जलवायु परिवर्तन के असर से कैसे हो बचाव

भारत में जिस तेजी से लोगों में खेती पर निर्भरता लगातार कम हो रही है

जलवायु परिवर्तन के असर से कैसे हो बचाव

कीट नाशकों के बेतहांसा इस्तेमाल से भू-उर्वरता खत्म हो रही है और पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। 

भारत में जिस तेजी से लोगों में खेती पर निर्भरता लगातार कम हो रही है, अपने कृषि प्रधान देश के लिए बहुत चिंता की बात है। रिपोर्ट बताती है भारत सहित एशिया के किसानों को पिछले तीन दशकों के दौरान करीब 143.2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि भारत ही नहीं, दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन का असर किसानों पर सीधे पड़ रहा है। सर्वेक्षण बताते हैं जलवायु परिवर्तन का असर भारत में सबसे ज्यादा कृषि और किसानों पर हुआ है। पिछले एक दशक में भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में हीटवेट, अतिशीत, अतिवृष्टि, बाढ़, तूफान और बादल फटने की घटनाओं से जान-माल का नुकसान तो हुआ ही करोड़ों हेक्टेयर खेत में खड़ी फसल नष्ट हो गई। आग की घटनाओं की वजह से अरबों रुपये का जो नुकसान हुआ, उसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। सवाल यह है जलवायु परिवर्तन के दौर में ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से हुए जान-माल के नुकसान का रहनुमा कौन है भारत में केंद्र और राज्य सरकारें ऐसे वक्त में किसानों के लिए राहत की पोटली तो खोलती हैं, लेकिन उस पोटली का फायदा कितने प्रभावित किसानों के पास पहुंचता है, बताने की जरूरत नहीं है। किस वजह से नहीं पहुंचता, यह भी सभी जानते हैं। सवाल यह है जिस किसान के ऊपर अन्न, सब्जी, फल, दूध, ऊन पैदा करने की जिम्मेदारी है उस किसान की हालात कब तक ऐसी बनी रहेगी। भारत में किसानों को अन्न-देवता कहकर सम्मान दिया जाता रहा है। जिन झंझावातों को सहकर किसान अन्न उपजाता है और दुनिया का पेट भरता है, उन झंझावातों के बारे में वही जानता है, जो किसान परिवार से होता है। इस तरह की बात लिखने का हमारा मकसद यह है कि भारत सहित दुनिया भर का किसान प्राकृतिक आपदाओं और दूसरी तमाम समस्याओं को झेलता रहता है, लेकिन अपने कार्य से मुख नहीं मोड़ता।  

यह बात भी सच है कि अब करोड़ों लोग कृषि-कार्य से खुद को अलग कर रहे हैं। इसका कारण खेती का घाटे में जाना और बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं की वजह से हर साल 10.2 लाख करोड़ का घाटा उठाते रहना है। खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के कारण दुनियाभर के किसानों के ऊपर हर साल गहरी आर्थिक चपत पड़ रही है। यह चपत किसान को बर्बादी के कगार पर खड़ा होने के लिए मजबूर कर रही है। रिपोर्ट बताती है कि किसानों पर पड़ रही यह भयंकर मार वैश्विक स्तर पर करीब पांच फीसदी है। प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं पिछले तीस वर्षों में तेजी के साथ बढ़ी हैं। ऐसे में आने वाले सालों में किसानों को और ज्यादा आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ सकता है। कृषि क्षेत्र में रुचि वैश्विक स्तर पर लगातार कम होती जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 21 वर्षों में कृषि में श्रम बल 40 से घटकर 27 फीसदी पहुंच गया। आंकड़े के अनुसार जहां साल 2000 में करीब 102.7 करोड़ लोग यानी वैश्विक श्रम बल का करीब 40 फीसदी हिस्सा कृषि से जुड़ा था वह 2021 में घटकर महज 27 फीसदी ही रह गया। यानी अब केवल 87.3 करोड़ लोग अपनी जीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं। भारत में जिस तेजी से लोगों में खेती पर निर्भरता लगातार कम हो रही है, अपने कृषि प्रधान देश के लिए बहुत चिंता की बात है। रिपोर्ट बताती है भारत सहित एशिया के किसानों को पिछले तीन दशकों के दौरान करीब 143.2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।लेकिन अमेरिका और यूरोप अपने कृषि क्षेत्र के सम्बंध में आनुपातिक रूप से अधिक प्रभावित हुए हैं। प्राकृतिक आपदाएं भारत के किसानों के लिए ही नहीं वैश्विक स्तर पर किसानों के लिए बेहद नुकसानदायक साबित हो रही हैं, इसलिए वैश्विक स्तर पर इस पर गहन विचार करना चाहिए और वैश्विक स्तर पर ऐसी नीति जरूर बनानी चाहिए, जिससे हर देश के किसान को प्राकृतिक आपदाओं की मार से बचाने के लिए कुछ ऐसी योजना बनाकर लागू करना जिससे किसानों को राहत हासिल हो। सर्वेक्षण बताते हैं कि खेती में लागत पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ गई है। इस वजह से भारत के करोड़ों किसान सालभर कर्ज से दबे रहते हैं। केंद्र और राज्य सरकारों की कोई अत्यंत सकारात्मक नीति न होने की वजह से भारत के लाखों किसान जहां तमाम आर्थिक समस्याओं में उलझा रहता है वहीं पर पारिवारिक समस्याओं से भी परेशान रहता है। रसायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल पर्यावरण प्रदूषण की एक बड़ी वजह है। वैज्ञानिक शोध के मुताबिक ग्रीनहाउस गैसों की वजह से प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं, इससे फसल-चक्र पर असर पड़ रहा है जिससे तमाम तरह की समस्याएं और बीमारियां बढ़ रही हैं इससे किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है। परीक्षण से यह पता चला है कि रसायनिक कीटनाशकों की वजह से अन्न-उत्पादन में ऐसे हानिकारक तत्व पाए जाने लगे हैं, जो कई गम्भीर बीमारियों की वजह बन रहे हैं। भारत सहित एशिया के देशों में कीटनाशकों का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है। इसलिए इसके विकल्प के रूप में जैविक कीटनाशकों के इस्तेमाल के लिए किसानों को प्रोत्साहन देने की नीति अच्छी साबित हो रही है ऐसी नीति एशिया के दूसरे देशों में भी बनाई जानी चाहिए, इससे होने वाली तमाम हानियों से बचा जा सके। कीट नाशकों के बेतहांसा इस्तेमाल से भू-उर्वरता खत्म हो रही है और पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।  

अखिलेश आर्येन्दु
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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