भ्रष्टाचार और पेपरलीक  की आग में झुलसते छात्र

भ्रष्टाचार और पेपरलीक  की आग में झुलसते छात्र

शिक्षकों, नीति-निर्माताओं, माता-पिता और पूरे समुदाय को एकजुट होकर एक ऐसी प्रणाली की पुन: स्थापना करने की जरुरत है, जो निष्पक्षता और मेरिटोक्रेसी के सिद्धांतों को बनाए रखे।

भारत की शिक्षा प्रणाली एक भयानक तूफान के चपेट में आ बैठी है। एक ऐसा तूफान, जो धूल-मिट्टी के रूप में अपने साथ भ्रष्टाचार और पेपर लीक का बवंडर साथ लिए चल रहा है। एक ऐसा तूफान, जो अनगिनत छात्रों की उम्मीदों और आकांक्षाओं को निगलता ही चला जा रहा है। इन तमाम सुर्खियों और जांचों के पीछे एक गहरी पीड़ा और विश्वासघात की घिनौनी कहानी छिपी है, जहां शैक्षणिक ईमानदारी की नींव हिल रही है और छात्र अनिश्चितता और निराशा के दलदल में भीतर तक धंसते चले जा रहे हैं।

छात्रों के लिए, परीक्षाओं में शामिल होना और इसमें उत्तीर्ण होना शिक्षा में उपलब्धि हासिल करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सबसे महत्वपूर्ण क्षण है, जो उनके भविष्य को परिभाषित करता है। नीट पेपर लीक और भ्रष्टाचार ने उनके सपनों को इस कदर चकनाचूर कर दिया है, जिसके बारे में जितनी बार बात की जाएगी, उतनी बार उन बेगुनाहों को इसके कांच चुभेंगे। उनके कठिन परिश्रम और समर्पण का निष्पक्ष मूल्यांकन जो वास्तव में होना चाहिए था, वह अब दूषित हो चुका है। इसके प्रभाव गंभीर हैं, जो उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों को ही नहीं, बल्कि उनके कॅरियर की आकांक्षाओं को भी खतरे में डालते हैं। कहने को तो यह सिर्फ पेपर लीक का ही मुद्दा है, लेकिन इसमें शामिल लोग शायद इस बात से अनजान हैं कि इस परीक्षा घोटाले का असर छात्रों की मानसिक और भावनात्मक स्थिति पर भी बहुत बुरी तरह पड़ा है। हंसते-खेलते इन छात्रों के चिंता, तनाव और निराशा ही साथी बन बैठे हैं। भ्रष्टाचार के खुलासे ने न सिर्फ उनकी शैक्षणिक रैंकिंग को खतरे में डाल दिया है, बल्कि भविष्य के लिए उनकी संभावनाओं और आत्म-मूल्यांकन को भी काफी ठेस पहुंचाई है।

एक बार सोचिए उस छात्र की मानसिक स्थिति के बारे में, जिसने न दिन देखे और न ही रातें, सारी सुख-सुविधाओं को छोड़कर वह अपने घर-परिवार और शहर से दूर यह सोचकर पढ़ाई करने गया कि जब भी लौटेगा, अपने पैरों पर खड़ा होकर ही लौटेगा। न खाने का पता और न पानी की प्यास, घंटों उस नए और अनजान शहर की लाइब्रेरी में पढ़कर गुजारे, हैसियत न होने के बावजूद कोचिंग वालों का पैसों से पेट भरा, ताकि अपनेऔर परिवार के सपनों को पूरा कर सके। यह सब एक-दो दिन नहीं, महीनों और कई-कई सालों तक किया। अनुत्तीर्ण होने पर फिर एक साल दोगुनी लगन के साथ अथाह मेहनत, वह भी मनोबल को एक इंच भी जगह से हिलाए बिना.. और फिर इतना त्याग करने के बाद एक दिन अचानक उसे पता चले कि उसके प्रयासों पर भ्रष्टाचार ने पानी फेर दिया है। यह उस मासूम के साथ किया गया विश्वासघात नहीं, तो और क्या है? अब ऐसे में यदि छात्रों द्वारा आत्महत्याओं के मामले बढ़ते हैं, तो इसमें दोष मैं छात्रों का नहीं मानता, इसके गुनहगार होंगे वो सभी भ्रष्टाचारी, जो इस कुकृत्य में शामिल हुए। उन्हें हत्यारे भी कहा जाए, तो मेरे अनुसार कम ही होगा। हमारा देश बीते कुछ दशकों से न जाने कितने ही छात्रों को आत्महत्या की सूली पर चढ़ा चुका है, जिसका आरोप कभी भी शासन-प्रशासन खुद पर नहीं लेता, और किनारे से निकल जाता है। अंग्रेजी में कहते हैं न सेफर साइड खेलना  बिल्कुल वही स्थिति है यहां.. काम भ्रष्टाचारियों का और नाम छात्रों का.. फिर अखबारों के पहले पन्नों पर एक ही खबर,फलाने शहर में इस महीने में दसवें छात्र ने लगाईं फांसी। मुझे यह कहते हुए बहुत दु:ख हो रहा है कि जहां आने वाले समय में इस संख्या को कम करने पर काम करने की जरूरत कई वर्षों से थी, कहीं न कहीं इस घोटाले के बाद हमने उलटा इसे बढ़ाने का कार्य किया है।  समाज को इस  सच्चाई का सामना करना होगा कि परीक्षाओं में हर भ्रष्टाचार और गलत आचरण न केवल छात्रों के भविष्य को अंधकार में डाल देता है, बल्कि विश्वास के ताने-बाने को भी कमजोर करता है। यह हमारे सामूहिक उत्तरदायित्व का विश्वासघात है, जो हमारे राष्ट्र की प्रगति को रोकने वाले सबसे बड़े कारकों में से एक है।

शिक्षकों, नीति-निर्माताओं, माता-पिता और पूरे समुदाय को एकजुट होकर एक ऐसी प्रणाली की पुन: स्थापना करने की जरुरत है, जो निष्पक्षता और मेरिटोक्रेसी के सिद्धांतों को बनाए रखे। यह सिर्फ पिछली गलतियों को सुधारने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आगे एक ऐसा रास्ता बनाने के बारे में भी है, जो हमारे युवाओं की भलाई और भविष्य की  संभावनाओं को प्राथमिकता दें। हमें आत्ममंथन करने की जरूरत है, जिसका उपयोग एक ऐसे भविष्य का निर्माण करने के लिए किया जाए, जहां हर छात्र की सफलता की यात्रा में अवसरों की मशाल जलाई जाए, बाधाओं की नहीं। अंतत:, हमारे समाज की प्रगति का सच्चा मापदंड  हमारी अगली  पीढ़ी की  सुरक्षा और सशक्तिकरण पर ही केंद्रित है। साथ ही, हमें सुनिश्चित करना होगा कि हमारे द्वारा उन्हें एक ऐसी दुनिया विरासत में मिले, जहां न्याय, सत्यनिष्ठा और करुणा सर्वोपरि हों।

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 -अतुल मलिकराम
 (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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