उपचुनाव में कांग्रेस के दिग्गजों का स्थानीय पकड़ का आएगा परिणाम

सीटों पर भी बेहतर परफॉर्मेंस दिखाना होगा

उपचुनाव में कांग्रेस के दिग्गजों का स्थानीय पकड़ का आएगा परिणाम

खासतौर पर उन नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है, जो इन क्षेत्रों के प्रभारी हैं या फिर इन क्षेत्रों में अपना राजनीतिक प्रभाव रखते हैं। 

जयपुर। राजस्थान की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए कांग्रेस ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। इन सात सीटों पर प्रदेश कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा भी दाव पर लगी हुई है। परिणामों से इन दिग्गज नेताओं का इन क्षेत्रों में प्रभाव भी तय होगा।पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा, पूर्व सीएम अशोक गहलोत, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट की प्रतिष्ठा मुख्य रूप से इस चुनावों से जुड़ी हुई है। उपचुनाव में चार सीटों दौसा, देवली-उनियारा, झुंझुनूं और रामगढ़ पर अपनी सियासी जमीन बचाना भी चुनौती होगी, तो अन्य सीटों पर भी बेहतर परफॉर्मेंस दिखाना होगा। खासतौर पर उन नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है, जो इन क्षेत्रों के प्रभारी हैं या फिर इन क्षेत्रों में अपना राजनीतिक प्रभाव रखते हैं। 

दौसा: कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट के प्रभाव क्षेत्र वाली इस सीट पर पायलट के अलावा सांसद मुरारीलाल मीणा की प्रतिष्ठा दाव पर लगी हुई है। प्रदेश कांग्रेस ने यहां कांग्रेस सह प्रभारी पूनम पासवान को जिम्मेदारी सौंपी है।

देवली-उनियारा: यह सीट भी कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट के प्रभाव क्षेत्र में मानी जाती है। सांसद हरीशचन्द्र मीणा यहां से दो बार विधायक बने हैं, ऐसे में उनकी प्रतिष्ठा भी दाव पर लगी हुई है। कांग्रेस ने इस सीट की जिम्मेदारी सह प्रभारी पूनम पासवान को जिम्मेदारी सौंपी है।

झुंझुनूं: शेखावाटी की इस सीट पर लंबे समय से ओला परिवार का दबदबा रहा है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री शीशराम ओला के बेटे बृजेन्द्र ओला यहां विधायक से सांसद का चुनाव जीते। ओला कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट के समर्थक माने जाते हैं। वहीं, पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा भी शेखावाटी के बड़े चेहरे हैं, पायलट और डोटासरा की प्रतिष्ठा चुनाव से जुड़ी हुई है। कांग्रेस ने यहां कांग्रेस सचिव चिरंजीव राव को इस सीट की चुनावी जिम्मेदारी सौंपी है।

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सलूम्बर: कांग्रेस इस सीट पर कई बार से चुनाव नहीं जीती है। यहां कांग्रेस की भाजपा और बीएपी दोनों से चुनौती है। मेवाड़ क्षेत्र के नेताओं में यहां पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी और पूर्व सांसद रघुवीर मीणा की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है। कांग्रेस ने यहां कांग्रेस सहप्रभारी ऋत्विक मकवाना को चुनावी जिम्मेदारी सौंपी है।

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खींवसर: नागौर क्षेत्र की इस सीट पर लंबे समय से आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल का प्रभाव है। गठबंधन नहीं होने की स्थिति में यहां कांग्रेस के सामने इस बार भी चुनौती है। कांग्रेस में यहां मिर्धा परिवार के नेताओं में विधायक हरेन्द्र मिर्धा, पीसीसी सचिव राघवेन्द्र मिर्धा, बिंदु चौधरी की प्रतिष्ठा दाव पर है। पायलट समर्थक विधायक रामनिवास गावड़िया और मुकेश भाकर की भी परीक्षा होगी। कांग्रेस ने कांग्रेस सचिव चिरंजीव राव को जिम्मेदारी सौंपी है।

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चौरासी: इस सीट पर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा और यहां कांग्रेस नेताओं का प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं माना जाता। यहां कांग्रेस में पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा का परिवार ही सबसे ज्यादा राजनीतिक पकड़ रखता है। कांग्रेस ने यहां सह प्रभारी ऋत्विक मकवाना को जिम्मेदारी सौंपी है।

रामगढ़: इस सीट पर कांग्रेस का कई बार प्रभाव रहा है। विधानसभा नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली सहित पूर्व केन्द्रीय मंत्री भंवर जितेन्द्र सिंह की प्रतिष्ठा इस सीट पर दाव पर लगी हुई है। कांग्रेस ने यहां कांग्रेस सचिव चिरंजीव राव को चुनावी जिम्मेदारी सौंपी है। 

 

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