सोने से महंगी पड़ रही घड़ाई

टावर ऑफ लिबर्टी की बंद लाइटें ठीक करने के लिए हर बार दो लाख रुपए हो रहे खर्च

सोने से महंगी पड़ रही घड़ाई

पेड़ा बनाने का खर्चा ही डेढ़ लाख रुपए ।

कोटा। कहावत है कि सोने से महंगी उसकी गढ़ाई पड़ती है। यह कहावत  शहर के बीचो बीच एरोड्राम चौराहे पर बनाए गए टावर आॅफ लिबर्टी  पर सही भी साबित हो रही है। टावर की तीनों लाइटें कई दिन से बंद हैं। जिन्हें सही करने पर एक बार में ही करीब दो लाख रुपए सेअधिक का खर्चा होता है।जिसमें से करीब डेढ़ लाख रुपए तो पेड़ा बनाने पर ही खर्चा होता है। शहर को ट्रैफिक लाइट सिग् नल फ्री बनाने के लिए नगर विकास न्यास कीओर से एरोड्राम चौराहे पर करीब 50 करोड़ की लागत से अंडरपास बनाया गया है। साथ ही उसके सौन्दर्यीकरण के तहत बीचों बीच तीन विशाल स्तम्भ बनाए गए हैं। करीब 25 करोड़ रुपए की लागत से टावर आॅफ लिबर्टी बनाया गया है। जिसमें सबसे ऊंचा एक टावर 48 मीटर का, दूसरा 38 मीटर का और तीसरा 32 मीटर का है। इन टावरों पर रंग बिरंगी लाइटें लगाई गई हैं। उन सभी लाइटों का ड्राइवर(सिस्टम) टावर पर सबसे ऊपर की तरफ लगा हुआ है।

15 दिन पेड़ा बनाने में लगते हैं, डेढ़ लाख रुपए का खर्चा होता है
हालत यह है कि लाइटों का पूरा सिस्टम एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। ऐसे में यदि इसके ट्राइवर में गड़बड़ी होतीहै तो तीनों टावर की लाइटें बंद हो जाती है। पिछले कई दिन से तीनों टावरों की लाइटें बंद हैं। जिन्हें सही करने केलिए  सबसे बड़ी चुनौती टावर के ऊपर तक पहुचना है। वर्तमान में इन लाइटों को ठीक करने के लिए  तीनों टावरों के चारों तरफ पेड़ा बनाया गया है। टावर आॅफ लिबर्टी का रखरखाव करने वाले संवेदक  सुनील गर्ग का कहना है कि लाइटों को ठीक करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती टावर पर ऊंचाई तक पहुंचना है। इसका कारण लाइटों का सिस्टम ऊपर की तरफ जोड़ा हुआ है। वहीं सेलाइटें ठीक होतीहै। उसके लिए करीब 15 दिन पेड़ा बनाने में लगते हैं। उस पर एक बार में करीब डेढ़ लाख रुपए का खर्चा होता है। पेड़ा बंधने के बाद लाइटें ठीक करने केलिए दिल्लीसे कम्पनी के कर्मचारी आते हैं। इसतरह से एक बार लाइटें खराब होने पर करीब दो लाख रुपए से अधिक का खर्चा होता है। 

अभी गारंटी पीरियड में हैं लाइटें 
उन्होंने बताया कि अभी गारंटी पीरियड में होने से लाइटों को सही करने का काम उनके पास हीहै लेकिन यह बड़ी बुनौती पूर्ण काम है। संवेदक का कहना है कि गारंटी समाप्त होने के बाद इन लाइटों के बंद होने पर उन्हें सही करने पर खर्चा काफी अधिक आएगा। इधर कोटा विकास प्राधिकरण केसहायक अभियंता ललित मीणा ने बताया कि सभीलाइटें एक दूसरे से जुड़ी हुई है।उनका ट्राइवर(सिस्टम) टावर केसबसे ऊपर कीतरफहै। ऊपर जाने के लिए लेडर की व्यवस्था नहीं की गईहै।इस कारण से हर बार पेड़ा बांधना पड़ता है।  मीणा ने बताया कि तीनों टावरों में से दो छोटे टावरों की लाइटों को चालू करने का काम किया जा रहा है। लेकिन सबसे बड़े 48 मीटर वाले टावर की लाइटें चालृू होने में अभी तीन से चार दिन का समय लगेगा। उन्होंने बताया कि सामान्य तौर पर लाइटें बरसात के समय में बंद रहने का खतरा रहता है। 

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