पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव (खेल) जेसी महांति ने दिए प्रस्तावित खेल विधेयक पर सुझाव

क्लब लेबल से ही रजिस्ट्रेशन जरूरी हो, क्योंकि प्राथमिक इकाई दोषपूर्ण होगी तो संक्रमण राज्य और राष्ट्रीय खेल संघों तक जाएगा

पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव (खेल) जेसी महांति ने दिए प्रस्तावित खेल विधेयक पर सुझाव

 महांति का कहना है कि विधेयक की प्रस्तावना में  खेलों के विकास, खिलाड़ियों  की भागीदारी और  खेल संघों के नैतिक  आचरण की बात कही गई है।

जयपुर। पूर्व आईएएस अधिकारी और राज्य के खेल सचिव सहित अतिरिक्त मुख्य सचिव (खेल) रहे जेसी महांति ने केन्द्र सरकार के प्रस्तावित राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक 2024 को राष्ट्रीय खेल संघों के संचालन में मौलिक सुधार और खेल संबंधी विवादों के हल की दिशा में एक सार्थक प्रयास बताया है।

महांति का कहना है कि विधेयक की प्रस्तावना में  खेलों के विकास, खिलाड़ियों  की भागीदारी और  खेल संघों के नैतिक  आचरण की बात कही गई है। साथ ही सरकार और खेल संघों की संस्थागत क्षमता बढ़ाने, खेल का नियमन और विवादों के समाधान जैसे विषय शामिल किए हैं, जो महत्वपूर्ण हैं। लेकिन इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि खेल  संघों की गतिविधि  एवं विवादित स्थिति  का एक मूल कारण क्लब और जिला स्तर पर फर्जी खेल संस्थाओं का गठन और उनकी अनैतिक गतिविधियां हैं।

महांति  का मानना है कि खेलों संघों में प्राथमिक इकाई (क्लब स्तर) से ही रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। क्योंकि अक्सर देखा जा रहा है कि क्लबों का गठन ही ऐसे किया जाता है ताकि उसके जरिए जिला संघों का काबिज हुआ जा सके। उन्होंने कहा कि जब खेल संघों में नींव (प्राथमिक इकाई) ही दोषपूर्ण होगी, तो यह संक्रमण राज्य और राष्ट्रीय खेल संघों तक भी पहुंचेगा। इसी समस्या के समाधान हेतु राजस्थान खेल अधिनियम वर्ष 2005 में लागू किया गया था। राजस्थान और केरल देश में केबल दो राज्य हैं, जहां खेल अधिनियम है। भारत सरकार को इन नियमों का अध्ययन करना चाहिए।

ये दिए हैं सुझाव
 

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  • राजस्थान और केरल राज्यों में  लगभग 20 वर्ष  से लागू अधिनियमों के उपादेय प्रावधानों को प्रस्तावित विधेयक में समायोजित किया जाए।
  • खेल निकायों के नियमन और विवादों के निराकरण में राज्यों की परेशानियों पर अध्ययन किया जाए।
  • बुनियादी खेल सुविधाओं के सृजन में खेल संघों का  आर्थिक योगदान भी अनिवार्य किया जाए।
  • खेलमंत्रालय में सचिव का कार्यकाल निर्धारित हो क्योंकि बार-बार बदलाव से कार्यकुशलता प्रभावित होती है।
  • विवाद समाधान तंत्र सख्त  हो एवं  विवादों का शीघ्र समाधान होनी चाहिए।
  • एथलीटों को खेल प्रशासन में उनकी भूमिका का निर्वहन करने में सक्षम बनाने के लिए प्रशिक्षण और एक्सपोजर दिया जाए।
  • खेलों को बढ़ावा देने के लिए निजी क्षेत्र और राज्य सरकार की भागीदारी के लिए स्पष्ट अवसर होने चाहिए। ओडिशा एक ऐसा उदाहरण है जिसमें राज्य सरकार ने हॉकी को बढ़ावा दिया और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। अन्य राज्यों को भी कोई खेल अपनाने हेतु प्रोत्साहन देने का प्रावधान होनी चाहिए।
  • टाटा समूह द्वारा संचालित फुटबॉल और तीरंदाजी केंद्र  एक सफल उदाहरण है। अन्य औद्योगिक समूहों को भी आगे लाना चाहिए।
  • पदक बिजेता खिलाड़ियों की सरकार तथा निजी औद्योगिक समूहों में नियुक्ति का कानूनी प्रावधान होना चाहिए।

 

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प्रभावशाली खेल संघप्रभावशाली खेल संघ
महांति ने कहा कि संविधान में खेल राज्य का विषय हैं। प्रस्तावित विधेयक के मसौदे में केन्द्र सरकार के पूर्व में किए अनेक उपायों को भी शामिल किया है, जो राज्य सरकारों का समर्थन नहीं मिलने से विफल हो गए। उन्होंने कहा कि यह विडम्बना है कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई खेल संघ इतने प्रभावशाली हैं कि वे कानून की परवाह नहीं करते। राज्य सरकारें ऐसे खेल संघों पर नियमों को लागू नहीं कर पाती। 
इसका बड़ा कारण है कि राज्य खेल संघों को राष्ट्रीय खेल संघ से मान्यता मिलती है। क्रिकेट संघ के नियमों सुधार  हेतु में जस्टिस लोढ़ा कमेटी की  सिफारिशों को ध्यान में रखते राजस्थान खेल अधिनियम में बदलाव के लिए जस्टिस एनके जैन समिति का गठन किया गया था। परंतु इस कमेटी की सिफारिशों को  अब तक लागू नहीं किया जा सका।

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खेल संघों का राजनीतिकरण
महांति का मानना है कि वर्तमान में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई खेल संघों में ऐसे राजनेता काबिज हो रहे हैं, जिनका खेलों से कोई वास्ता नहीं रहा है। इससे वास्तव में खेलों से जुड़े लोग हाशिये पर आ गए हैं, जो चिन्ता का विषय है। खेल संघों में वित्तीय अनियमितताएं, पारदर्शिता का अभाव और नैतिकता का अभाव बड़ी समस्या बन गई हैं।  परंतु लंबे समय से इन पर चर्चा होने के बावजूद इसमें कोई परिवर्तन नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि केन्द्र हो अथवा राज्यों की सरकारें, खेल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर पैसा खर्च करते हैं लेकिन यह त्रासदी है कि खेल संघ इन सुविधाओं का उपयोग तो करते हैं लेकिन सरकार के नियम-कायदों को मानने को तैयार नहीं रहते। कभी राजनैतिक ताकत से तो कभी ओलंपिक आन्दोलन की भावना का हवाला देकर बचने का प्रयास करते हैं।

कमजोर पैर वाला ढांचा
महांति ने कहा कि खेल संघों की मान्यता, संचालन में पारदर्शिता, जवाबदेही  और नैतिकता  सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार के खेल सचिव की अध्यक्षता में  खेल नियामक बोर्ड के गठन का प्रस्तावत किया गया है। यह  स्वागतयोग्य पहल है। लेकिन विधेयक में खेल सचिव को भारी दायित्व सौंपे गए हैं। खेल सचिव, डीजी साई और नेशनल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के वीसी की मौजूदगी वाला यह बोर्ड कमजोर पैरों पर भारी ढांचा नजर आता है। उन्होंने कहा कि खेल सचिव की खेलों के विकास और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है लेकिन उनके पास सीमित समय है। विधेयक में  सर्वोच्च अथवा उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक  अपीलिय ट्रिब्यूनल प्रस्तावित किया गया है जिसमें भी खेल सचिव सदस्य  है। ऐसे में वे खेल अपीलीय न्यायाधिकरण में अर्द्धन्यायिक कार्य सहित विधेयक के प्रारूप में उन्हें सौंपे अन्य दायित्वों का निर्वहन कैसे कर सकेंगे, यह विचारणीय बिंदु हैं।

ऐसे हो सकता है बोर्ड का गठन
खेल नियामक बोर्ड का गठन भी विद्युत नियामक आयोग, राष्ट्रीय और राज्य सूचना आयोग और राष्ट्रीय हरित अधिकरण जैसी संस्थाओं की तर्ज पर हो सकता है। खेल नियामक बोर्ड में सदस्य ऐसे हों जिनके पास कार्य करने के लिए निर्धारित अवधि हो। अनुभवी सेवानिवृत्त या सेवारत व्यक्तियों से नियामक बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए ताकि वह एक निर्धारित कार्यकाल तक स्वायत्तता और स्थिरता से काम कर सके। खेल अपील अधिकरण का गठन भी अन्य ट्रिब्यूनल की तरह किया जाना चाहिए। स्पोर्ट्स निर्वाचन पैनल  तथा एथिक्स कमीशन भी प्रस्तावित  की गई है। 

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