दीये जलाएं, परंपरा को जीवंत बनाएं

मिट्टी के दीये जलाने के कई लाभ हैं

दीये जलाएं, परंपरा को जीवंत बनाएं

आधुनिकता की आंधी में हम अपनी पौराणिक परंपरा को छोड़कर दीपावली पर बिजली की लाइटिंग के साथ तेज ध्वनि वाले पटाखे चलाने लगे हैं।

आज की भागती दौड़ती जिन्दगी में लोग अपनी परंपरा को भूलते जा रहे हैं। इसका परिणाम है कि आज देश में पर्यावरण संकट के साथ-साथ कई तरह की समस्या उत्पन्न हो रही है। जिसके चलते सभी लोगों और जीव-जंतुओं के जीवन पर संकट है। इन परंपराओं  में एक दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीये जलाना भी है। जिसको आज लोग भूलते जा रहे हैं और उसकी जगह पर इलेक्ट्रिक लाइटों का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन जो सुंदरता मिट्टी के दीये जलने पर दिखती है वह इलेक्ट्रिक लाइटों के जलने से नहीं। इस बात को स्वयं लोग भी स्वीकार कर रहे हैं और इस परंपरा को लोगों के भूलने पर चिंता भी व्यक्त कर रहे हैं। मिट्टी के दीये जलाना हमारी परंपरा और संस्कृति है। अपनी संस्कृति को कोई कैसे भूल सकता है। इसका सभी लोगों को ध्यान रखना चाहिए। मिट्टी के दीये जलाने के कई लाभ हैं। जिसका उल्लेख कई जगहों पर देखने और सुनने को मिलता है। इसलिए सभी लोग मिट्टी के दीये जलाएं।

दीपावली का त्यौहार मिट्टी के दीये से जुड़ा हुआ है। यह हमारी संस्कृति में रचा-बसा हुआ है। दीया जलाने की परंपरा आदि काल से रही है। भगवान राम की अयोध्या वापसी की ख़ुशी में अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप जलाया था। तब से ही कार्तिक महीने में दीपों का यह त्यौहार मनाए जाने की परंपरा रही है। पिछले दो दशक के दौरान कृत्रिम लाइटों का क्रेज बढ़ा है। आधुनिकता की आंधी में हम अपनी पौराणिक परंपरा को छोड़कर दीपावली पर बिजली की लाइटिंग के साथ तेज ध्वनि वाले पटाखे चलाने लगे हैं। इससे एक तरफ  मिट्टी के कारोबार से जुड़े कुम्हारों के घरों में अंधेरा रहने लगा, तो ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों को अपना कर अपनी सांसों को ही खतरे में डाल दिया। अपनी परंपराओं से दूर होने की वजह से ही कुम्हार समाज अपने पुश्तैनी धंधे से दूर होता जा रहा है। दूसरे रोजगार पर निर्भर होने लगे हैं। एक समय था जब दीपावली पर्व को लेकर लोग मिट्टी के दीये खरीदने के लिए पहले ही कुम्हार को ऑर्डर कर देते थे। दीपावली पर्व पर कई लोगों के आर्डर को पूरा करने में दिन रात एक कर मेहनत करते थे। हालांकि उस समय उतनी आमदनी नहीं होती थी, लेकिन कुम्हारों को भी एक रुचि रहती थी कि इस परंपरा को जीवंत रखना है। लेकिन आज लोगों ने मिट्टी के दीये जलाना धीरे-धीरे कम कर दिया है, इससे अब कुम्हार भी इसमें रुचि नहीं ले रहे। जिसका नतीजा है कि आज दीपावली पर्व में लोग घर में दो-चार मिट्टी के दीये जला कर सिर्फ एक परंपरा का किसी तरह निर्वहन कर रहे हैं। ज्यादातर लोग इलेक्ट्रिक  लाइटों, झालर और अन्य लाइटों को जला कर ही दीपावली पर्व में अपने घर को रोशनी से जगमग करने की कोशिश कर रहे हैं। हम सभी अब दीपावली के नाम पर पर्यावरण को खराब कर रहे हैं।

अब हमें पुन: अपनी परंपरा को समझना होगा। हमें मिट्टी के दिये जलाने की परंपरा की पुन शुरुआत करनी होगी। इससे कीड़े मकोड़े मरते हैं। झालर और लाइट से कीड़े नहीं मरते। हमारी संस्कृति सरसों के तेल के दिये जलाना है, अच्छे पकवान बनाना, मिठाइयां खाना और पड़ोसी को भी खिलाना, लोगों को उपहार देना आदि है। लेकिन लोग अब उतने समझदार नहीं हैं इसलिए पटाखे छूटेंगे। लोग मिट्टी के दीये जलाएं। इससे प्रदूषण भी नहीं होगा और परंपरा भी जीवंत रहेगी। दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीये जलाना पूर्वजों के द्वारा बनाई गई परंपरा है। इसे हम सभी लोगों को बरकरार रखना चाहिए। दिवाली में मिट्टी के दीये जलाना हमारी संस्कृति और प्रकृति से जुड़ने का बहुत ही सुगम साधन है। यह भारतीय संस्कृति में बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है। मिट्टी के दीये प्रेम, समरसता और ज्ञान के प्रतीक हैं। सामाजिक व आर्थिक आधार पर भी दीयों की खूबसूरती जगजाहिर है। इस बार दीपावली के दिन मिट्टी के दीये जलाने का संकल्प लेकर संस्कृति का बचाव करना है। सभी लोग मिट्टी के दिये ही जलाएं। आज की युवा पीढ़ी इलेक्ट्रिक लाइटों के प्रति अधिक रुचि रख रही है। घरों को सजाने से लेकर दीये जलाने में इलेक्ट्रिक लाइटों का ही उपयोग कर रही है। जबकि यह सोचना चाहिए कि हमारी संस्कृति और परंपरा का निर्वहन करना युवाओं के कंधे पर ही है। गांव या किसी शहर में जो कुम्हार है वह आज भी मिट्टी  के दीये बनाते हैं। इसमें उन्हें आमदनी का लालच नहीं होता बल्कि उनमें अपनी परंपरा को बरकरार रखने का उत्साह होता है। लेकिन लोग इसे भूलते जा रहे हैं।

पंरपरा व पर्यावरण के संरक्षण के लिए  मिट्टी के दीये जलाना है। इनसे कोई प्रदूषण नहीं होता। कृत्रिम रोशनी आंखों और त्वचा के लिए हानिकारक होती है। मिट्टी के दीये की रोशनी आंखों को आराम पहुंचाती है। दिवाली पर इसे जलाकर हम अपनी परंपराओं को याद रखते हैं। मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों को प्रोत्साहित करने का भी यह अच्छा मौका है। इस दीपावली, हम सभी मिलकर मिट्टी के दीये जलाएं और एक स्वच्छ और हरा-भरा पर्यावरण बनाने में अपना योगदान दें। लोगों को इस पर विचार करना चाहिए। वर्तमान में अपनी परंपरा को बरकरार रखने और पर्यावरण बचाने के लिए इस दीपावली मिट्टी की दीये जलाने के प्रति लोगों खास कर बच्चों व युवाओं को जागरूक करने के लिए अभियान भी चलाएं। 
-प्रियंका सौरभ 
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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