नामांकन के आखिरी दिन निर्दलीय प्रत्याशियों पर नजर, कांग्रेस को भी जातिगत समीकरण साधने का डर
बडे नेताओं को जिम्मेदारी भी सौंपनी पड़ेगी
कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट और टीकाराम जूली अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। ऐसे में परिणाम अनूकूल नहीं आए तो क्षेत्र में इनके राजनीतिक प्रभाव का आंकलन भी पार्टी करेगी।
जयपुर। विधानसभा उपचुनाव के लिए नामांकन का आखिरी दिन कांग्रेस रणनीतिकारों के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है। टिकट नहीं मिलने से नाराज दावेदारों के तीसरे मोर्चें के दलों या निर्दलीय पर्चा दाखिल करने की स्थिति में पार्टी को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा। पर्चा दाखिल करने पर डेमेज कंट्रोल के लिए बडे नेताओं को जिम्मेदारी भी सौंपनी पड़ेगी। कांग्रेस ने इस बार काफी सोच विचार कर नए प्रयोग करते हुए टिकट बांटे हैं। प्रयोग सफल होने या विफल होने की कांग्रेस को इसलिए बहुत ज्यादा चिंता नहीं हैं, क्योंकि परिणामों के बाद इससे भाजपा की सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन पार्टी के भजनलाल सरकार के खिलाफ आक्रामक रवैये की धार पर असर आ सकता है। पार्टी के सामने उपचुनाव से पहले पार्टी की सीटों को बचाने की चुनौती भी है। टिकटों में पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा, कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट और टीकाराम जूली अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। ऐसे में परिणाम अनूकूल नहीं आए तो क्षेत्र में इनके राजनीतिक प्रभाव का आंकलन भी पार्टी करेगी।
इन सीटों पर बागियों पर नजर
दौसा और देवली-उनियारा से दावेदारी कर रहे नरेश मीणा के तेवर टिकट नहीं मिलने के बाद आक्रामक बने हुए हैं। अपने समर्थकों के साथ ताकत दिखा रहे नरेश यदि आखिरी दिन किसी भी सीट से पर्चा दाखिल करते हैं तो कांग्रेस को अपने वोटों में सेंधमारी का डर सताएगा। सलूम्बर सीट पर पूर्व सांसद रघुवीर मीणा की नाराजगी सामने आई है। वे किसी जातिगत समीकरण की पकड़ वाले व्यक्ति को निर्दलीय पर्चा दाखिल कराने में कामयाब होते हैं तो कांग्रेस के लिए ही चुनौती बढ़ेगी। चौरासी में भी पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा के परिवार को लेकर ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं। खींवसर सीट पर भी कांग्रेस के बिन्दु चौधरी, मनीष मिर्धा, राघवेन्द्र मिर्धा जैसे भी दावेदार थे। कांग्रेस को यहां भीतरघात का डर सता रहा है। झुंझुनूं में पूर्व मंत्री राजेन्द्र गुढ़ा के कारण कांग्रेस को राजपूत और माली समाज के वोटों का डर बना हुआ है। रामगढ़ सीट पर दावेदारों में अंदरखाने नाराजगी बताई जा रही है, लेकिन भंवर जितेन्द्र सिंह और टीकाराम जूली वहां हालातों पर निगाहें बनाए हुए हैं।
Comment List