज हम आपा-धापी और दौड़-धूप भरी जिंदगी जी रहे हैं। समय होते हुए भी आज हमारे पास दूसरों के लिए तो दूर की बात, स्वयं के लिए भी समय नहीं बचा है। समय के अभाव में हम अपने रहन-सहन, खान-पान पर भी पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। खान-पान पर तो बहुत ज्यादा असर पड़ा है। इससे हमारी जीवनशैली पूरी तरह से बदल गई है। आज हम सभी पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव के बीच जी रहे हैं और हमारी इस बदलती जीवनशैली का प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ा है। आज हम अपने जीवन में इतने अधिक व्यस्त हो गए हैं कि हमारे पास न तो भोजन बनाने का समय ही बचा है और न ही इसे ठीक से खाने का। हम इत्मिनान से भोजन करते नहीं, उसे निगलते हैं। विशेषकर आज मेट्रो सीटीज में डिब्बा बंद भोजन की संस्कृति पनपती चली जा रही है। कहना गलत नहीं होगा कि ताजा भोजन, ताजा ही होता है और डिब्बा बंद भोजन की तुलना में कहीं अधिक पौष्टिक और पौषण युक्त। डिब्बा बंद भोजन कभी भी ताजा भोजन की होड़ नहीं कर सकता है, भले ही कोई कुछ भी कहे। यह ठीक है कि थर्मल प्रोसेसिंग से विभिन्न खाद्य उत्पाद डिब्बों में पूरे साल उपलब्ध रहते हैं, और इनकी उपलब्धता भी कहीं अधिक आसान और सरल है। यह भी ठीक है कि डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों को जीवाणुरहित किया जाता है और इन्हें कंटेनरों में पैक करके वायुरोधी ढंग से सील किया जाता है, लेकिन चिकित्सकों का यह मानना है कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ खाने से व्यक्ति की जैविक उम्र में इजाफा होता है, अर्थात बुढ़ापा जल्दी दस्तक देने लगता है। हालांकि कुछ लोग यह भी मानते हैं कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ ताजे और जमे हुए खाद्य पदार्थों की तरह ही पौष्टिक हो सकते हैं क्योंकि डिब्बाबंदी से कई पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं। उनका यह मानना है कि डिब्बाबंदी की प्रक्रिया से खनिजों, वसा में घुलनशील विटामिन, प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अपेक्षाकृत अपरिवर्तित रहती है, लेकिन डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में उच्च ताप के कारण कुछ जल में घुलनशील विटामिन जैसे विटामिन सी और बी क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। हालांकि यह भी एक तथ्य है कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ उन लोगों के लिए उपयोगी होते हैं, जो दूरदराज के क्षेत्रों में रहते हैं जहां ताजा खाद्य पदार्थ आसानी से उपलब्ध नहीं होते, विशेषकर सैन्यकर्मियों के लिए। यहां तक कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ भोजन की बर्बादी को कम करने में मदद करते हैं। यह भी एक तथ्य है कि जिन डिब्बों में इनको संरक्षित किया जाता है वे डिब्बे हल्के होते हैं, इन सभी गुणों के कारण ये डिब्बे भोजन को ऑक्सीजन के संपर्क से तथा अत्यधिक प्रकाश के संपर्क से बचा सकते हैं।
डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों के नुकसान यह हैं कि डिब्बाबंदी की प्रक्रिया में अक्सर घुले हुए नमक का प्रयोग किया जाता है और उच्च नमक सामग्री से उच्च रक्तचाप, हृदय रोग जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। नमक के अलावा डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में अतिरिक्त चीनी की मात्रा भी हो सकती है। इसके अलावा, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ अम्लीय नहीं होते, क्योंकि उन्हें पर्याप्त तापीय उपचार नहीं मिलता जिससे उनमें बैक्टीरिया पनप सकते हैं। यह भी एक तथ्य है कि निर्माता अक्सर डिब्बाबंद सूप में संरक्षण और स्वाद बढ़ाने के लिए सोडियम फॉस्फेट मिलाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऊतक क्षति, हृदय रोग का खतरा, गुर्दे की दुर्बलता, और हड्डियों का नुकसान आदि समस्याएं हो सकती हैं। कुछ मामलों में डिब्बाबंद भोजन को अधिक टिकाऊ बनाने के लिए उसमें प्रचुर मात्रा में संरक्षक पदार्थ, स्टार्च आदि मिला दिए जाते हैं। डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों में बिस्फेनॉल जैसे रसायन मिले हो सकते हैं, जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इतना ही नहीं कभी-कभी डिब्बों में मौजूद धातु भोजन के अंदर पहुंच जाती है, जिससे भोजन में धातु जैसा स्वाद आ जाता है। इनमें वसा व कार्बोहाइड्रेट भी खाने को देर तक चलने लायक बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि रासायनिक पदार्थों द्वारा संरक्षित डिब्बाबंद खाना हमारे शरीर में सूजन भी पैदा कर सकता है। डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों के लगातार सेवन से व्यक्ति मोटापा, हृदय रोग, दूसरी श्रेणी के मधुमेह व गठिया जैसे रोगों का भी शिकार हो सकता है। डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैट अधिक होता है जो मोटापे और हृदय रोगों को जन्म देते हैं। वास्तव में आज भारतीय परिवारों में डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति बढ़ी है तो उसका कारण यह है कि आज लोगों की आय में पहले की तुलना में बढ़ोत्तरी हुई है और हम भारतीय भी आज पश्चिमी देशों की खान-पान संस्कृति का अनुसरण करने लगें हैं।
-सुनील कुमार महला
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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