प्राकृतिक संसाधनों का बढ़ता असंतुलन
प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से हर प्राणी की अपेक्षा की पूर्ति संभव है।
मुद्दा प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से हर प्राणी की अपेक्षा की पूर्ति संभव है। लेकिन संसाधनों के उपभोग को लेकर बढ़ता असंतुलन ही पर्यावरण संकट के रूप में उभर रहा है। वर्तमान में पर्यावरण के साथ खिलवाड़ तेजी के साथ बढ़ रहा है। यही वजह है कि आज वनों का विनाश तेजी के साथ हो रहा है, प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग तेजी से बढ़ रहा है, जिसके कारण प्रकृति असंतुलित एवं अस्थिर हो रही है।
दिन-प्रतिदिन निरन्तर हमारा पर्यावरण बदल रहा है और जैसे-जैसे हमारा पर्यावरण बदलता है, वैसे-वैसे ही हमें पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति ओर अधिक जागरूक व सचेत होने की आवश्यकता बढ़ जाती है। विविध प्रदूषण, बढ़ती जनसंख्या, अपशिष्ट निपटान, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीनहाउस का बढ़ता प्रभाव मानव जाति के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ना, गर्मी और ठंडक की अवधि और विभिन्न प्रकार के मौसम परिवर्तन में भारी वृद्धि के साथ इन पर्यावरणीय मुद्दों के साथ-साथ अपने जीवन जीने के तरीके के बारे में बहुत अधिक जागरूक रहकर चिंतन करने की आवश्यकता है। प्रकृति की व्यवस्था के अनुरूप संतुलन ही पर्यावरण है, मानव, पशु, पेड़-पौधे, वायु, जल जमीन की पर्यावरण का निर्माण करते हैं। प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से हर प्राणी की अपेक्षा की पूर्ति संभव है। लेकिन संसाधनों के उपभोग को लेकर बढ़ता असंतुलन ही पर्यावरण संकट के रूप में उभर रहा है। वर्तमान में पर्यावरण के साथ खिलवाड़ तेजी के साथ बढ़ रहा है। यही वजह है कि आज वनों का विनाश तेजी के साथ हो रहा है, प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग तेजी से बढ़ रहा है, जिसके कारण प्रकृति असंतुलित एवं अस्थिर हो रही है। बढ़ती जनसंख्या का संकेत साफ है कि आने वाले समय में पर्यावरण के द्वार पर विनाश का संकट तेजी से बढ़ता जा रहा है। जनसंख्या विस्फोट के कारण संपूर्ण मानव जाति पर पर्यावरण के खतरे मंडरा रहे हैं।
पर्यावरण से खिलवाड़ का परिणाम मानव के समक्ष दानव के रूप में उभर रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के ग्लोबल इंवायरमेंट आउटलुक 3 में छपे आंकड़ों के अनुसार सन् 2032 तक पृथ्वी के ऊपरी सतह का 70 प्रतिशत भाग तबाही के कगार पर पहुंच जाएगा। कथित विकास की दौड़ में शहरों का बढ़ता दायरा, सड़कों एवं कारखानों के लिए जगहों का फैलाव लगभग दुगुना हो जाएगा। कल-कारखानों से निकलने वाला धुंआ प्राणी जगत के लिए जहर का कार्य कर रहा है, वहीं परिवहन के आधुनिक साधनों के माध्यम से निकला हुआ धुआं भी मानव जाति के लिए घातक संकेत है। हालांकि दुनिया सचेत होने का प्रयास कर रही है, लेकिन विकासशीलता के नाम पर मानव की मजबूरियां बढ़ी हैं। रोजगार के अवसर खोजने की लालसा श्रेष्ठ टेक्नोलोजी का निर्माण, विकसित देशों का पर्यावरण के प्रति रूखापन ऐसे कई कारण हैं, जिसके चलते विकासशील देशों के पास विकल्प सीमित होते जा रहे हैं। लेकिन विनाश के दैत्य का स्वरूप भयानक रूप लेता जा रहा है। मानव जाति को समय रहते संभलना ही होगा, अन्यथा पर्यावरण के द्वार बैठा विनाश का दैत्य प्राणीमात्र के लिए संकट पैदा करेगा, इसमें संदेह नहीं है। वर्तमान दौर में विविध प्रकारों से हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। इससे गंभीर रोगों में इजाफा हुआ है। ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण का बढ़ता विकराल रूप मानव जाति ही नहीं बल्कि संपूर्ण प्राणी जगत के लिए खतरा है। मनुष्य का असंतुलित रूप ही पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेंदार है। अधिक से अधिक पाने की लालसा ने ही पर्यावरण असंतुलन को बढ़ावा दिया है। अब जरूरत इस बात की हो रही है कि जीवन पर मंडराते इस खतरे से निजात कैसे पाएं, देश के सरकारी तंत्र को पर्यावरण जागरूकता के प्रति विशेष अभियान चलाकर जन-जन तक पर्यावरण शुद्धि की जानकारी उपलब्ध करवाई जानी चाहिए। भारत की आबादी तेज गति के साथ बढ़ रही है। जो हमारी संस्कृति एवं सभ्यता के साथ पर्यावरण के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है। शुद्ध पर्यावरण के निर्माण में हर नागरिक की भूमिका ही इस खतरे की संभावना को कम कर सकती है। वनों को कटने से रोकने के लिए जन-अभियान के साथ कड़े कानूनी प्रावधान जरूरत है।
सही मायने में वन रहेंगे तो ही जीवन रहेगा। जल का सीमित एवं संतुलित उपाय ही जल प्रदूषण को रोक सकता है। एक सर्वे के अनुसार 114 देशों के आंकड़ों के आधार पर किए गए सर्वेक्षण के अनुसार औसतन हर देश में 7 प्रतिशत प्रजातियां नष्ट होने के कगार पर हैं, वहीं वर्ष 2050 तक यह संख्या दुगुनी हो जाएगी। वे आंकड़ें मानव जाति को सोचने के लिए मजबूर करते हैं। भारतीय पर्यावरण संरक्षण कानून के अंतर्गत पर्यावरण के बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए विविध कानूनों यथा मत्स्य कानून, भारतीय धुआं, जल प्रदूषण कानून आदि के माध्यम से पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले तत्वों के प्रति कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। जरूरत केवल इस बात की है कि हर व्यक्ति सचेत होकर पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए यथासंभव प्रयास कर पर्यावरण पर बढ़ते खतरे को रोकने का प्रयास करें। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या यूं तो विश्वव्यापी है, लेकिन भारत देश में विषैली हो रही नदियां, शहरों में बढ़ता प्रदूषण और कारखानों में बहता जहरीला रसायन एक विकराल समस्या बनकर उभर रहा है। कुछ भी हो यदि पृथ्वी को रहने लायक बनाए रखना है तो पर्यावरण के साथ बढ़ते खिलवाड़ को रोकना ही होगा। अन्यथा यह संकट संपूर्ण प्राणी जगत के लिए विनाशक होगा।
-डॉ.वीरेन्द्र भाटी मंगल
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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